देश के 14 वें राष्ट्रपति के तौर पर रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया। रामनाथ कोविंद भी पीएम मोदी की तरह दिल्ली से नहीं हैं लेकिन मोदी और उनके पूर्ववर्तियों के विपरीत कोविंद ने जब एक साल पहले राष्ट्रपति पद ग्रहण किया था तब उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते थे। राष्ट्रपति बनने से पहले रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे लेकिन उससे पहले वो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता थे। उन्होंने एक वकील, एक समाजसेवी और राज्यसभा के सांसद के तौर पर काम किया है और कमजोर तबके के लोगों को लाभ पहुँचाने की हर मुमकिन कोशिश की है। राष्ट्रपति बनने के बाद से उन्होंने अपने कार्यों से अपनी पहचान बनाई और मात्र एक साल की अवधि में ही उनके द्वारा किये गये कार्यों की सराहना कई बड़े नेताओं ने भी की।
एक राष्ट्रपति के तौर पर जिम्मेदारियां थोड़ी सीमित होती हैं लेकिन वो कुछ मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ रामनाथ कोविंद ने किया है। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने और डॉक्टर और वकीलों को समाज की सेवा के लिए प्रोत्साहित किया है यहां तक कि उन कमजोर तबके के लिए लिए भी जो भुगतान करने में सक्षम नहीं है। पिछले वर्ष राष्ट्रपति भवन में चर्चा के लिए आठ बैठकों का आयोजन किया गया था जिसमें 20 विश्वविद्यालय के प्रमुख शामिल थे। एक सांसद के तौर पर उन्होंने मिलने वाले फंड को ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की शिक्षा के लिए आवंटित किया था। उनका ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर शिक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए उनके प्रयास अभी भी जारी हैं। वो चाहते हैं कि भारत के विश्वविद्यालय युवाओं को ‘चौथे औद्योगिक क्रांति’ के लिए तैयार करें।
राष्ट्रपति कोविंद किसी भी मुद्दे पर अपनी चिंता या राय प्रकट करने में नहीं हिचकिचाते हैं। सरकार की तीन शाखाओं कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच चल रही तनातनी पर भी उन्होंने खुलकर बात की और तीनों के बीच चल रही तनातनी को कम करने की कोशिश भी की। राष्ट्रपति कोविंद ने न्याय में होने वाली देरी और गरीबों को न्याय ना मिलने की समस्या और पारदर्शिता को लेकर न्यायपालिका को फटकार लगाई थी। वकील रहने के दौरान कोविंद ने ग़रीब दलितों के लिए मुफ़्त में क़ानूनी लड़ाई भी लड़ी है। राष्ट्रपति कोविंद के टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केरल में सीपीएम के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन जैसे महत्वपूर्ण राजनेताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं सिवाए सोनिया गांधी के जिन्होंने राष्ट्रपति से मिलने से मना कर दिया था। रामनाथ कोविंद के पद संभालने के करीब 6 महीने बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी पहली मुलाकात के बाद रामनाथ कोविंद की जमकर तारीफ की थी।
राष्ट्रपति भवन में उनका दृष्टिकोण काफी अलग रहा है और उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक सैद्धांतिक है। उन्होंने गणतंत्र दिवस पर आयोजित स्वागत समारोह में मेहमानों की संख्या को कम कर दिया। साथ ही उन्होंने वीआईपी कल्चर के विपरीत देश को गौरवान्वित करने वालों और स्थानीय स्तर पर नाम कमाने वालों को ज्यादा तवज्जों दी।
राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के बाद से कोविंद ने करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग कर भव्य पार्टियों का आयोजन करना और क्रिसमस के मौके पर कैरोल सिंगिंग जैसे सभी रिवाजों को उन्होंने 2017 में बंद कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने रमजान के मौके पर राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं करने का फैसला किया था और इफ्तार पार्टी के फंड को अनाथालयों में बांट दिया था, जिसके बाद से एक महत्वपूर्ण संस्थान के पूर्ण धर्मनिरपेक्षता की दिशा में राष्ट्रपति कोविंद के प्रशंसनीय फैसले की सराहना की गयी थी।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का एक वर्ष का कार्यकाल कुल मिलाकर सफल रहा है। उन्होंने शिक्षा, कानून, स्वास्थ, ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अपने काम से एक अलग पहचान बनाई है। वो कई मायनों में राष्ट्रपति पद में क्रांतिकारी बदलाव किया है।