अपरंपरागत खतरों से निपटने के लिए भारतीय सेना को पूरा अधिकार है कि वो अलग तरीकें अपनाए

सीजफायर कश्मीर

केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में ईद के बाद सीजफायर को आगे नहीं बढ़ाने का एक सही निर्णय लिया है। सीजफायर के दौरान सक्रीय हुए आतंकियों की पहचान करने और उन्हें बेअसर करने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को अब काफी मशक्कत करनी है। सशस्त्र बलों को घाटी में अपने ही लोगों से ग्रेनेड हमले, अनियमित फायरिंग और हत्या का सामना करना पड़ा था। एक महीने की लंबी अवधि के लिए उनके हाथों को बांध दिया गया था जिस वजह से उस दौरान उन्हें खुद को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। एक नए वीडियो को तेजी से शेयर किया जा रहा था जिसमें भारतीय सुरक्षा बल अन्य पत्थरबाजों को डराने के लिए कुछ पत्थरबाजों को अपने काफिले के सामने खड़ा किया है रिपोर्ट के अनुसार ये वीडियो दक्षिण कश्मीर के पुलवामा इलाके के आसपास का था।

इस वीडियो को एक पत्थरबाज द्वारा रिकॉर्ड किया गया था जिसका उद्देश्य भारतीय सुरक्षा बलों की नकारात्मक छवि को प्रस्तुत करना था, इस वीडियो के द्वारा वो ये दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि भारतीय सशस्त्र बल उनके साथी पत्थरबाजों को वैन के सामने खड़े होने के लिए मजबूर कर रही है। वो पत्थर न फेंक पाने की वजह से क्रोधित और उत्तेजित नजर आ रहा था और बड़े ही बेतुके तरीके से अपने साथी को छोड़ने की बात कर रहे थे। वो चाहते थे कि वो वापस चलें जिससे कि वो फिर से अपनी पत्थरबाजी क्षमता को दिखा सकें। हम उनकी इस पत्थर न फेंक पाने की हताशा को समझ सकतें जो उनके रोटी कमाने का जरिया है। इन पत्थरबाजों को पत्थर फेंकने के लिए दैनिक मजदूरी के आधार पर भुगतान मिलता है। कोई पत्थरबाजी नहीं इसका मतलब है उस दिन के लिए उनकी कोई आय नहीं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता और वामपंथी पत्रकारों और राजनीतिक दलों के कैबल इस वीडियो पर खूब बहस करेंगे। सेना द्वारा पत्थरबाजों से बचने के लिए पत्थरबाजों को कवच क तौर पर उपयोग किये जाने पर सेना की आलोचना करेंगे। उनके अनुसार मानवाधिकारों के हकदार जो लोग हैं वो पत्थरबाज हैं, भारत के सशस्त्र बलों के पास कोई हक नहीं है। भारतीय सैनिक औरंगजेब का अपहरण और फिर उसकी हत्या मानव अधिकार का हिस्सा नहीं है। हुर्रियत सम्मेलन के नेता और अन्य अलगाववादी नेताओं ने अभी तक औरंगजेब या उनके परिवार के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है।

हम अपरंपरागत साधनों के साथ एक अपरंपरागत युद्ध लड़ने के लिए सशस्त्र बलों को सलाम करते हैं। सेना ने मेजर नितिन गोगोई के नेतृत्व का पालन किया है। सेना ने तीन पत्थरबाजों को दिखाया कि भारतीय सेना अत्यधिक या क्रूर बल में विश्वास नहीं करती बल्कि स्मार्ट, आसान तरीकों से समस्या का समाधान करती है। यहां तक ​​कि अलगाववादी और आतंकवादी सहानुभूतिकारियों को भी तीन पत्थरबाजों के साथ सेना की क्रूरता का कोई सबूत नहीं मिला। न ही कोई उत्पीड़न नहीं, न ही कोई मारपीट, न ही कोई जीप पर निशान सिर्फ वो जमीन पर बैठे थे।

https://twitter.com/Iyervval/status/1008763282226843648

ये एक सराहनीय कदम है जिसे बार बार उपयोग में लाने की जरूरत है। पत्थरबाजों ने कई बार आतंकवादियों को बचाने की कोशिश की है जो आम नगरिक और सशस्त्र बलों पर हमला करते हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता, छद्म उदारवादी और आतंकवादी सहानुभूतिकार से हमें कोई मतलब नहीं चाहिए क्योंकि भारत और उसके नागरिक सशस्त्र बलों के साथ खड़े हैं। सेना जब चाहे तब आवश्यकतानुसार, रणनीतिक रूप से पत्थरबाज का फायदा उठा सकती है, सशस्त्र बलों की सुरक्षा सर्वोपरि है क्योंकि भारतीय अपनी सुरक्षा के लिए उनपर निर्भर हैं। यही वजह है कि सेना को पता है कब हथियार निकालना है और कब कवच का इस्तेमाल करना है।

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