हाल ही में सनातन संस्था एक बार फिर से चर्चा में है। नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद अब नालासोपारा में बम और विस्फोटकों के मिलने से कई लोगों की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से इस संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। हाल ही में डॉक्टर दाभोलकर की हत्या में कथित तौर पर शामिल होने और बम और विस्फोटकों को रखने के मामले में जिन आरोपियों को गिरफ्तार किया था प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस संगठन से या तो जुड़े हुए हैं। हिंसा, बम विस्फोट और हत्याओं से सनातन संस्था का संबंध कई बार सामने आया है। मीडिया इस संस्था के कार्यों की आड़ में हिंदू धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही है और कांग्रेस भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभा रही है। जिस तरह से कांग्रेस के उतावले नेता मांग कर रहे हैं कि सनातन पर प्रतिबंध लगाओ और सनातन के प्रमुख को गिरफ्तार करो! ये मांग कांग्रेस का सिर्फ एक ढोंग है और मीडिया भी इस तथ्य को अनदेखा कर रही है कि जो कांग्रेस पार्टी आज इस संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है वही इस संस्था को हमेशा से बचाती आई है।
इस गैर-लाभकारी संगठन संस्था की स्थापना 1990 में की गयी थी। गोवा में ये संस्था ‘चैरिटी संस्था’ के तौर पर पंजीकृत है और इसका एक दैनिक अखबार ‘सनातन प्रभात’ का प्रकाशन भी करती है। संगठन का एक और बड़ा केंद्र महाराष्ट्र के पनवेल में भी है और पुणे, मुंबई, सांगली में भी है। शुरू के वर्षों में ये चैरिटी संस्था की तरह काम करती रही लेकिन जब संस्था अपने गलत कार्यों से वर्ष 2008 में पहली बार प्रकाश में आई तब कांग्रेस की सरकार थी तब की कांग्रेस सरकार ने जानबूझकर संस्था के कार्यों को अनदेखा किया और इस संस्था के जरिये ‘भगवा आतंक’ के मिथक को फैलाने की दिशा में काम शुरू कर दिया।
वर्ष 2008 में पहली बार इस संस्था के सदस्यों को सिनेमा घर के बाहर विस्फोट करने के आरोप में गिरफ्तार किया था इसके बाद बाद संगठन के दो कार्यकर्ताओं को 4 जून 2008 को ठाणे में गडकरी रंगयतन ऑडिटोरियम के पार्किंग में बम रखने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। ये संस्था 2013 में सबसे ज्यादा चर्चा में था जब इसपर लेखक डॉ नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या का आरोप लगा था। इसके बाद गोविंद पंसारे और कन्नड़ विद्वान कलबुर्गी की हत्या में भी संस्था का नाम सामने आया था। इन घटनाओं के बाद इस संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है लेकिन बार-बार कांग्रेस ने इस संस्था को बचाने का ही काम किया है क्योंकि इस संस्था के जरिये न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में ‘भगवा आतंक और हिंदू आतंक’ को बढ़ावा देना चाहती थी। वर्ष 2011 में भी महारष्ट्र सरकार ही नहीं बल्कि गोवा और कर्नाटक ने भी संस्थान को एक आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए रिपोर्ट भेजी थी लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस मांग को ठुकरा दिया था।
वर्ष 2013 में तो डॉक्टर नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या के बाद लगभग इस संस्था को बंद करने की पूरी तैयारी भी हो गयी थी लेकिन कांग्रेस की तत्कालीन यूपीए सरकार ने तब भी आखिरी मौके पर ये कहकर संस्था को बंद होने से बचा लिया कि वो 2014 के आने वाले आम चुनव में ‘हिंदू-विरोधी” छवि को जन्म नहीं देना चाहती जबकि कांग्रेस भी इस तथ्य से वाकिफ है कि संस्था हिंदू धर्म के विपरीत हिंदू विरोधी उद्देश्यों में ज्यादा लिप्त रही है।
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने ‘News18’ से बातचीत में कहा था कि, “अप्रैल 2011 में जब मैं सीएम था, तब मैंने ‘सनातन संस्था’ पर बैन लगाने की सिफारिश की थी। उस वक्त ‘सनातन संस्था’ के खिलाफ कई अहम दस्तावेज और सबूत महाराष्ट्र पुलिस के हाथ लगे थे। जिसे देखने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि ‘सनातन संस्था’ पर आजीवन बैन लगाया जाना जरुरी है। इसका एक प्रस्ताव भी गृह मंत्रालय के पास भेजा गया था।” उन्होंने आगे कहा, “सनातन संस्था पर बैन लगाने का 1000 पन्नों वाला सरकारी फाइल करीब दो साल तक गृह मंत्रालय की पास पड़ी रही। इस फाइल पर गृह मंत्रालय को फैसला लेना था”
इससे तो स्पष्ट है कि कांग्रेस इस संस्था के जरिये अपना एजेंडा साध रही है, ऐसे में कांग्रेस भला कैसे अपने ‘भगवा आतंक’ के दुष्प्रचार को बढ़ावा देने वाली ‘बी टीम’ को बंद करती। अब बीजेपी सरकार में वही कांग्रेस इस संस्था को लेकर केंद्र पर निशाना साध रही है और मीडिया भी इस तथ्य को नजरंदाज कर कांग्रेस की हां में हां मिला रही है। मीडिया को कांग्रेस के दोहरे रवैये को भी सामने रखना चाहिए था लेकिन मुख्यधारा की मीडिया ऐसा करने से बच रही है।