भारत के 14 वें राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शपथ ली थी। रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाले बीजेपी के पहले नेता हैं। भारत के राष्ट्रपति पद पर उनके आसीन होने के बाद कई चीजें बदलीं। उनमें सबसे ज्यादा अल्पसंख्यकों को लुभाने का रिवाज था। करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग कर भव्य पार्टियों का आयोजन करना और क्रिसमस के मौके पर कैरोल सिंगिंग जैसे सभी रिवाजों को राष्ट्रपति कोविंद ने 2017 में बंद कर दिया। दरअसल, इस बार रमजान के मौके पर राष्ट्रपति कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं करने का फैसला लिया है। बीते साल ये पहला उदाहरण था जब राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस के मौके पर कैरोल सिंगिंग को आयोजित नहीं किया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 2008 में 26 नवंबर को मुंबई आतंकवादी हमलों के पीड़ितों के सम्मान के प्रतीक के रूप में पारंपरिक क्रिसमस उत्सव मनाने से मना कर दिया था। इससे पहले ऐतिहासिक राष्ट्रपति भवन ने अल्पसंख्यक धर्मों के लिए कई समारोह के आयोजन को देखा है। ऐसा लगता था कि ये एक रिवाज बन गया था जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था। राष्ट्रपति कलाम ने इस रिवाज को पहली बार बंद किया था लेकिन उनके कार्यकाल के बाद एक बार फिर से ये रिवाज शुरू कर दी गयी थी।
2017 में राष्ट्रपति कोविंद ने बड़ा साहसिक फैसला लिया था जब उन्होंने राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस के मौके पर कैरोल सिंगिंग के कार्यकर्म को आयोजित नहीं करने का फैसला लिया था। ये रिवाज कुछ भी नहीं है बल्कि भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदायों को लुभाने के लिए पूर्व कांग्रेस नेताओं द्वारा दयनीय प्रयास था। ये पूरा दिखावा पार्टी द्वारा सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के संदेश को भेजने की योजना से जुड़ा था जबकि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के विकास के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया है। ये भव्य पार्टियां सिर्फ कांग्रेस के वीआईपी नेताओं के लिए थीं जिन्हें धर्मनिरपेक्षता की आड़ में करदाताओं के पैसों का सही इस्तेमाल करने के लिए इससे बेहतर उपाय नहीं मिला। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इसे महसूस किया था और यही वजह है कि वो 2002 से 2007 तक के अपने शासनकाल में इफ्तार पार्टी के फंड को अनाथालयों में बांट दिया करते थे। धर्म से प्रेरित पक्षों की मेजबानी की दिशा में पूर्व राष्ट्रपति कलाम के दृष्टिकोण के अनुरूप ही राष्ट्रपति कोविंद ने एक सराहनीय फैसला लिया है। राष्ट्रपति कोविंद के प्रेस सचिव अशोक मलिक के अनुसार, “राष्ट्रपति भवन धर्मनिरपेक्ष राज्य की अभिव्यक्ति करता है। यही वजह है कि शासन और धर्म के मामलों को अलग रखा जाए। करदाताओं के पैसे को किसी धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन में खर्च नहीं किया जाएगा।“
अतीत में राजसी स्मारक ने छद्म-धर्मनिरपेक्षता के वेश में कई कार्यक्रमों और सभाओं को देखा था, इसके लिए कांग्रेस और उसकी तुष्टिकरण की राजनीति को धन्यवाद करना चाहिए। परिभाषा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है धर्म और राज्य को अलग रखना और न की सिर्फ बहुमत वाले धर्म से अलग रखना। पहले भी राष्ट्रपति भवन में कभी हिंदुओं के बड़े त्योहारों के प्रति उत्साह नहीं देखा गया है और न ही भारत में किसी ने परिसर में इसके आयोजन की मांग की, न बीजेपी और न ही आरएसएस। एक महत्वपूर्ण संस्थान के पूर्ण धर्मनिरपेक्षता की दिशा में राष्ट्रपति कोविंद के प्रशंसनीय फैसले की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि ये भारत में हो रहा है जहां अधिकांश पार्टियां और उनके नेता लोकप्रियता हासिल करने के लिए धर्मनिरपेक्षता की आड़ में राजनीति करते हैं। राष्ट्रपति कोविंद ने इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं करने के अपने फैसले के माध्यम से ये स्पष्ट कर दिया है कि भारत के धर्मनिरपेक्ष परिधान और प्रतिष्ठित राष्ट्रपति भवन ऐसी रिवाजओं को स्वीकार नहीं करेगा जो राजनीतिक दलों की जरूरतों के मुताबिक हो। कांग्रेस के शासन में परोसी गयी पुरानी रिवाज को न दोहराते हुए ये एक बढ़िया कदम है। एक ऐसा कदम जिसमें करदाताओं के पैसों की बचत होगी साथ ही ये हमारे अपने राष्ट्रपति कोविंद द्वारा भारत में वास्तविक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक प्रशंसनीय दृष्टिकोण है।