नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के 2014 के बाद से देश की अर्थव्यवस्था को लेकर दिए बयान पर पलटवार किया है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष कुमार ने पीटीआई को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं चाहता हूं कि प्रोफेसर अमर्त्य सेन भारत में कुछ समय बिताएं और वास्तव में जमीन हकीकत से अवगत होंगे और इस तरह के बयान देने से पहले पिछले चार वर्षों में मोदी सरकार ने जो कार्य किये हैं उसकी समीक्षा करें। ”
डॉक्टर अमर्त्य सेन हार्वड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं और उन्होंने अपना अधिकतर समय संयुक्त राज्य में बिताया है। हालांकि पिछली सरकारों द्वारा संरक्षित एक सार्वजनिक बौद्धिक के रूप में वो अक्सर ही भारत में नीति और निर्माण के शासन पर टिप्पणी करते रहे हैं चाहे उन्हें उन नीतियों के बारे में जानकारी हो या न हो। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने डॉक्टर सेन को चुनौती देते हुए कहा, “मैं वाकई उन्हें चुनौती देना चाहूंगा कि चार साल की अन्य और कोई अवधि दिखाएं जिसने भारत को क्लीनर, समावेशी और अधिक देखभाल करने वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए इतना काम किया गया है। यदि ये चीजें उनके लिए स्पष्ट नहीं हैं, तो मुझे लगता है कि उन्हें यहां कुछ समय बिताना चाहिए।”
17 जुलाई को प्रोफेसर सेन लंबे समय बाद अपनी किताब ‘एन अनसर्टेन ग्लोरी: इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शन’ के हिंदी संस्करण ‘भारत और उसके विरोधाभास’ के लॉन्चिंग के मौके पर भारत आये हुए थे। इस किताब का जीन ड्रेज और अमर्त्य सेन द्वारा लिखित अंग्रेजी संस्करण 2013 में जारी किया गया था। जैसा कि अमर्त्य सेन ने कहा, इस किताब का 90 प्रतिशत हिस्सा जीन ड्रेज़ द्वारा पूरा किया गया है जबकि इस किताब के लिए 90 प्रतिशत श्रेय सेन को मिला है।”
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के इस बयान से ये स्पष्ट है कि प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने बिना नीतियों की गहराई में जाए ही इस तरह का बयान दिया है। बुक के रिलीज़ होने का समय अवसरवादी लगता है क्योंकि इसी पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण 2013 में आम चुनाव से एक साल पहले जारी किया गया था जबकि इसका हिंदी संस्करण 2019 के लोक सभा चुनाव से एक साल पहले रिलीज़ किया गया है। इस किताब को आम चुनाव के एक साल पहले सार्वजनिक किया गया ताकि वो इसके जरिये चुनावी स्वर के साथ जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाना चाहिए उन्हें स्थापित कर सकें। ये आगामी सरकार के समक्ष नीति निर्माण के लिए एक ढांचा प्रदान करने की भी कोशिश है।
इस किताब के मुख्य लेखक जीन ड्रेज़ हैं जो रांची के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर है वो राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य थे जो पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा स्थापित एक सलाहाकार निकाय है और ये भारत के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के प्राथमिक सलाहकार होते हैं। भारत के संविधान के अनुरूप न होने के कारण सरकार के बाहर और भीतर दोनों तरफ से एनएसी की कड़ी आलोचना की गयी थी क्योंकि ये एक वैकल्पिक कैबिनेट के रूप में उभर सकता है। ये सरकार से बाहर के तत्वों द्वारा किसी भी संवैधानिक या कानूनी जनादेश के बिना नीति निर्माण को प्रभावित करने का प्रयास था। जीन ड्रेज ने मनरेगा के पहले संस्करण का मसौदा भी तैयार किया था जो विफल साबित हुआ था। मनरेगा भारत सरकार द्वारा लागू सबसे अक्षम नीतियों में से एक था, इस नीति में बहुत राशि लगाई गयी थी लेकिन जमीनी स्तर पर इसके नतीजे सकारात्मक नहीं थे।
लेफ्ट-विंग और राईट विंग अर्थशास्त्रियों के बीच मूल विवाद का कारण ये है कि क्या आर्थिक विकास और विकास नीति का उद्देश्य नीति निर्माण होना चाहिए। अमर्त्य सेन और जीन ड्रेज़ जैसे अर्थशास्त्री द्वारा दिए गये तर्क ये हैं कि विकास का उद्देश्य मुख्य होना चाहिए। दूसरी तरफ जगदीश भगवती, अरविंद पंगारी, बिबेक देबॉय, राजीव कुमार और संजीव सान्याल जैसे अन्य राइट विंग अर्थशास्त्री का तर्क है कि आर्थिक विकास स्वयं में विकास के उद्देश्यों का जवाब है।
भारत में 1980 के दशक तक नीतियां संपति निर्माण की बजाय बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण पर केंद्रित थीं। 1991 में आर्थिक उदारीकरण पुनर्वितरण और विकास की दिशा में नीति निर्माण में एक आदर्श बदलाव था। इस बात के पर्याप्त सबूत है कि राईट विंग आर्थिक नीतियां देश में विकास के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल रही हैं। उदारीकरण के बाद से गरीबी कम हुई है और सामाजिक सुरक्षा में बढ़ोतरी हुई है। इसीलिए लेफ्ट विंग अर्थशास्त्री खुश नहीं हैं क्योंकि उनके दिए गये विचार पर अमल किया गया था लेकिन वो पहले ही नाकाम साबित हुईं। पूर्व यूपीए सरकार ने एक बार फिर से इस विचार पर अमल करने की कोशिश की थी जिससे देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी थी। अब राईट विंग अर्थशास्त्रियों को भी मौका दिया जाना चाहिए और उनके सिद्धांतों और नीतियों पर अमल किया जाना चाहिए। सेन से भगवती की तरफ स्थानंतरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है।