स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के 25 सबसे गंदे शहरों में से उन्नीस पश्चिम बंगाल से हैं। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा राष्ट्रव्यापी स्वच्छता सर्वेक्षण जारी किया गया ताकि शहरों को स्वछता के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इस सर्वे को भारत सरकार के ट्रेडमार्क अभियान के तहत भारत के शहरों, छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों और बुनियादी ढांचे को साफ करने के लिए किया गया है। पहला सर्वे 2016 में जारी किया गया था जिसमें सभी राज्यों की राजधानी और शहरों में आबादी दस लाख से अधिक थी। मैसूर को 2016 में सूची में शीर्ष स्थान मिला था। 2017 में 10034 से अधिक आबादी वाले 434 शहर और सभी राज्य की राजधानियों को स्थान दिया गया था। इस सर्वे में इंदौर सबसे स्वच्छ शहर के रूप में उभरा था। 2018 के सर्वेक्षण में सरकार ने पूरे देश में 1 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में इस सर्वे को कराया है। सर्वेक्षण में 61 कैंटोनमेंट बोर्ड सहित 4203 शहरों को शामिल किया गया।
स्वच्छ भारत सर्वे 2018 में झारखंड बेहतरीन प्रदर्शन के साथ पहले स्थान पर वहीं महाराष्ट्र दूसरे तथा छत्तीसगढ़ ने तीसरे स्थान पर हैं। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले दस में से पश्चिम बंगाल के आठ शहर शामिल हैं। वामपंथी शासन को उखाड़कर 2011 में सत्ता में आई टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने दावा किया था कि वो पश्चिम बंगाल में तेजी से विकास और स्वच्छता को बढ़ावा देंगी लेकिन जुमले तो जुमले ही होते हैं। ममता किस दिशा में शहर का विकास कर रही हैं वो इस रिपोर्ट में स्वछता के मामलों में सबसे खराब प्रदर्शन के साथ सामने आ गया है। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी, रायपुर, मध्यमग्राम, उत्तरी बैरकपुर, बांकुरा जैसे शहर कचरे के संग्रह, खुले शौचालय के चलते सबसे निचले पायदान पर हैं। इस सर्वे में छः मानकों के आधार पर सबसे स्वच्छ शहरों को रैंक दिया गया है इनमें नगरपालिका अपशिष्ट, स्वच्छता, नवाचार का संग्रह और परिवहन अन्य मानकों के बीच थे।
पश्चिम बंगाल के नेतृत्व में ममता बनर्जी ने 2016, 2017 में पिछले दो सर्वेक्षणों में भाग नहीं लिया था। पश्चिम बंगाल ने इस साल पहली बार स्वच्छ सर्वेक्षण में हिस्सा लिया। बनर्जी ने इससे पहले सर्वे में राज्य को भाग लेने की इजाजत नहीं दी थी, शायद वह जानती थी कि शहरों का प्रदर्शन इससे भी बदतर होता क्योंकि राज्य में स्वच्छता बनाए रखने के लिए उनके प्रशासन ने कोई काम नहीं किया है। इस सर्वे में नागालैंड, पुडुचेरी और त्रिपुरा के बाद पश्चिम बंगाल देश के निचले चार सबसे गंदे राज्यों में से एक है। सर्वे के मुताबिक इंदौर लगातार दूसरे वर्ष भी देश का सबसे स्वच्छ शहर वहीं, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: भोपाल और चंडीगढ़ रहा। पश्चिम बंगाल के प्रधान सचिव (शहरी मामलों और नगरपालिका मामलों विभाग) सुब्रत गुप्ता ने कहा, “मुझे इस तरह के सर्वे की कोई जानकारी नहीं है। मैं सर्वे की रिपोर्ट नहीं देखी है, ऐसे में इस पर कोई टिप्पणी करने में सक्षम नहीं हूं। हालांकि, राज्य निर्मल बांग्ला नामक अपना स्वयं का स्वच्छता कार्यक्रम चलाता है, जिसके तहत हम अपने शहरों को रैंक करते हैं।“
पश्चिम बंगाल का प्रशासन अकेले ही बिना केंद्र सरकार के सहयोग के कार्य कर रहा है। ममता बनर्जी ने बीजेपी-विरोधी मुद्दे को इतनी गंभीरता से ले लिया है कि वो केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन जैसे विकास कार्यक्रमों में भी सहयोग नहीं कर रही हैं। केंद्र सरकार सहकारी संघवाद पर जोर देती आयी है और ओडिशा, आंध्र प्रदेश जैसे गैर-बीजेपी सरकार द्वारा संचालित कई राज्यों ने इसकी सराहना की है। सरकार की ओर से किसी तीसरे पक्ष द्वारा निष्पक्ष सर्वेक्षण किया गया था लेकिन इसके बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार अपने स्वयं के सर्वेक्षण आयोजित करके संसाधनों को बर्बाद कर रही है जिसमें ये राज्य को दुनिया में सबसे स्वच्छ स्थान के रूप में रैंक कर सकता है। राज्य में ममता बनर्जी प्रशासन हर मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रहा है, यहां तक कि ये स्वतंत्र और निष्पक्ष स्थानीय चुनाव भी नहीं करा सका है और स्थानीय चुनावों के दौरान तो टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी समर्थकों की हत्या तक कर दी थी। राज्य में नियमित दंगे और सांप्रदायिक हिंसा में भी टीएमसी कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही है। स्वच्छता, गरीबी उन्नयन, स्वास्थ्य संकेतक जैसे विकास कार्यों में राज्य का प्रदर्शन खराब रहा है। आजादी के बाद देश में पश्चिम बंगाल सबसे समृद्ध राज्यों में से एक था लेकिन इसकी अर्थव्यवस्था कम्युनिस्ट और टीएमसी प्रशासन द्वारा बर्बाद कर दी गयी। ममता बनर्जी के नेतृत्व में कोई भी नहीं जानता कि पश्चिम बंगाल का आगे क्या होने वाला है।