प्रिंट में लेखों के साथ एक संदिग्ध लेख पेश किये जातें हैं जिनकी विश्वसनीयता पर जल्द ही यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. हालांकि अभी हाल ही में इसकी ताजा न्यूज़ रिपोर्ट्स ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा। कोई भी देश में इस तरह कि सनसनी न्यूज़ पर भरोसा नहीं करता है जहां पत्रकार अपनी रिपोर्ट में हर तरफ तख्तापलट की बात कर रहे हों लेकिन फिर भी इस रिपोर्ट पर एक नजर डालने की आवश्यकता महसूस हुई। प्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार एक बार फिर से अपना पक्ष बदलने के लिए राजद सुप्रीमों से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे थे। एक संदिग्ध स्रोत से कथित न्यूज़ की रिपोर्ट को यदि सच मानने का जोखिम उठाते हैं तो ऐसे में जाहिर है कि बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ लेने वाली है।
यदि इन रिपोर्टों को सच मानें तो नितीश कुमार का इस तरह सत्ता पर खतरा मंडराने पर गिरगिट की तरह रंग बदलने और सत्ता को बनाये रखने की उनकी भूख के लिए उनकी तारीफ करनी चाहिए। नितीश कुमार अच्छे से जानते हैं कि बीजेपी के साथ लोकसभा सीटों के लिए सौदा करने की बात आती है तब उनकी पकड़ कमजोर पड़ जाती है। 2014 के लोक सभा चुनाव में जब बीजेपी जेडीयू के बिना ही आगे निकल गयी थी, तब बीजेपी ने 22 सीटें जीतीं थी और उसके सहयोगियों ने 9 और सीटें जीतीं, जिससे एनडीए की संख्या 31 हो गई। जेडीयू अपने दम पर सिर्फ दो सीटें ही जीत पायी थी और इसका वोट शेयर सिर्फ 16.8 फीसदी था, और पिछले चुनाव में इसके वोट शेयर में 8.24 फीसदी से गिरावट आई थी। वहीं, 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में इसके वोट शेयर में 5.81% की गिरावट आयी है। जेडीयू का वोट शेयर सिर्फ 16.8 फीसदी था और आरजेडी के साथ गठबंधन में 71 सीटें जीती थीं वहीं बीजेपी ने अपने दम पर 53 ऐसे सीटें जीती थीं। इस चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 24.4% के कुल वोट शेयर के साथ 7.9 4% बढ़ गया। ऐसे में ये स्पष्ट है कि जेडीयू पार्टी अकेले चुनाव जीतने में सक्षम नहीं है।
जेडीयू के पास बीजेपी के साथ रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। यदि वो अकेले चुनाव लड़ने की सोचते हैं तो बिहार में उन्हें आरजेडी-कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ लड़ना होगा ऐसे में उनके हिस्से में बहुत कम ही सीटें जायेंगी। इस तरह कि स्थिति में बीजेपी को 2019 में भी लाभ मिलेगा जैसे कि 2014 में मिला था और बीजेपी इस लड़ाई में बिहार को सबकी नाक के नीचे से खींच लेगी। जेडीयू और नितीश कुमार को जितनी जल्दी हो सके चुनावी वास्तविकता से वाकिफ हो जाना चाहिए। नितीश कुमार अब पहले की तरह लोकप्रिय भी नहीं रहे हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि वो एक अच्छे सहयोगी की तलाश में हैं। दुर्भाग्यवश, उन्होंने अपनी सभी लाइफलाइन खत्म कर दी है। नितीश कुमार ने दल-बदल करने की अपनी नीति से एक बुरी छवि स्थापित किया है और यही कारण है कि तेजस्वी यादव ने नितीश कुमार के लिए सभी दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए हैं। पटना डेली के अनुसार, तेजस्वी यादव ने कहा है कि, भविष्य में उनका कभी भी आरजेडी या आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन में कोई जगह नहीं होगी। उन्होंने ये भी कहा कि, नितीश कुमार ने हमेशा विश्वासघात किया है। उन्होंने ये भी संकेत दिया कि नितीश ने लालू को कॉल किया था और उनका हाल-चाल पूछा जाना सिर्फ दिखावे की सहानुभूति थी।
Nothing but a late courtesy call to enquire abt his health as he underwent fistula operation on Sunday.Surprisingly NitishJi got to knw abt his ill health after 4months of hospitalisation.I hope he realises he is last politician to enquire following BJP/NDA Ministers visiting him https://t.co/lw7cNmXhDL
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 26, 2018
ये स्पष्ट है कि आरजेडी अब नितीश कुमार के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहता है। सिर्फ आरजेडी ही नहीं, अगर प्रिंट रिपोर्ट की मानें तो कांग्रेस ने भी संकेत दिया है कि उनके पास नितीश कुमार के लिए कोई जगह नहीं है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, “हमारे लिए लालू यादव नितीश की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वो नीतीश की तुलना में अधिक भरोसेमंद है। अगर लालू महागठबंधन को फिरसे बनाने का फैसला करते हैं तो हम उनके साथ हैं। अन्यथा, नितीश को इंतजार करना होगा।” नितीश कुमार ने अपनी छवि ऐसी बना डी है कि कोई भी पार्टी या नेता उनपर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है।
अब नितीश के पास दो ही विकल्प रह गये हैं, पहला या तो वो बीजेपी के साथ रहे या अकेले ही आगे बढ़ जायें और यदि वो अकेले जाने का फैसला करते हैं तो बीजेपी उनके हाथों से बिहार की सत्ता छीन लेगी ठीक वैसे ही जैसे 2014 में हुआ था और जेडीयू का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा और पतन की राजनीति शुरू हो जाएगी। ये नितीश थे जिन्हें बीजेपी की जरूरत थी न की बीजेपी।