“कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है” :कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 के आम चुनावों से पहले बुधवार को सामाजिक मुद्दों पर चर्चा के तहत मुस्लिम बुद्धिजीवियों, राय मश्विरा देने वाले और प्रभावकों के एक समूह के साथ मुलाकात के लिए पहुंचे थे। इस दौरान अर्थशास्त्री अबुसलेह शरीफ, इतिहासकार रक्षंदा जलील, पूर्व दूरसंचार सचिव एमएस फारुखी, योजना आयोग के पूर्व सदस्य सय्यद सैयदा हमीद और इतिहासकार इरफ़ान हबीब समेत कई मुस्लिम बुद्धिजीवी मौजूद थे। इस बैठक में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद और नदीम जावेद भी उपस्थित थे।

उर्दू डेली इन्कलाब में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, राहुल गांधी ने बैठक के दौरान एक विवादित बयान दिया। उर्दू डेली के मुताबिक, राहुल ने कहा, हां, कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है।” बाद में पूर्व राज्यसभा सांसद और पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने इन्कलाब की रिपोर्ट को ट्वीट किया और पूछा, “क्या ये उद्धरण सही है या पार्टी टिप्पणी का खंडन करेगी। उन्होंने ये भी कहा,”मुस्लिम एक मुस्लिम पार्टी नहीं चाहते हैं, वो एक राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष पार्टी चाहते हैं, जो नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करती है।“

शशि थरूर के विवादित बयान जिसमें उन्होंने भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ बनने की बात कही थी, इस बयान से कांग्रेस को पहले ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, अब राहुल गांधी के हालिया बयान कि कांग्रेस पार्टी एक मुस्लिम पार्टी है, इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया है और पार्टी की छवि पर उठते सवालों को और तुल दे दिया है।

कांग्रेस पार्टी और उसके नेता अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के तरीकों के लिए अच्छी तरह से जाने जाते हैं। कांग्रेस को 2014 से चुनावों में मिल रही हार के पीछे के मुख्य कारणों में से एक तुष्टिकरण की राजनीति ही है। कांग्रेस पार्टी ने 2014 के आम चुनावों में हार के पीछे के कारणों की गहरी समीक्षा के लिए ए. के. एंटनी की अध्यक्षता में समिति की स्थापना की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि पार्टी द्वारा अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की राजनीति उनकी हार के पीछे की मुख्य वजहों में से एक थी जिस वजह से कांग्रेस को आम चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा था। समिति ने कहा, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति के साथ कुछ कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए बयान जिसमें मुसलमानों के लिए कोटा की मांग और देश में बहुसंख्यक समुदाय को अलग-थलग करने की मांग थी, इन्हीं कारणों की वजह से जनता के जनादेश ने कांग्रेस को अपने मताधिकार से सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था।

अपनी रणनीति और तौर-तरीकों में बदलाव की जगह कांग्रेस पार्टी बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में जुट गयी है। हाल ही में कांग्रेस नेताओं ने नारी विरोधी और अमानवीय प्रथा महिला जननांग कर्तन का समर्थन किया था, उन्होंने तीन तलाक, निकाह-हलाला और बहुविवाह जैसे नारी विरोधी प्रचलित प्रथाओं और भारत के हर राज्य में शरिया कोर्ट की मांग का समर्थन किया, अल्पसंख्यकों समुदाय के कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए लगता है पार्टी ने महिलों के मौलिक अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई छोड़ दी है। राहुल गांधी के हालिया कथित बयान कि कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है, ऐसा लगता है कि अब पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता का साथ भी छोड़ दिया है।

इतिहासकार इरफान हबीब ने ANI से कहा, आज की बैठक में हमने राहुल गांधी को सलाह दी कि वो विशेष तौर पर मुस्लिम समुदाय की बात न करें क्योंकि ये अन्य लोगों को एक नेता के रूप में ध्रुवीकरण करने का मौका देगा। उन्हें गरीबी और शिक्षा के विषय पर बात करनी चाहिए। यदि वो ऐसा करते हैं तो अन्य भारतियों की तरह 96 प्रतिशत मुसलमानों पर इसका ज्यादा बेहतर तरीके से असर होगा। समुदाय के बुद्धिजीवियों ने राहुल गांधी को उनकी नीतियों पर आत्मनिरीक्षण करने की भी सलाह दी और उन्हें अपनी नीतियों में बदलाव करने की भी सलाह दी। “कांग्रेस ने 1970 के दशक में काम किया है जब समावेश और साझा विरासत के बारे में बात की गयी थी।”

इस पुरानी पार्टी को समझने की जरूरत है कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण और नर्म-हिंदुत्व की भावना की राजनीति के आधार पर वो खुद को पैन-इंडिया पार्टी के रूप में पेश नहीं कर सकती है। 2019 के आम चुनाव पार्टी भारतीय राजनीति में बने रहने के लिए या तो एक बड़ा सकारात्मक बदलाव या फिर पार्टी के अस्तित्व के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है और ये आगामी चुनाव के परिदृश्य में पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।

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