खनिज समृद्ध राज्य झारखंड ने 2014 से पहले राजनीतिक उठापटक के दौर को देखा था। तब स्थिति ऐसी थी कि मौजूदा मुख्यमंत्री भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। झार (जंगल) + खंड (भूमि), ये नाम अपने आप में राज्य के भूगोल को बताने के लिए पर्याप्त है। नक्सलवाद राज्य में एक दूसरी सबसे बड़ी समस्या है और इसने देश के सबसे खनिज समृद्ध राज्य की प्रगति की गति को कम कर दिया है। नक्सली हिंसा, मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर किये गये धर्म रूपांतरण, समुदायों के बीच निहित हितों के लिए टकराव, राज्य में निरक्षरता और कुपोषण के प्रसार के कारण सांप्रदायिक संघर्षों में वृद्धि हुई और लगभग 14 वर्षों के असफल गठबंधन सरकारों ने ऐसा माहौल उत्पन्न किया जो विधानसभा चुनाव में पहली बार किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत का कारण बना और इसके बाद 2014 में बीजेपी के रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री बने। भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में रघुवर दास के चयन ने राज्य में उथल-पुथल का माहौल पैदा कर दिया। रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री पद पर बैठने वाले पहले गैर-आदिवासी उम्मीदवार थे। ये पहली बार था जब एक पार्टी को राज्य में स्पष्ट बहुमत मिला था। क्या ये बीजेपी का भाग्य था या कड़ी मेहनत?
रघुवर दास के लिए ये सबसे बड़ी सफलता थी कम से कम ऐसा कहने में किसी को कोई आश्चर्य नहीं होगा, एक मध्यम वर्ग के मजदूर के घर जन्मे थे और बिहार राज्य में जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में शामिल हो गए थे। इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गये इमरजेंसी के दौरान रघुवर दास ने कुछ समय जेल में भी बिताया था, वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बनने के बाद वो वर्ष 1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ ही सक्रिय राजनीति से जुड़ गये। झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री बनने से पहले वो झारखंड मुक्ति मोर्चा-बीजेपी के गठबंधन की सरकार में उप मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने के एक वर्ष के भीतर ही तेजी से कार्य करते हुए वो केंद्रीय भूमि अधिग्रहण विधेयक के आधार पर राज्य का अपना एक भूमि अधिग्रहण लेकर आये थे जबकि उस समय तक केंद्रीय भूमि अधिग्रहण विधेयक को केंद्र सरकार द्वारा संसद में अभी तक मंजूरी नहीं दी गई थी। झारखंड भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन नियम-2015 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत आने वाले जनजातीय वर्चस्व वाले क्षेत्रों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखकर बनाया गया था। ये विधेयक राज्य में संरचनात्मक और विकासात्मक कार्यों की गति में बड़े पैमाने पर सुधार करने जा रहा था।
रघुवर दास के नेतृत्व में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने वाला झारखंड पहला राज्य बन गया। पीएम मोदी ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के टेकनपुर में भारत के सभी डीजीपी स्तर की बैठक बुलाई थी इसके बाद बिना ज्यादा समय गवाए झारखंड बीजेपी सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया। देश के कई राज्यों में पीएफआई का कहर बरकरार है और बड़ी संख्या में कट्टरपंथीकरण के लिए पीएफआई पर हत्या और हिंसा के कई आरोप लगाये गये हैं। राज्य में पीएफआई की बढ़ती जड़ों को काटने के लिए उसपर प्रतिबंध लगाना साहसिक निर्णय था और इस तरह वर्तमान सरकार ने साबित कर दिया कि वो अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में नहीं बल्कि वो जो कहते हैं उसे पूरा करने में विश्वास करते हैं। सीएम रघुवर दास की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार द्वारा झारखंड के राज्य विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी कानून को पारित किया गया जिसमें जबरदस्ती धर्म परिवर्तन पर 3 साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना या दोनों और महिला, एसटी, एससी के धर्म परिवर्तन के मामले में 4 साल की सजा या 1 लाख रुपये जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है। ये एक बहुत ही आवश्यक विधेयक था जिसे राज्य में लागू किया जाना जरुरी था क्योंकि राज्य में मिशनरियों का पहले से ही एक व्यापक नेटवर्क था और वो आदिवासियों और हाशिए वाले समुदायों को भोजन और चिकित्सा सुविधा देने का लालच देकर उनके धर्म का परिवर्तन करने में शामिल थे।
इसके बाद 2018 में रघुवर दास द्वारा एक और बड़ा फैसला लिया गया जिसके मुताबिक आदिवासी जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तन कर इसाई या अन्य धर्म अपना लिया है उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। हाल ही में बीजेपी के मुख्यमंत्री ने ये घोषणा की थी जिससे ये स्पष्ट है कि रूपांतरण ब्रिगेड के खिलाफ उनकी लड़ाई अभी भी जारी है।
एक नेता के लिए जरुरी सचे नेतृत्व और साहस को रघुवर दास ने बखूबी पेश किया है। उन्होंने राज्य में संचालित रूपांतरण ब्रिगेड से लड़ने के लिए अपने दृढ़ संकल्प को सामने रखा है। वो हिंदू और जनजातीय जीवन में बदलाव लाने के लिए एक चैम्पियन बनकर उभरे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री पद के लिए वो एक ऐसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं जिसे आज के मुश्किल दौर में ढूंढना मुश्किल होगा।