2019 के आम चुनाव समीप आ रहे हैं ऐसे में चुनावी परिदृश्य को लेकर अटकलबाजियां शुरू हो गयी हैं। किसकी बनेगी सरकार ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए बिहार 40 लोकसभा सीटों के साथ काफी अहम है। वर्ष 2014 में मोदी लहर में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में एनडीए ने 31 सीटों पर क़ब्ज़ा किया था जबकि जेडीयू तब बीजेपी के साथ नहीं था लेकिन इस बार जेडीयू फिर से एनडीए के साथ है ऐसे में नतीजे वर्ष 2014 से कहीं ज्यादा बेहतर होने का अनुमान लगाया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है बिहार में एनडीए बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और आरएलएसपी के साथ मिलकर सभी सीटों पर कब्जा करने वाली है और विपक्ष को बुरी हार का सामना करना पड़ सकता है।
बिहार की लोकसभा सीटों के लिए एनडीए के समीकरण को देखें तो स्पष्ट है कि बिहार एनडीए के हाथों में बरकरार रहेगा। एनडीए के पास बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और आरएलएसपी जैसे मजबूत दलों का साथ है। जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार दृढ़ता से गठबंधन के साथ हैं और कई बार उन्होंने बीजेपी से मतभेद और अलग होने की अटकलों पर विराम भी लगाया है। वहीं, दूसरी तरफ उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी भी बीजेपी के साथ है। वर्ष 2014 के आंकड़ों को देखें तो एनडीए की 31 सीटों में बीजेपी को अकेले 22 सीटें मिली थीं जबकि पासवान की एलजेपी को 6 और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को 3 सीटें मिली थीं। यदि हम लोकसभा चुनाव में पड़े वोटों को विधानसभा क्षेत्रों में बांटें तो आंकड़े कुछ अलग होंगे। ऐसे में कुल 243 क्षेत्रों में 122 क्षेत्रों में बीजेपी आगे थी, 34 क्षेत्रों में एलजेपी आगे थी और 17 क्षेत्रों में कुशवाहा की पार्टी आगे रही थी जिसका मतलब था कि 243 में से कुल 173 क्षेत्रों में एनडीए सबसे आगे थी और अन्य दलों को बची हुई सीटों से ही संतोष करना पड़ा था और इस बार तो जेडीयू भी बीजेपी के साथ है ऐसे में ये आंकड़ा और भी ज्यादा बेहतर होगा या कहें लगभग एनडीए बिहार में ‘क्लीन स्वीप’ के लिए तैयार है।
बिहार के चुनावों में जातिगत गणित को काफी अहम माना जाता है। यहां मतदाता अधिकतर जाति के आधार पर राजनीतिक दलों को वोट डालते हैं ऐसे में इस बिंदु के बिना चुनावी गणित पूरा नहीं हो सकता। हालांकि, पिछले आम चुनावों में ये धारणा भिन्न थी क्योंकि विभिन्न जाति समूहों ने एक होकर एनडीए को सबसे ज्यादा वोट दिया था नतीजतन एनडीए के खाते में 40 में से 31 सीटें आये थे।
बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल पार्टियों को देखें तो इस बार भी स्थिति पक्ष में है। ऊँची जातियां बीजेपी का मतदाता आधार है। पिछली बार एनडीए को मुख्य तौर पर मध्यम व उच्च मध्यम वर्ग के मत मिले थे, ऊँची जातियों का 56 प्रतिशत व मध्यम वर्ग का 36 प्रतिशत वोट एनडीए के खातें में आया था ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी देखा गया था जहां बीजेपी को गैर-यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से काफी फायदा हुआ था। ऐसे में बिहार में भी बीजेपी को गैर-यादव और ओबीसी से फायदा हो सकता है। इसी प्रकार नितीश कुमार के पास बिहार में कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग का समर्थन आधार है। इसके अलावा वो बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं और वो एनडीए के साथ सीट साझा करने के लिए बाध्य हैं। वहीं राज्य में राम विलास पासवान का समर्थन मतदाता आधार दलित-महादलित है। जहां विपक्ष बीजेपी को दलित विरोधी चित्रित करने की कोशिश में है वहीं रामविलास पासवान का एनडीए में होना विपक्ष की नीतियों पर पानी फेर देगा। आखिर में हैं आरएलएसपी के उपेन्द्र कुशवाहा, जिनका राज्य में कुशवाहों और ओबीसी मतदाताओं का समर्थन है। कुल मिलाकर देखें तो हर तरफ से एनडीए का पलड़ा भारी है और विपक्ष काफी कमजोर।
इस बार एनडीए के पास न सिर्फ बेहतरीन समर्थन होगा बल्कि राज्य में विपक्षी दलों की खराब स्थिति से एनडीए के पास बिहार की सभी 40 सीटें जीतने का उत्कृष्ट मौका है। कांग्रेस के बारे में ज्यादा कहने की जरुरत नहीं है क्योंकि हर चुनाव के साथ कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है। आरजेडी भी बिहार में बुरे दौर से गुजर रहा है। लालू प्रसाद यादव पहले से चारा घोटाले मामले में जेल में बंद हैं। तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव पार्टी के बीच नेतृत्व को लेकर ठनी हुई है। राजनीतिक स्तर पर तेज प्रताप यादव नाकाम साबित हुए हैं वहीं, तेजस्वी यादव के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है। ऐसे में बिहार में एक कमजोर विपक्ष के खिलाफ वर्ष 2019 में एनडीए सभी सीटों पर कब्ज़ा करने में कामयाब होगी।