असम की एथलीट हिमा दास ने इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन वर्ल्ड के अंडर-20 में स्वर्ण जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। उन्होंने फ़िनलैंड के टैम्पेयर शहर में आयोजित आईएएएफ़ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता है और इसके लिए उन्होंने मात्र 51।46 सेकेंड में दौड़ पूरी की थी। इस स्पर्धा में उनके शानदार प्रदर्शन की सराहना पूरे भारत में की जा रही है। राजनेता, खिलाड़ी सभी ने सोशल मीडिया के जरिये हिमा को बधाई दी। भारत से मिल रही प्रशंसा के दौरान तब मामला गरमा गया जब ऐथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (जो देश के खिलाड़ियों की देखभाल और पोषण करने के लिए जाना जाता है) ने ट्वीट किया जिसमें उनकी छवि पर इस ट्वीट से गहरी चोट लगी है। एएफआई ने एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें हिमा दास एक पत्रकार से बात करते हुए नजर आ रही थीं साथ ही इस वीडियो के साथ एक कैप्शन भी था,
#HimaDas speking to media after her SF win at #iaaftampere2018 @iaaforg Not so fluent in English but she gave her best there too. So proud of u #HimaDas Keep rocking & yeah,try ur best in final! @ioaindia @IndianOlympians @TejaswinShankar @PTI_News @StarSportsIndia @hotstartweets pic.twitter.com/N3PdEamJen
— Athletics Federation of India (@afiindia) July 12, 2018
विडंबना ये है कि हिमा दास के इंग्लिश बोले जाने के तरीके का मजाक उड़ाते हुए एएफआई ने खुद ही ‘स्पीकिंग’ की जगह स्पेकिंग (speking) लिखा था। हालांकि, एएफआई ट्विटर हैंडल सम्भालने वालों की समझ भी लगता है कहीं खो गई है जो समझ नहीं पाए कि जिस बेटी ने देश का नाम रौशन किया उसका मजाक उड़ाना कितना शर्मनाक है।
ट्वीट जो हिमा दास द्वारा सेमी-फाइनल जीतने के बाद पोस्ट किया गया था वो कई स्तरों पर गलत था। हिमा दास एक छोटे से गांव से हैं जहां आधुनिक स्कूलों की कमी है जो इंग्लिश भाषा की शिक्षा प्रदान करती हैं। हां ये सच है कि उन्हें इंग्लिश बोलना अच्छी तरह से नहीं आता है और उन्हें अपनी मातृभाषा (असमिया या स्थानीय बोली) के अलावा हिंदी भी सीखनी पड़ी थी। ऐसे में उनके लिए इंग्लिश तीसरी या चौथी भाषा होगी।
दास जो अभी सिर्फ 18 वर्ष की हैं उन्होंने अपनी मेहनत, परिक्षण और कौशलता से अपने करियर में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है और वो आने वाले दिनों में और भी आगे जायेंगी और हर स्तर पर वो अपना सर्वश्रेष्ठ कर सकती हैं। ऐसे में उनके लिए बेहतर इंग्लिश बोलना कोई बड़ी बात नहीं है और वो इसपर अपना ज्यादा समय व्यर्थ भी नहीं करेंगी। ट्विटर पर एएफआई को बेतुके ट्वीट के लिए एक यूजर ने बढ़िया जवाब दिया और इस जवाब में यूजर ने कहा, “वो अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए टैम्पेयर में उतरीं हैं न कि अंग्रेजी के लिए। आपने जो ट्वीट करके कहा @afiindia वो शर्मनाक है।”
संभ्रांतवादी की मानसिकता इस अवहेलना का मूल कारण है जिसका सामना हमारे एथलीटों को आये दिन करना पड़ता है। क्यों सिर्फ एथलीटों को ही नहीं बल्कि अन्य लोगों को भी विदेशी भाषा बोलने की कुशलता के आधार पर उनकी शिक्षा का आंकलन किया जाता है। इंग्लिश सिर्फ एक भाषा है और ये जरुरी नहीं है कि सभी को ये भाषा आती हो, कम से कम एक एथलीट के लिए ये जरुरी नहीं होना चाहिए जो अपने खेल में जीत के लिए प्रशिक्षित किया जाता हो। अतीत में भी कई ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जब हरियाणा के खिलाड़ियों को इंग्लिश भाषा बेहतर तरीके से न बोल पाने के लिए संभ्रांतवादी लेफ्ट उदारवादी केबल द्वारा मजाक बनाया गया था और उनके राष्ट्रवादी रुखों के लिए भी उनका उपहास किया गया था और यही केबल सिर्फ एक भाषा को बोलने की कुशलता को आधुनिकता मानते हैं। ऐसे लोगों की मानसिकता के लिए हिमा दास एक नया शिकार हैं जिसे हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। उनकी जैसी एथलीट का उपहास बनाने की जगह समाज में उनकी काबिलियत की प्रशंसा करनी चाहिए और उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। बाद में एएफआई ने अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी और स्पष्टीकरण देने की कोशिश की कि वो अपना पोस्ट सिर्फ हिमा दास के प्रदर्शन की सराहना करने के विचार से निहित था न कि उनका मजाक उड़ाने से लेकिन, एएफआई, धावकों को वास्तव में बेहतर होने के लिए किसी भाषा में कुशल होने की जरूरत नहीं है। उम्मीद करते हैं कि आपको ये बात समझ आ गयी होगी।