यदि अनावश्यक आक्रोश को जन्म देना एक कला है तो भारतीय मीडिया इसमें सबसे आगे है, भारतीय मीडिया आधारहीन मुद्दे को विवाद का रूप देने में माहिर है और आम जनता से जुड़े गंभीर मुद्दे को नजरअंदाज कर देती है। भारत की मुख्यधारा की मीडिया ने एक बार फिर से ऐसा ही कुछ किया है और निराधार आक्रोश को जन्म दिया है और इस बार उनके निशाने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जिन्होंने मुस्लिम की टोपी को पहनने से इंकार कर दिया था। यूपी के सीएम ने गुरुवार को मगहर में संत कबीर दास जी की मजार पर संरक्षक द्वारा कबीर की टोपी पहनने के लिए कहने पर विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया था।
अब छद्म-धर्मनिरपेक्ष मीडिया इस पर आक्रोशित है। हालांकि, इसमें हैरान कर देने वाली कोई नई बात नहीं है इस तथ्य को जानते हुए भी कि योगी आदित्यनाथ एक हिंदू नेता हैं। योगी की पसंद की स्वतंत्रता पर सवाल उठाते हुए कई अनावश्यक बहस शुरू कर दी गयी। राष्ट्रीय चैनल पर एक ऐसे ही अनावश्यक बहस में कट्टरता अपने चरम पर थी। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा जो इस्लामी विद्वान इलियास शराफुद्दीन के साथ इस मुद्दे को लेकर बहस कर रहे थे। बहस में संबित पात्रा ने एक बहुत ही सही सवाल उठाया और इलियास शराफुद्दीन से पूछा कि ,”क्या आप अपने माथे पर तिलक लगाएंगे? इसके बाद तथाकथित विद्वान ने जो कहा वो शर्मनाक और चौंकाने वाला था। जो जवाब उन्होंने दिया उससे उनकी कट्टरपंथी मानसिकता बाहर आ गयी। उन्होंने कहा कि, वो ऐसे कोई अनुष्ठान नहीं करेंगे जो उन्हें नरक में भेजता हो, बाद में अपने बयान का बचाव करने की कोशिश में उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण ने भी भागवत गीता में यही बात कही थी। इसके साथ ही वो एक बार फिर से बेतुका और निराधार बयान के साथ सामने आ गये और ये भी तथाकथित इस्लामी विद्वान् द्वारा निर्मित थी। लेकिन तीर कमान से निकल चुका था। इलियास शराफुद्दीन के इस बयान ने हिंदू धर्म की निंदा की और उन्हें हिंदुओं की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए यूं ही नहीं जाने देना चाहिए।
इलियास शराफुद्दीन जैसे लोग सोचते हैं कि धर्मनिरपेक्षता की जिम्मेदारी निभाना सिर्फ हिंदुओं के कंधे पर है और ये हिंदू हैं जो हमेशा असहिष्णुता के समक्ष आत्मसमर्पण करते हैं। वो ये उम्मीद करते हैं कि हिंदू उनके रीति-रिवाजों का पालन करें और इसके बदले वो हिंदुओं के धर्म की निंदा करते हैं। यहां तक कि उनके धर्म के अनुयायियों को भी इस तरह के कट्टरवादी लोगों के हमले और उगले हुए जहर का सामना करना पड़ता है। एक मुस्लिम बीजेपी एमएलसी को एक बार हिंदू भगवान की पूजा करने के लिए बहिष्कृत कर दिया गया था। एक बार बिहार के मुस्लिम विधायक के खिलाफ फतवा जारी किया गया था क्योंकि उन्होंने जय श्री राम का जाप किया था। वहीं, अभिनेत्री सना अमीन को कृष्णदासी नामक एक धारावाहिक में सिंदूर और मंगलसुत्र पहनने के लिए सोशल मीडिया के जरिये खूब आलोचना सहनी पड़ी थी। धार्मिक कट्टरता के एक और शर्मनाक प्रदर्शन में, एक 22 वर्षीय मुस्लिम लड़की को हिंदू भजन गाने के लिए धमकी दी गयी थी और उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया था। इसी तरह की एक और घटना में, असम के 46 इस्लामिक क्लर्किक्स ने 16 वर्षीय गायिका नाहिद अफ्रिन के खिलाफ फतवा जारी किया था क्योंकि उनके अनुसार संगीत, नृत्य, नाटक और रंगमंच आदि शरिया कानूनों के खिलाफ है। पिछले साल दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम महिलाओं के एक समूह के खिलाफ फतवा जारी किया था जिन्होंने वाराणसी में दिवाली पर ‘आरती’ की थी।
‘Will you put Tilak on your forehead?’ asks @sambitswaraj, National Spokesperson, BJP to Illyas Sharafuddin, Islamic Scholar from Hyderabad #YogiTopiRow pic.twitter.com/G6I8ayfZLq
— TIMES NOW (@TimesNow) June 28, 2018
टेलीविज़न पर ये असहिष्णु कट्टरवादी खुद को भारत में धर्मनिरपेक्षता के योद्धा के रूप में पेश करते हैं। यदि ऐसे लोगों के अनुयायी हैं तो कोई भी अपने अनुयायियों को नरक में जाने से नहीं बचा सकता है। वास्तव में ऐसे विद्वानों की मानसिकता इतनी असहिष्णु है कि वो खुद ही नरक में अपने कर्मों का फल भुगतेंगे।
टोपी पहने से इंकार करने का मतलब इस्लाम और मुस्लिम का अनादर नहीं है। एक नेता को उसके कार्यों के आधार पर परखना चाहिए जो हर समुदाय को आगे बढ़ाने की दिशा में हो न कि टोपी पहनकर उनके प्रतीकवाद के कृत्यों के आधार पर। सीएम योगी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के सुधार के लिए काफी कुछ कर रहे हैं।
ये पूरा विवाद ही अपने आप में बेतुका है। बीजेपी के कैबिनेट मंत्री महेश शर्मा भी वहां थे लेकिन किसी ने भी उन्हें टोपी की पेशकश नहीं की। ऐसा लगता है कि टोपी पहनने का पूरा मामला सिर्फ एक विवाद पैदा करने के इरादे से था। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है एक दूसरे की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करना और न कि अपने धर्म को किसी और के धर्म पर थोपना।