असम में आज बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल मसौदा सोमवार को जारी कर दिया गया। असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर समन्यवयक प्रतीक हाजेला ने एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी किया और कहा कि राज्य में रह रहे कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ नागरिक वैध पाए गए हैं, इस मसौदे में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं है। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि ये सिर्फ अंतिम मसौदा है, फाइनल एनआरसी लिस्ट अभी आनी बाकी है ऐसे में जिन लोगों का नाम ड्राफ्ट में नहीं है घबराएं नहीं। इस मसौदे के आने के बाद से राज्य में अवैध रूप से रह रहे बंगलादेशियों की भारी जनसंख्या सामने आयी है।
Out of 3.29 crore people, 2.89 crore have been found eligible to be included. This is just a draft, and not the final list.The people who are not included can make claims and objections:State NRC Coordinator #NRCAssam
— ANI (@ANI) July 30, 2018
Historic day in country & Assam :
40,07708 number of persons name excluded from Complete Draft of NRC.
3,29,91,385 members applied for NRC
2,89,83,677 numbers of persons found eligible for inclusion in Complete Draft. #NRCAssam pic.twitter.com/dx8FoPca6Q— News18 Assam NE (@News18Northeast) July 30, 2018
वहीं, रविवार को राज्य के सीएम सर्बानंद सोनोवाल ने अवैध अप्रवासियों को राज्य से बाहर करने की दिशा में इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा था कि, “लोगों को इस मसौदे को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है, राज्य सरकार एनआरसी सूची में नाम ढूंढने में लोगों की मदद करेगी।”
People whose names don't appear on the final list, they need not worry. They will have opportunity for making claims and objections. They won't be treated as foreigners: @sarbanandsonwal, Assam CM on #NRCAssam
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— News18 (@CNNnews18) July 30, 2018
एनआरसी राज्य में रहने वाले भारतीय नागरिकों का कानूनी रिकॉर्ड है जो उन्हें अवैध बंगलादेशी अप्रवासियों से अलग करता है। इस रजिस्टर में लोगों के नाम और उनकी संख्या, घर, संपत्तियां आदि का विवरण होता है। इसे सबसे पहले वर्ष 1951 में जनगणना के बाद तैयार किया गया था। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से 1979 में एक बार फिर से इसे अपडेट करने की मांग उठी थी और इसके लिए ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम गण संग्राम परिषद के नेतृत्व में आन्दोलन भी किया था। इस आंदोलन के बाद 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था जिसके मुताबिक, ‘25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहां से जाना होगा।‘ असम समझौते के बाद से ही एनआरसी को अपडेट करने का काम चल रहा है। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का पहला मसौदा 31 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था जिसमें असम के कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 1.9 करोड़ लोगों को कानूनी रूप से भारत का नागरिक माना गया था।
आजादी के बाद से ही पाकिस्तान से अप्रवासियों का आना भारत में जारी था लेकिन 1971 में पाकिस्तान से विभाजन के बाद जब बांग्लादेश अस्तित्व में आया तबसे असम में घुसपैठियों का विषय गरमाने लगा था। असम में प्रवेश करने वाले अवैध अप्रवासी देश के कई हिस्सों में बसने लगे। असम में लाखों की तादाद में बांग्लादेशियों की वजह से वहां के स्थानीय लोगों के सामने सामाजिक असुरक्षा व अन्य गंभीर स्थितियां पैदा होने लगी। इसके साथ ही कई गंभीर अपराधों से आंतरिक सुरक्षा को खतरा बढ़ने लगा। तत्कालीन सरकार ने चुनावी गणित व तुष्टिकरण की नीति के चलते 1979 में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता प्रदान कर दी जिससे असम में स्थिति और बिगड़ गयी। हमेशा से राजनीतिक फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियों ने तुष्टिकरण की राजनीति की है जिससे राज्य की आबादी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। जब असम में इसके खिलाफ 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने आंदोलन किया तब कई सालों बाद 1985 में ‘असम समझौता आया’। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पर काम शुरू हुआ था लेकिन फिर भी तत्कालीन सरकार का रवैया इस दिशा में सख्त नहीं था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अवैध बांग्लादेशियों को यहां बसाने के पक्ष में ही रही हैं और यही वजह है कि उन्होंने एनआरसी का विरोध भी किया।
असम समेत पूरे भारत में अवैध बंगलादेशी मुस्लिमों की वजह से डेमोग्राफी और अन्य महत्वपूर्ण समस्याओं को देखते हुए 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान असम चुनाव प्रचार सभा में नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के साथ ही अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेज दिया जाएगा। सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने अपने वादे के मुताबिक इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया और इस तरह बीजेपी सरकार ने बता दिया कि वो अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए गंभीर है। असम के मुंख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल सत्ता में आने के बाद से ही राज्य के लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए काम कर रहे हैं और इसी दिशा में उन्होंने राज्य से अवैध अप्रवासियों को राज्य से बाहर निकालने के लिए एनआरसी को अपडेट करने के लिए तेजी से काम शुरू कर दिया जो पूर्व की सरकारें वर्षों से अनदेखा कर रही थीं। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से अब ये दूसरी बार है जब एनआरसी का दूसरा मसौदा तैयार हुआ है और जल्द ही इसकी अंतिम सूची भी जारी कर दी जाएगी। साथ ही जो लोग एनआरसी की प्रक्रिया को नहीं जानते हैं उनके लिए राज्य सरकार मुहिम भी चलाएगी ताकि राज्य के किसी भी वैध नागरिक के साथ अन्याय न हो। असम की तरह ही झारखंड सरकार भी नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने वाली है। झारखंड के कई जिलों से अवैध बांग्लादेशियों के भारी प्रवाह की शिकायतों के बाद राज्य ने ये कदम उठाया है। वहीं, , बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजजू ने भी ये स्पष्ट कर दिया है कि रोहिंग्या को भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार ने देश में बढ़ते अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है अगर पूर्व की सरकारों ने शुरू से ही अपनी तुष्टिकरण की राजनीति को परे रखकर देश और देश की जनता के हित के लिए काम किया होता तो आज देश की स्थिति में कई सुधारात्मक बदलाव देखने को मिलते। इसके अलावा मूल नागरिकों के सामने भोजन, निवास, सफाई, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव दिनों -दिन गंभीर नहीं हुआ होता और देश का विकास दर और भी बेहतरीन होता। खैर, मोदी सरकार जबसे सत्ता में आयी तबसे सिर्फ वोट बैंक की राजनीति की बजाय जनता के हित में काम कर रही है जो सराहनीय है।