उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले मगहर में संत कबीर दास जी की मजार पर जाकर तैयारियों का जायजा लिया। मजार पहुंचने पर जब वहां के संरक्षक ने उन्हें कबीर की टोपी पहनने के लिए कहा तो इस पर योगी आदित्यनाथ ने विनम्रतापूर्वक पहनने से मना कर दिया। अब, छद्म-धर्मनिरपेक्ष मीडिया इस पर आक्रोशित है। हालांकि, इसमें हैरान कर देने वाली कोई नई बात नहीं है इस तथ्य को जानते हुए भी कि योगी आदित्यनाथ एक हिंदू नेता हैं।
इस घटना ने उस समय की याद को ताजा कर दिया जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और तब उन्होंने कुछ ऐसा ही किया था। 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिन के सद्भावना उपवास के दौरान जब एक मुस्लिम मौलाना ने उन्हें पहनने के लिए टोपी दी थी तब उन्होंने विनम्रता से टोपी पहनने से मना कर दिया था और तब ये उनके राजनीतिक करियर के सबसे विवादित क्षणों में से एक बन गया। एक ऐसे देश में जहां मुस्लिम तुष्टिकरण को धर्मनिरपेक्षता के रूप में देखा जाता है, जहां छद्म-धर्मनिरपेक्ष मीडिया तिल का ताड़ बनाती है और पीएम मोदी को इस्लाम विरोधी और मुस्लिम विरोधी के रूप में पेश करने की कोशिश करती है। वहां, पीएम मोदी ने ये स्पष्ट किया कि वो कभी अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण और छद्म धर्मनिरपेक्षता में शामिल नहीं होंगे। वो एक ऐसी राजनीति में विश्वास करते हैं जहां विकास की जगह है न कि समाज के एक विशेष को संतुष्ट करने की।
मीडिया और राजनीतिक पार्टियों के कुछ वर्गों ने धर्मनिरपेक्षता को मुस्लिमों का तुष्टिकरण और हिंदुओं को अपमानित करने का समानार्थी बना दिया था लेकिन ये तब बदला जब भारतीय राजनीति में मोदी और योगी का उदय हुआ। ऐसा नहीं है कि मोदी और योगी तुष्टिकरण की राजनीति में शामिल नहीं हैं। वो भी तुष्टिकरण की राजनीति में शामिल हैं लेकिन उन बहुसंख्यक समुदाय के लिए जो भारत की वृद्धि और विकास चाहते हैं, जो एक नया गतिशील, मजबूत और शक्तिशाली भारत चाहते हैं और समाज के एक विशेष वर्ग के विपरीत है जो सातवीं शताब्दी के जनजातीय युद्ध क्षेत्र में परिवर्तित होना चाहते हैं। टोपी पहनना किसी के धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण नहीं देता है और न ही धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट देता है। अपनी लोकप्रियता से वो हर रोज नई ऊंचाई को छू रहे हैं, पीएम मोदी के आगमन के बाद योगी आदित्यनाथ स्पष्ट रूप से भारतीय राजनीति में एक बड़े नेता बनकर उभरे हैं इसलिए दोनों के बीच समानता की लकीर खींचना मुश्किल है। आज के समय में सीएम योगी और पीएम मोदी का उदय भारतीय राजनीति में सबसे अच्छी चीज हुई है।
प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार को संत कबीर दास की 500वीं पुण्यतिथि पर उनकी परिनिर्वाण स्थली पर पहुंचे थे और वहां उन्होंने मजार पर चादर भी चढ़ाई। पीएम मोदी ने यहां कबीर अकादमी की आधारशिला भी रखी, ये अकादमी संत कबीर की शिक्षा और विचारों का प्रसार करने की दिशा में कार्य करेगी।
कबीर 15 वीं शताब्दी के एक रहस्यमयी कवी थे। उनके छंदों ने हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया था और उनके कई छंद सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र किताब में भी मिलते हैं। कबीर पंथ (कबीर का मार्ग) नाम के एक धार्मिक समुदाय ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया है। अब बीजेपी सरकार ने तय किया है कि वो उनकी शिक्षा और संदेशों को विश्व भर में प्रसारित करेंगे। उनसे जुड़ी चीजों को एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय में रखा जाएगा ताकि विदेशी देशों से आने वाले पर्यटक भारत के इस महान आत्मा के बारे में जान सकें।