छद्म उदारवाद और राष्ट्रवादी विचारधारा की नींव को हिलाकर रख देने वाले मामले में जेएनयू के उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जेएनयू की उच्चस्तरीय जांच समिति ने दंडित किया है। जेएनयू की उच्च स्तरीय समिति ने संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरू को फांसी देने के खिलाफ फरवरी 2016 में, परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम से जुड़े मामले में उमर खालिद के निष्कासन और कन्हैया कुमार पर लगाए गए 10,000 रुपए के जुर्माने की सजा को बरकरार रखा है। अफजल गुरू को फांसी देने के खिलाफ कैंपस में 2016 में जेएनयू के परिसर में विरोध प्रदर्शन किया गया था। उस शर्मनाक आयोजन में भारत के विनाश और विभाजन के लिए आवाहन किया गया था। विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत विरोधी लगाये गये नारों का कई राजनीतिक पार्टियों ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों के तहत बचाव किया था। हालांकि, ऐसा लगता है कि जो लोग इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए जिम्मेदार थे अंततः उनके खिलाफ सख्त कदम उठाये जा रहे हैं।
इससे पहले, जेएनयू पैनल ने 2016 में उमर खालिद समेत दो अन्य छात्रों को निष्कासित किया था। साथ ही अनुशासनात्मक नियमों के उल्लंघन के लिए छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत 13 अन्य छात्रों पर जुर्माना भी लगाया था। जेएनयू पैनल के इस सख्त कदम के बाद छात्रों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद अदालत ने पैनल के फैसले की समीक्षा के लिए विश्वविद्यालय को मामला अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष रखने का निर्देश दिया था। इसके बाद पैनल द्वारा लगाये गये जुर्माने से कुछ छात्रों को राहत दी गयी थी और जेएनयू के पूर्व छात्रों कोई दंड नहीं दिया गया था। हालांकि, खालिद को निष्कासित करने और कन्हैया पर लगाये गये जुर्माने को जारी रखा गया। खालिद, कन्हैया और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था और फरवरी 2016 में विवादास्पद और राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन मामले में गिरफ्तार किया था। फिलहाल, तीनों अभी जमानत पर बाहर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार पैनल के फैसले की समीक्षा के दौरान आरोपियों को दस्तावेज और वीडियो जैसे साक्ष्यों को गलत साबित करने की अनुमति दी गयी थी। उन्हें अपीलीय प्राधिकारी की समीक्षा पूरी किये जाने से पहले तक अपने बचाव के लिए अपना पक्ष रखने का भी मौका दिया गया था। इसीलिए ये स्पष्ट है कि पैनल के फैसले की समीक्षा पूरी इमानदारी से और सही दिशा में की गयी है जिसमें सभी न्यायिक कानून और नियमों का पालन किया गया है।
कन्हैया कुमार और उमर खालिद ने वामपंथी उदारवादी केबल के चरम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर राजनीतिक फायदे के लिए अलगाववाद और राजद्रोह का समर्थन कर सभी सीमाएं लांघ दी। जेएनयू के परिसर में इस तरह का शर्मनाक कार्यक्रम को आयोजित किये जाने के बाद बीजेपी और मोदी से नफरत करने वाले कुछ वर्गों ने जोर देते हुए कहा था कि याकूब मेमन और अफज़ल गुरु जैसे आतंकवादियों का समर्थन करना उनका अधिकार है। उनके अनुसार अभिवयक्ति की बोलने की आजादी और सरकार का विरोध करने के अधिकार के तहत भारत का विनाश करने और टुकड़ों में बांटने के लिए की गयी नारेबाजी भी उचित था। जबकि खालिद अधिक आक्रामक है और अक्सर ही अलगाववादी टिप्पणी करता है, कन्हैया एक चतुर कम्युनिस्ट है और मुख्यधारा की मीडिया में पीड़ित कार्ड खेलने की कोशिश करता है। ये दुर्भाग्य की बात है कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां जो चुनाव और पार्टी की सीमित विचारधारा से आगे नहीं देखती, उन्होंने कन्हैया का समर्थन किया और उसे बोलने की आजादी के प्रतीक के उदाहरण के रूप में पेश किया। मोदी विरोधी मोर्चे के साथ उनके जुड़ाव को इस बयान से और मजबूती मिली जिसमें कन्हैया ने कहा था कि, “अगर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और बिहार में लेफ्ट का गठबंधन होता है और वो मुझसे एक आम उम्मीदवार बनने और पैमेरे चुनाव के लिए पैसे एकत्रित करने को कहते हैं तो मैं उम्मीदवार बन सकता हूं।“ इससे स्पष्ट है कि कन्हैया को मोदी विरोधी राजनीतिक गठबंधन का बड़ा समर्थन दिया जा रहा है।
जेएनयू की उच्च स्तरीय समिति ने इसीलिए बहुत ही बेहतरीन काम किया है और इससे उन्होंने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि कोई भी भारत विरोधी कार्यों को बढ़ावा नहीं दे सकता है और अगर कोई ऐसा करता है तो उन्हें दंडित किया जायेगा। छात्रों की आजादी स्वीकार्य है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि छात्र आतंकवादी समर्थक और देश विरोधी गतिविधियों वाले कार्यों को परिसर में बढ़ावा दे। ये एक कठोर संदेश है पूरे ‘आजादी’ गैंग के लिए जो ये सोचते हैं कि वो जो चाहते हैं उसका प्रचार या प्रसार कर सकते हैं चाहे इसके लिए भारत की अखंडता पर प्रभाव डालने की ही बात क्यों न हो।