यूपीए सरकार के लिए राष्ट्रीय हित नहीं बल्कि तुष्टिकरण की राजनीति थी अहम: टाइम्स नाउ का बड़ा खुलासा

एनआरसी कांग्रेस

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) का अंतिम मसौदा जारी हो चुका है और इसे लेकर भारत में सियासी घमासान जारी है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बीजेपी को घेरने की पूरी कोशिश कर रहा है। विपक्षी नेता भड़काऊ बयानबाजी कर रहे हैं और बीजेपी पर विशेष समुदाय के खिलाफ षडयंत्र करने के आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस भी खुलकर एनआरसी का विरोध कर रही है वही कांग्रेस जिसके लिए अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा कभी चिंता का विषय बना हुआ था। इस बात का खुलासा टाइम्स नाउ ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है और इस रिपोर्ट के पुख्ता सबूत भी पेश किये हैं। टाइम्स नाउ ने अपनी रिपोर्ट में अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 2005 की यूपीए सरकार की बैठक से जुड़ा विवरण प्रकाशित किया है जिसने कांग्रेस की दोहरी राजनीति को सामने रख दिया है।

टाइम्स नाउ ने अपनी रिपोर्ट में इस बैठक में कैबिनेट के शीर्ष मंत्री प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम भी शामिल थे। उस दौरान अवैध बांग्लादेशियों के प्रवाह गंभीर मुद्दा बनकर उभरा था यहां तक कि कांग्रेस को इससे असम के डेमोग्राफी में बड़े बदलाव होने का डर भी सताने लगा था। यहां तक कि उन्हें ये चिंता भी सताने लगी कि अगर इसी तरह अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों का प्रवाह जारी रहा था वो दिन दूर नहीं जब असम का सीएम एक बांग्लादेशी होगा। हालांकि, टाइम्स नाउ ने इस जानकरी के पीछे के स्रोत का खुलासा नहीं किया है। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक गुप्त बैठक आयोजित की गई थी जिसमें  कांग्रेस नेताओं ने अवैध आप्रवासियों से उत्पन्न होने वाले खतरे को लेकर चिंता व्यक्त की थी। खासकर असम में अवैध बांग्लादेशी आप्रवासियों के प्रवाह पर चर्चा करने के लिए ये बैठक बुलाई गयी थी। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस भी अवैध बांग्लादेशियों से होने वाले खतरे से अच्छी तरह से वाकिफ है फिर भी वो एनआरसी के मुद्दे को लेकर बीजेपी पर निशाना साध रही है। सिर्फ राजनीतिक रणनीति के तहत वो आज देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए अवैध अप्रवासियों के पक्ष में बयानबाजी कर रही है।

टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में ये भी खुलासा किया है कि, 2005 में हुई बैठक में कैबिनेट के शीर्ष मंत्री भी शमिल थे जिन्होंने इससे असम के डेमोग्राफिक बदलाव को लेकर चिंता जाहिर की थी साथ ही इसके निदान के लिए कुछ सुझाव भी दिए थे। इन सुझावों में बांग्लादेशियों के लिए सख्त वीजा नियमों की आवश्यकता पर बल दिया गया था और इस सुझाव का खुद प्रणव मुखर्जी ने समर्थन किया था और कहा था कि अगर पश्चिम बंगाल में भी सख्ती से इस समस्या से न निपटा गया तो ये समस्या और गंभीर हो जाएगी। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता मानते हैं कि ये सिर्फ असम ही नहीं बल्कि देश के अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में डेमोग्राफी में बदलाव लायेगा और देश के मूल नागरिकों के हित के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। इससे न सिर्फ भाषा, रोजगार से जुड़ी समस्या उत्पन्न होंगी बल्कि हाल ही में बांग्लादेशी घुसपैठियों के आतंकी संगठन से जुड़े तार भविष्य में देश की सुरक्षा को भी तितर-बितर कर सकता है।

यूपीए ने अपने शासनकाल के दौरान कई बार इस गंभीर मुद्दे को लेकर चिंता जताई है यहां तक कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 24 मार्च 1971 में ‘असम समझौते’ के तहत अवैध बांग्लादेशियों को प्रदेश से बाहर करने का आश्वासन भी दिया था। साथ ही बांग्लादेशी घुसपैठियों से होने वाले खतरे पर सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी के अपडेशन की प्रक्रिया को जल्द ही शुरू करने के आदेश भी दिए दिए थे। इसके बाद 2005 में खुद मनमोहन सरकार ने इसे लेकर गंभीरता दिखाई लेकिन इसपर कोई उचित कदम उठाने की दिशा में मनमोहन सरकार विफल रही। इसके बाद जब मोदी सरकार ने वास्तव में इसपर काम शुरू किया और इसे जमीनी स्तर पर लेकर आये तो कांग्रेस अब इसका विरोध कर रही है।

अब सवाल ये उठता है कि, वर्ष 2005 में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू करने का विचार करने वाली कांग्रेस आज एनआरसी पर सवाल क्यों उठा रही है? भले ही कांग्रेस दावे कर रही है कि वो वोट बैंक की राजनीति नहीं कर रही लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि कांग्रेस के शासन के समय भी ये मुद्दा उठा था लेकिन तब इसपर कांग्रेस ने अमल क्यों नहीं किया था ? क्योंकि अवैध बांग्लादेशियों को निकाल बाहर करने का साहस कांग्रेस में कभी था ही नहीं उसके लिए वोटबैंक हमेशा से महत्वपूर्ण था  न कि राष्ट्रीय सुरक्षा एवं देश के नागरिकों का हित।  कांग्रेस के लिए वोट बैंक राष्ट्रहित से ऊपर रहा है और वर्तमान समय में एनआरसी के प्रति उसका रुखा यही दर्शाता है। ये दुर्भाग्य की बात है, कि जिस मुद्दे पर सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि देश की रक्षा के लिए अन्य पार्टियों को भी साथ आना चाहिए वो राजनीतिक स्वार्थ के लिए एनआरसी के खिलाफ ‘गृह युद्ध’ और रक्ताप’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर जनता को भड़काने की कोशिशों में लिप्त हैं। हमें टाइम्स नाउ की सराहना करनी चाहिए जिसने सत्ता की भूखी पार्टियों के दोहरे रवैये का खुलासा किया है।

 

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