गोधरा मुस्लिमों ने बीजेपी को समर्थन न देने के लिए निर्दलीय पार्षदों को उपहार में दिया मोटरसाइकिल

गोधरा मोटरसाइकिल

तुष्टिकरण की राजनीति विश्व भर की राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट बैंक का जरिया बन चुका है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। हमारे राजनेता अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए बदनाम हैं यहां तक कि वो इसके लिए राष्ट्र की सुरक्षा व अखंडता को भी खतरे में डाल देते हैं। अभी हाल ही में गोधरा में जो हुआ उसे देखकर ये और स्पष्ट हो गया कि कैसे ये अल्पसंख्यक समुदाय इन राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जा रही तुष्टिकरण का भुगतान कर रहे हैं और अपनी पार्टियों के प्रति वफादारी को दिखाने के लिए उन्हें पुरस्कृत करने में भी संकोच नहीं करते।

गोधरा के स्थानीय इस्लामिक समुदाय ने मुस्लिम घांची समाज के बैनर के तहत न सिर्फ 14 निर्दलीय पार्षदों को सम्मानित किया जिन्होंने अभी हाल ही में संपन्न नगरपालिका चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन नहीं दिया, साथ ही उन्हें मोटरसाइकिल देकर पुरस्कृत कर उनकी वफादारी के लिए इनाम दिया।

गोधरा के बारे बताने की जरूरत नहीं है। गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित इस छोटे से शहर को आज भी साबरमती एक्सप्रेस के एस6 कोच में 27 फ़रवरी, 2002 को हुए अमानवीय नरसंहार के लिए जाना जाता है जिसमें 59 लोगों को बंद कर दिया गया था और इस्लामी दंगाइयों की भीड़ ने उन्हें जिंदा जला दिया था। इस घटना के बाद पूरे राज्य में 2002 के दंगे हुए और इस हिंसा में बड़ी संख्या में हिंदू और मुस्लिम मारे गए थे। इन दंगों को गोधरा दंगो के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि गोधरा इस नरसंहार का प्रारंभिक बिंदु था।

मुस्लिम घांची समाज के अध्यक्ष फिरदौस कोठी को ने कहा, “इन पार्षदों ने हमेशा हमारे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति एकजुटता दिखाई है और कभी हमारे समुदाय के प्रति सांप्रदायिक पक्षपात नहीं किया है। सभी समुदाय के सदस्य आज एकजुट हुए हैं ताकि अपराध को कम करने के लिए, लड़कियों की शिक्षा के लिए और सांप्रदायिक सद्भाव की दिशा में काम करने के लिए इन सभी का शुक्रिया अदा कर सकें।”

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और न ही ये भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है। हम सभी जानते हैं कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में राजनेताओं ने सब्सिडी वाले उत्पादों, मुफ्त उपहार, टीवी के क जरिये कई विशिष्ट समुदायों के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करती है और इसकी सूची काफी लंबी है। यहां इस बार फर्क सिर्फ इतना है कि राजनेताओं की जगह मतदाताओं ने इस नेक काम में अपनी जिम्मेदारी निभाई है।

आमतौर पर लोग अपने कार्य को संपन्न कराने के लिए राजनेताओं को घूस देते हैं लेकिन इस मामले में राजनेताओं को उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं के लिए खुलेआम रिश्वत / मुआवजा दिया जा रहा है। हो सकता है बीजेपी सभी के लिए सही विकल्प न हो लेकिन बीजेपी को समर्थन न देने के लिए इस अंधी नफरत को खुलेआम  पुरुस्कृत किया जाना निश्चित तौर पर चिंताजनक विषय है। ऐसे में ये सवाल कि एक पार्टी या व्यक्ति के लिए किसी की नफरत कितनी हो सकती है कि अपने दुश्मनों का समर्थन न करने एक लिए वो काउंसलर्स को मोटरसाइकिल उपहार में दे रहे हैं?

दिलचस्प बात ये है कि, 14 निर्दलीय पार्षदों को मोटरसाइकिल देकर पुरस्कृत किया गया लेकिन इनमें से सिर्फ एक ने ही मोटरसाइकिल लौटा दी और ये शख्स मुस्लिम समुदाय से भी नहीं है। इस व्यक्ति का नाम संजय सोनी है और मोटरसाइकिल को समुदाय में लौटने के अलावा, उन्होंने 11,000 रुपये बच्चों की शिक्षा के लिए दान भी किये।

राजनेताओं द्वारा इस तुष्टिकरण से समस्या ये है कि कभी समुदाय की दुर्दशा को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। हर समुदाय की अपनी शिकायतें होती हैं लेकिन आस-पास की परिस्थितियों की आड़ में इस तरह के कार्यों से सिर्फ समुदायों  से जुड़ी शिकायतों का आधार कमजोर बनता है। भारत में विपक्षी पार्टियों की राजनीति निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। विपक्ष समाज के कुछ वर्गों का तुष्टिकरण करके सत्ता के सपने बुन रही है लेकिन इसके बावजूद वो अपने इन प्रयासों से सत्ता हासिल कर पाने में सफल नहीं हो पायेगी।

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