क्या शिवपाल को सपा से अलग करने के पीछे है अमर सिंह का हाथ?

अमर सिंह शिवपाल सिंह

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जहां राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कभी बुआ की पार्टी तो कभी कांग्रेस के साथ योजना बनाते रहते हैं लेकिन इस बीच उनके चाचा ने नयी पार्टी के गठन की घोषणा करके उन्हें जोर का झटका दे दिया है। अपनी नयी पार्टी के गठन की घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर से मंगलवार को मिलने के लिए उनके आवास पर पहुंचे। इस मुलाकात के बाद से राजनीतिक गलियारे में ये खबर तेज है कि शिवपाल और राजभर की मुलकात के पीछे सबसे बड़ा हाथ पूर्व सपा नेता अमर सिंह का है।

दोनों नेताओं की ये पहली मुलाक़ात नहीं है इससे पहले शिवपाल यादव और ओम प्रकाश राजभर वाराणसी में जून महीने में मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, शिवपाल और राजभर ने मुलाकात के बाद ये किसी भी सियासी समीकरण से इंकार कर दिया। इस मुलाकात से पहले अमर सिंह ने शिवपाल को लेकर एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि, “मैंने भाजपा के शीर्ष नेता से शिवपाल के लिये बात की थी। बैठक के लिये समय भी तय हो गया था लेकिन शिवपाल मिलने के लिए नहीं पहुंचे। मुझ पर उनकी कोई राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं है। मैं उनके सम्पर्क में नहीं हूं।’’ अमर सिंह ने कई बार सार्वजनिक तौर पर अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव पर हमले किये हैं लेकिन शिवपाल उनके  करीबी मानें जाते हैं और उन्होंने कभी शिवपाल को लेकर कोई बयान नहीं दिया। राजभर और अमर सिंह के बीच का जुड़ाव किसी से छुपा नहीं है। इससे पहले खबरों ने तूल पकड़ी थी कि सपा से निष्कासित नेता अमर सिंह एनडीए में शामिल हो सकते हैं। अपने एक बयान में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के मुखिया और यूपी के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा था कि, “अगर अमर सिंह आजमगढ़ से 2019 का आम चुनाव लड़ना चाहते हैं और सीट हमारे कोटा के तहत आती है तो हम उन्हें खुशी-खुशी ऑफर करेंगे।“ यही वजह है कि शिवपाल और राजभर की मुलकात के पीछे अमर सिंह का कनेक्शन बताया जा रहा है।

बता दें कि कभी सपा में बड़ा ओहदा रखने वाले शिवपाल सिंह यादव काफी समय से पार्टी में उपेक्षा का सामना कर रहे थे। उन्होंने हाल ही में इटावा में दिए अपने एक बयान में कहा था कि, “मैं पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने का इंतजार कर रहा हूँ लेकिन अभी तक मुझे कोई जिम्मेदारी नही सौंपी गयी है। मैं कितने समय तक उपेक्षित रहूं और कितनी उपेक्षा बर्दाश्त की जाए। सहन करने की भी एक सीमा होती है।” सपा में हाशिये पर चल रहे शिवपाल सिंह यादव के इस बयान से तो स्पष्ट है कि वो पार्टी में कोई जिम्मेदारी न मिलने की वजह से काफी नाराज थे और उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को कई बार चेताया भी लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें हमेशा ही नजरंदाज़ किया। आखिर में शिवपाल सिंह ने नयी पार्टी ‘सपा सेक्युलर मोर्चा’ की घोषणा कर दी और सपा में असंतुष्ट और उपेक्षित महसूस करने वालों को पार्टी से जुड़ने का निमंत्रण भी दे दिया।

शिवपाल सिंह के इस फैसले ने विपक्षी खेमे में हल-चल मचा दी है जो बीजेपी को हराने के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं। पहले ही सपा और बसपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था और अब शिवपाल ने सपा को प्रदेश में और कमजोर कर दिया है। ऐसे में बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश की राह और आसान हो गयी हिया। हालांकि, बीजेपी इसके बावजूद अपनी कोशिशों को जारी रखेगी क्योंकि वो प्रदेश को लेकर कोई कोताही नहीं बरतना चाहती है।

इस पूरे प्रकरण में अमर सिंह को किंगमेकर कहना कुछ गलत नहीं होगा जिन्होंने अपने राजनीतिक अंकगणित से सपा को तोड़ दिया है। राजनीतिक गलियारों में अमर सिंह को पॉवर ब्रोकर माना जाता है जिनकी राजनीति, बॉलीवुड और व्यापार क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। वो सत्ता के गलियारों में सबसे चतुर लोगों में से एक माने जातें हैं जो कभी भी बाजी पलटने का हुनर रखते हैं। उन्होंने कई बार ऐसा किया भी है। सपा में शुरू हुए कलह के पीछे भी अमर सिंह को ही माना जाता है। अखिलेश यादव ने अपने बयान में कई बार पारिवारिक कलह के पीछे सीधे अमर सिंह का नाम लिया था। अखिलेश ने कहा था कि अमर सिंह की एक पार्टी के बाद से पारिवारिक कलह शुरू हुआ था। सपा में आई दरार ने आज सपा को दो टुकड़ों में बांट दिया है। इससे पहले भी अमर सिंह ने अपने राजनीतिक समीकरण से आजम खान के कद को समाजवादी पार्टी में घटा दिया था। सपा से मिली उपेक्षा और अपमान से नाराज अमर सिंह ने ही सपा को तोड़ने की योजना बनाई थी जिससे अखिलेश यादव कमजोर पड़ जायें। अमर सिंह अपनी योजना में कामयाब भी हो गये और शिवपाल को सपा से अलग कर दिया। अगर अखिलेश यादव ने अपने पार्टी के नेताओं की कद्र की होती तो शायद उन्हें आज ये दिन नहीं देखना पड़ता

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