शुक्रवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई इस दौरान तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सांसद जयदेव गल्ला ने आंध्र प्रदेश की समस्याओं को उठाते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश को वो हक और सुविधा नहीं मिली है जो राज्य को देने के लिए कहा गया था। उन्होंने यहां तक कहा कि आंध्र प्रदेश का विभाजन नैतिक और वैज्ञानिक रूप से नहीं हुआ है, राज्य की जनता को ठगा गया है। बेशक उन्होंने ये मुद्दा कई बार उठाया है और इस मुद्दे को हमेशा ख़ारिज कर दिया गया। हाँ, इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक पार्टियों के बीच काफी खींचतान है और वो इस मुद्दे का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के दौरान अपने फायदे के लिए करती हैं।
तेलगू देशम पार्टी बार बार आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाती है और पीएम मोदी ने कई बार उनकी इस मांग पर विचार करने का भरोसा भी दिया है। कई बार पीएम मोदी ने जोर देते हुए कहा है कि वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य पुनर्गठन आयोग के तहत बहुत ही शांतिप्रद तरीके से तीन नए राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड बनाया था और तीनों ही राज्य आज विकास कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश का विभाजन किया था और इस राज्य की आवश्यक मांगों के प्रति उनका व्यवहार तब शर्मनाक था। कांग्रेस ने आध्रं प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 द्वारा आध्रं प्रदेश से अलग करके 2 जून, 2014 को तेलंगाना राज्य बनाया था लेकिन राज्य के विभाजन में राजनीतिक हित को सबसे ऊपर रखा गया था जिसकी वजह से कई वर्षों तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘हैदराबाद’ को राजधानी बनाने को लेकर खींचतान चली। इसे सुलझाने के लिए 2013 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की कि दस सालों के लिए हैदराबाद ही दोनों राज्यों की राजधानी रहेगी। फिर भी, कई मांगों को लेकर आंध्र प्रदेश खुद को ठगा हुआ महसूस करता है क्योंकि विभाजन तो हुआ, लेकिन सिर्फ राजनीतिक हित के तहत उसमें जनता का हित दरकिनार कर दिया गया।
कांग्रेस ने बंद दरवाजे में तेलंगाना को अलग किया और वजह बताई कि सुविधाओँ की कमी, जल बंटवारे में भेदभाव, बेरोजगारी और बजट आवंटन में भेदभाव जैसे मुद्दों की मांग को लेकर विभाजन किया गया है लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। दरअसल, वाईएसआर के निधन के बाद उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी ने वाईएसआर कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी बनाई थी जिसके बाद कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ गयी। अपनी पकड़ को कमजोर पड़ता देख कांग्रेस ने तेलंगाना कार्ड खेला था। कांग्रेस ने सोचा कि तेलंगाना को अलग कर कम से कम वो अपने लिए सीटों का जुगाड़ कर लेगी और इस तरह से आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग राज्य बन गया।
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड तीनों ही राज्य आज संपन्न हैं और तेजी से प्रगति कर रहे हैं। रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में विकास तेजी से हुआ नक्सलवाद कम हुआ, कृषि व्यवस्था में नए बदलाव से किसानों को लाभ मिल रहा है, यहां तक कि आम जनता भी रमन सिंह के नेतृत्व से संतुष्ट है। छत्तीसगढ़ में कृषि विकास दर राष्ट्रीय कृषि विकास दर की तुलना में अधिक है। कृषि के क्षेत्र में प्रतिष्ठित पुरस्कार कृषि कर्मण पुरस्कार से छत्तीसगढ़ को नवाजा गया है। वहीं वर्ष 2011-2016 के बीच विकास दर के मामले में झारखंड को देश में चौथा स्थान प्राप्त है। नौनिहालों की शिक्षा के लिए केंद्र की फ्लैगशिप योजना सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) में उत्तराखंड देशभर में दूसरे स्थान पर है। उत्तराखंड में कानून व्यस्था भी दुरुस्त हुई है इसी की बदौलत उत्तराखंड के 2 थाने देश के टॉप 10 में हैं। वहीं, आंध्र प्रदेश अपने साथ हुए अन्याय के लिए मांग कर रहा है और बुनियादी सुविधाओं के लिए लगातर विशेष राज्य की मांग कर रहा है।
अगर कांग्रेस ने अपना राजनीतिक फायदे न देखा होता तो आज तेलंगाना विवाद जन्म ही नहीं लेता और न ही आंध्र और तेलंगाना की जनता के साथ अन्याय होता और दोनों ही राज्य संपन्न होते। इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस को आम जनता के हित से कोई फर्क नहीं पड़ता और वो अपनी इस गलती को भी ऐसे चित्रित करती है जैसे पार्टी ने कोई महान काम किया हो। आज भी कांग्रेस और टीडीपी इस मुद्दे को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, पीएम मोदी ने संसद में स्पष्ट कर दिया कि वो आंध्र प्रदेश को अनदेखा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि, एनडीए की सरकार में आंध्र और तेलंगाना के विकास में कोई कमी नहीं आएगी और पीएम मोदी आने वाले दिनों में इसे जमीनी स्तर पर भी लायेंगे । खैर, ये देखना दुखद है कि झगड़ा टीडीपी और वायएसआर का है और इस्तेमाल संसद का किया जा रहा है और आम जनता को भ्रमित करने की पूरी कोशिश की जा रही है।