जब प्रणब मुखर्जी RSS को संबोधित करने के लिए तैयार हो रहे थे, सोनिया अलग ही योजना में लगी थी

प्रणब मुखर्जी एनडीटीवी सोनिया गांधी

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शामिल हुए और उनका ये कदम कांग्रेस मुख्यालय में उन्माद पैदा करने में सफल रहा। गुरुवार को प्रणब मुखर्जी ने हजारों संगठन स्वयंसेवकों के लिए आरएसएस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम को संबोधित किया। इसके बाद से कई विवाद शुरू हो गये और कुछ समय के लिए ये घटना कांग्रेस को परेशान करने वाली है। जब प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के निमंत्रण को स्वीकार किया था तब कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा था कि इसपर कैसी प्रतिक्रिया डी जाए क्योंकि वो पांच दशकों से कांग्रेस के प्रति वफादार रहे हैं। कुछ इसे लेकर चिंतित थे, तो कुछ नेताओं ने कहा कि उन्हें प्रणब दा के कार्यक्रम में शामिल होने से कोई समस्या नहीं थी, जबकि कुछ ने उनकी आलोचना की। कांग्रेस की विचारधारा के प्रतिद्वंद्वी, आरएसएस का अतीत में कई बार कांग्रेस के साथ आमना सामना हुआ है। आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस के नेहरु-गांधी परिवार की तरफ से प्रणब दा द्वारा आरएसएस समारोह को संबोधित करने को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया खुलकर सामने नहीं आयी है। न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी किया। लेकिन पार्टी के सूत्रों की मानें तो सोनिया गांधी के निर्देश के बाद ही इस मामले की आलोचना की गयी। वो सोनिया गांधी थीं जो अपने राजनीतिक सहयोगी और कांग्रेस पॉवर प्लेयर अहमद पटेल को कल रात ट्वीट करने के लिए कहा था,” मैंने प्रणब दा से इसकी उम्मीद नहीं की थी!”

सुनेत्रा चौधरी द्वारा एनडीटीवी पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ कि, नेहरू-गांधी परिवार पीछे से इसकी आलोचना कर रहे हैं और उन्होंने ही प्रणब दा के फैसले की आलोचना करने के लिए अहमद पटेल जैसे कांग्रेस नेताओं को आदेश दिया गया था।

ये रिपोर्ट सोनिया गांधी और राहुल गांधी की इस मामले में चुपी को लेकर बहुत कुछ कहती है। वो वही कर रहे हैं जो उन्होंने यूपीए के शासन के दौरान किया था, मनमोहन सिंह को आगे खड़ा कर उन्हें पीछे से नियंत्रित करते थे। प्रणब मुखर्जी के खिलाफ किया गया ट्वीट तब आया जब नागपुर में कांग्रेस पार्टी उन्हें अपने विचारधारात्मक प्रतिद्वंद्वी आरएसएस के समारोह में भाग लेने से रोक पाने में नाकाम रही। पार्टी प्रणब दा की यात्रा से एक के बाद एक विवादों के उत्पन्न होने के खतरे से डर रही थी जो आने वाले चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी की योग्यता के खिलाफ कार्यकर्ताओं के बीच और अशांति बढ़ सकती है। राहुल गांधी की उम्मीदवारी का आधार कमजोर है और अतीत में विभिन्न कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता उनके खिलाफ असंतोष की आवाज उठा चुके हैं।

https://twitter.com/Shehzad_Ind/status/994085175926681602

प्रणब दा द्वारा राहुल गांधी और सोनिया गांधी की अपील को अनदेखा कर दिया जाना इस मामले को और तुल दे रहा है। शायद यही वजह है कि सोनिया गांधी ने खुद कुछ कहने की बजाय इसके लिए अपने अन्य नेता को चुना।

कांग्रेस के पास कोई वैध वजह नहीं थी जिससे वो प्रणब मुखर्जी को ये कह सके कि उन्हें इस कार्यकर्म में क्यों नहीं होना चाहिए, खासकर तब जब यूपीए I और यूपीए II के शासन दौरान कांग्रेस अपने सबसे योग्य नेता प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री न बनाकर उनकी जगह कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को चुना था जिनके पास राजनीतिक कौशल कम था। शायद कांग्रेस को पता था कि प्रणब मुखर्जी कठपुतली प्रधानमंत्री बनने के लिए कभी भी तैयार नहीं होंगे। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद से गांधी नेहरू परिवार और मेहनती प्रणब दा के दृष्टिकोण के बीच ये मतभेद स्पष्ट हो गए, प्रणब दा और पीएम मोदी ने पूरे तालमेल के साथ कार्य किया। किसी को इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि कांग्रेस की पृष्ठभूमि से बने राष्ट्रपति को बीजेपी के प्रधानमंत्री द्वारा इतना सम्मानित किया जायेगा लेकिन ऐसा हुआ था। राजनीतिक मतभेदों को अलग रख कर दोनों ने एक दूसरे के सम्मानित पद की गरिमा को ज्यादा तवज्जो दी।

तथ्यों के साथ इस घटना की रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिए एनडीटीवी की सराहना की जानी चाहिए खासकर तब जब इसे कांग्रेस के पक्ष में रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता हो।

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