मसालेदार मामला: एक हिंदू-मुस्लिम जोड़े ने आरोप लगाया था कि लखनऊ के रतन स्क्वायर स्थित पासपोर्ट ऑफिस के अधिकारी ने उनके आवेदन को ख़ारिज कर दिया था। जोड़े ने आरोप लगाया कि विकास मिश्रा नाम के एक अधिकारी ने उन्हें अपमानित किया और उनके साथ बदसलूकी की और उनका आवेदन भी स्वीकार नहीं किया। सेठ ने दावा किया कि अधिकारी ने काफी देर तक तेज आवाज में अभद्रता से बहस की यहां तक कि आसपास के लोग भी उनकी आवाज को स्पष्ट रूप से सुन सकते थे।
वायरल सोशल मीडिया स्टोरी: तन्वी सेठ और मोहम्मद अनस सिद्दीकी नाम के जोड़े ने इस मामले को ट्विटर पर उठाया और कड़ी कार्रवाई की मांग की। तन्वी सेठ ने अपने साथ हुई बदसलूकी की शिकायत ट्विटर के जरिये सुषमा स्वराज से भी की और इस मामले में उचित कदम उठाने की मांग की।
मीडिया का हस्तक्षेप: मुख्यधारा की मीडिया आउटलेट्स ने पूरी घटना पर तुरंत संज्ञान लिया। जैसा की वो करती आयी हैं उन्होंने सिर्फ एक तरफा कहानी दिखानी शुरू कर दी और पूरे मामले को जानने की कोशिश नहीं की।
त्वरित कार्रवाई: अधिकारी के खिलाफ कठोर कदम उठाये गये और उसे रिपोर्ट के बाद ट्रांसफर कर दिया गया। यहां तक कि अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू कर दी गयी और कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया।
अपराधी का पीड़ित बनना: इसके बाद पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा अपने बचाव में सामने आये। उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ कुछ जरुरी सवाल ही पूछे थे क्योंकि दस्तावेज में गड़बड़ी थी जोकि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के लिए खतरा पैदा कर सकता था। उन्होंने आगे कहा कि, मैंने महिला (तन्वी सेठ) से पूछा था कि क्यों उन्होंने अपने निकाहनामे में नाम का उल्लेख नहीं किया है और निकाहनामे में उन्हें अपने नाम का उल्लेख करने के लिए कहा था।
असंतुष्ट बीजेपी समर्थकों का क्रोध: बीजेपी के जागरूक, समर्पित और अक्सर ही तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले फेसबुक योद्धाओं ने सुषमा स्वराज की फेसबुक और ट्विटर पेज की रेटिंग घटानी शुरू कर दी है जोकि पूरी तरह से आश्चर्यजनक था। ऐसे में उनके फेसबुक पेज को 33000 से ज्यादा लोगों द्वारा पेज को 1.4 /5 रेटिंग दी गयी।
मामले में नया मोड़: तन्वी सेठ को जांच के लिए पासपोर्ट पुलिस को देने के लिए कहा गया। ऐसा माना जा रहा था कि पूरी घटना की दोबारा जांच की जा सकती है और हुआ भी ऐसा ही जिसके बाद आवेदक के नाम और स्थायी पते को लेकर नया विवाद सामने आया।
‘एड्रेस’ में गड़बड़ी: पुलिस और स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) की टीम को जांच में तन्वी के लखनऊ में रहने से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है। नियमों के मुताबिक, आवेदक का आवेदन में बताए गये पते पर एक साल से ज्यादा वक्त तक का निवास होना चाहिए, लेकिन पुलिस को जांच में ऐसे कोई सबूत नहीं मिला है। पुलिस के सूत्रों के मुताबिक अब तक हुई जांच और तन्वी के ससुराल वालों से बातचीत में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे ये साबित हो सके कि तन्वी सेठ द्वारा आवेदन में बताये गये स्थान पर एक साल से ज्यादा वक्त से रही हों। ऐसे में पुलिस अपने अधिकारों के तहत तन्वी के पासपोर्ट पर अब नेगेटिव रिपोर्ट लगा सकती है जिससे तन्वी का पासपोर्ट ख़ारिज हो सकता है।
और अंततः : अल्पसंख्यक पीड़ित कार्ड खेलना आम बात है ताकि वो कुछ समय के लिए अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकें। इस घटना से ये सच साबित हो गया। विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने दबाव में आकर जल्दबाजी में फैसला लिया है। हालांकि, कुछ अनिश्चित आरोपों के आधार पर किसी के खिलाफ एक्शन लेना पूरी तरह से न्यायिक नहीं है। कोई भी कदम उठाने से पहले कम से कम पासपोर्ट अधिकारी के पक्ष को भी सुना जाना चाहिए था। हम उम्मीद करते हैं कि इस मामले में जल्द से जल्द निष्कर्षों पर पहुंच कर अपराधियों को सामने लाया जाए और एक उदाहरण स्थापित किया जाए जिसे भविष्य में कोई भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल न हो सके।