“हम कौन होते हैं जो आपकी आंख में आंख डाल सकें। एक गरीब मां का बेटा, पिछड़ा हुआ कैसे आपकी आंख में आंख डाल सकता है। इतिहास गवाह है कि जब भी किसी ने कांग्रेस की आंख में आंख डाली उनके साथ क्या हुआ, प्रणब मुखर्जी ने आंख में आंख डालने की कोशिश की तो क्या किया। देवगौड़ा और शरद पवार ने आंख में आंख डाली तो क्या किया आपने। हम तो कामगार है नामदार के साथ आंख में आंख कैसे डाल सकते हैं।” ये पंक्तियां पीएम मोदी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर हो रही चर्चा के दौरान बोली थीं। दरअसल, राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा था कि, “मोदी जी मेरी आंख में आंख नहीं डाल सकते हैं।” राहुल के इसी बयान पर पीएम मोदी ने कामगार और नामदार में फर्क को भी सामने रखा था साथ ही उन्होंने आंख में आंख डालने का अंजाम बताते हुए प्रणब मुखर्जी, शरद पवार और देवगौड़ा का नाम लिया था लेकिन पीएम मोदी ने मुख्य रूप से इन्हीं तीन नेताओं का जिक्र क्यों किया था? चलिए जानते हैं कि जब भी किसी ने गांधियों की आंख में आंख डाली तो उनके साथ क्या हुआ:
एचडी देवगौड़ा
साल 1996-97 के दौरान भारत के 11वें प्रधानमंत्री और जेडीएस के सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा को कांग्रेस ने कम अपमानित नहीं किया है। 1996 में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद से अटल बिहारी वाजपेयी को दूर रखने के लिए संयुक्त गठबंधन को अपना समर्थन दिया और कुल 11 पार्टियों के गठबंधन के बाद जेडीएस के सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया गया लेकिन जब गौड़ा ने कांग्रेस की नीतियों के अनुसार सरकार चलाने से मना कर दिया तो कांग्रेस ने बीच में ही अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे देवगौड़ा की सरकार दो साल से भी कम समय में ही गिर गयी। इस अपमान से देवगौड़ा काफी आहत हुए थे। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी ने एचडी देव गौड़ा को अपमानित किया था। कांग्रेस और जेडीएस के बीच ताल-मेल कभी अच्छा नहीं रहा।
हालांकि, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार है ऐसे में आने वाले आम चुनाव के लिए एचडी देवगौड़ा का समर्थन बहुत मायने रखता है. संयुक्त विपक्ष में देवगौड़ा सबसे ज्यादा सम्मानित चेहरा हैं और वो देश प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। साथ ही उनका दक्षिण भारत का मजबूत समर्थन आधार है और यदि वो कांग्रेस के खिलाफ जाने का फैसला करते हैं तो दक्षिण भारत में वो एनडीए का प्रमुख चेहरा हो सकते हैं।
प्रणब मुखर्जी
हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और उनके इस कदम की कांग्रेस ने काफी आलोचना की थी। प्रणब मुखर्जी के फैसले के बाद पार्टी के ही लोगों ने पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल उठाया था। हालांकि, कांग्रेस के नेहरु-गांधी परिवार की तरफ से प्रणब दा द्वारा आरएसएस समारोह को संबोधित करने को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया खुलकर सामने नहीं आयी है। न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी किया। लेकिन पार्टी के सूत्रों की मानें तो सोनिया गांधी के निर्देश के बाद ही इस मामले की आलोचना की गयी थी।
यही नहीं पीएम पद के उचित उम्मीदवार होने के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें कई बार अनदेखा कर दिया गया जबकि 1978 में जब कांग्रेस विभाजित हुई थी तो वो उन कुछ लोगों में से थे जो गांधी परिवार के साथ दृढ़ता से खड़े थे। कांग्रेस के दोहरे रवैये के बावजूद प्रणब दा हमेशा हर हालात में कांग्रेस के साथ खड़े रहे।
पार्टी में प्रणब मुखर्जी काफी सम्मानित व्यक्ति हैं और पार्टी लाइन में उनके काफी समर्थक भी हैं साथ उनका आरएसएस के साथ अच्छे संबंध भी हैं और यदि वो बीजेपी के साथ आते हैं तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ वो बीजेपी के ब्रह्मास्त्र हो सकते हैं।
शरद पवार
शरद पवार नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के संस्थापक और अध्यक्ष भी हैं। वे तीन अलग-अलग समय पर महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शरद पवार पहले कांग्रेस पार्टी में थे पर ‘कांग्रेस कल्चर’ के खिलाफ थे जिस वजह से वो स्वतंत्र रूप से अपने विचार न रख पाने और पार्टी में गांधी नीति के प्रभुत्व से तंग आ गये थे और यही वजह थी कि उन्होंने 1999 में उन्होंने अपने राजनितिक दल ‘नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी’ की स्थापना की थी। कांग्रेस हाई कमांड ने उन्हें खुलकर अपने विचार रखने के लिए सबक सिखाने के लिए कई हत्कंडे अपनाए थे। कुछ चीजे वास्तव में कभी नहीं बदलती हैं खासकर ‘कांग्रेस कल्चर’ जो राजनीतिक रूप से एक परिवार के प्रति अपनी सेवा भाव के लिए जाना जाता है। शरद पवार को कांग्रेस में रहते हुए महाराष्ट्र में अपने दूसरे कार्यकाल में ये बात अच्छे से समझ आ गयी थी। यही वजह थी वो कांग्रेस से अलग हो गये थे।
मराठों के बीच शरद पवार का मजबूत समर्थन आधार है और वो संयुक्त विपक्ष में मुख्य खिलाड़ी में से एक हैं। यदि वो एनडीए के साथ आते हैं या कांग्रेस के साथ खड़े होने से इंकार करते हैं हैं तो चुनावी अंक गणित में काफी बदलाव आ सकता है।
पीएम मोदी ने इन तीन नेताओं का नाम अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपने भाषण में मुख्य रूप से लिया था। इसके जरिये उन्होंने कांग्रेस की राजनीति को सामने रखा था जो वो हमेशा से ही करती आयी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने इन सभी को एक संकेत भी दिया कि उनका एनडीए में हमेशा स्वागत है क्योंकि एनडीए के द्वार काबिल नेताओं के लिए हमेशा खुले हैं क्योंकि वो पार्टी हित नहीं बल्कि देश हित को सबसे ऊपर रखती है। साथ ही उन्होंने ये भी बताने की कोशिश कि अगर वो एनडीए में शामिल नहीं भी होते हैं तो कम से कम वो कांग्रेस के खिलाफ तो खड़े हो सकते हैं जो कांग्रेस के समीकरण को बड़ा झटका दे सकता है। कांग्रेस पहले से ही बुरे दौर से गुजर रही है ऐसे में किसी भी बड़े नेता का कांग्रेस के साथ अलगाव कांग्रेस के लिए भारी साबित हो सकता है।