पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के अंतिम मसौदे को लेकर लगातार बीजेपी पर हमले बोल रही हैं। वो तरह-तरह की बयानबाजी कर रही हैं, यहां तक कि अपने बयान में वो ‘गृह-युद्ध’ और ‘रक्तपात’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल कर रही हैं। हाल ही में बीजेपी पर उन्होंने निशाना साधते हुए एक कविता भी लिख डाली। इस कविता में उन्होंने मोदी सरकार पर असम में जारी एनआरसी को लेकर तंज कसा है। ममता बनर्जी इस मुद्दे का फायदा अपने राजनीतिक लाभ के लिए करना चाहती हैं लेकिन ऐसा लगता है कि उनका ये दांव उल्टा उन्हीं पर भारी पड़ने लगा है। उदारवादी वामपंथी केबल भी अब उनका साथ छोड़ने लगे हैं। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के एक प्रोग्राम में शामिल होने का कार्यक्रम रद्द हो गया है। ये कार्यक्रम 1 अगस्त को होगा जिसे कॉलेज की एक सोसाइटी आयोजित करेगी। कॉलेज में होने वाले इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के की अनुमति कॉलेज के प्राचार्य ने ही ख़ारिज कर दी।
इस कार्यक्रम के रद्द किये जाने से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं में गुस्सा भर गया है। तृणमूल कांग्रेस ने इस कार्यकर्म के रद्द किये जाने के पीछे की वजह बीजेपी को ठहराया है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस जो भी कहे इससे दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज को कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये दिल्ली का सबसे पुराना कॉलेज है। सेंट स्टीफेंस एक एलीट संस्था है जहां ईसाई छात्रों को विशेष कोटा दिया जाता है। सेंट स्टीफेंस एक एलीट संस्था है जहां वाम उदारवादियों का प्रभुत्व है। वास्तव में स्टीफेंस दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के तहत नहीं आते हैं क्योंकि ये एक ऑटोनोमस संस्था हैं यहां की कार्यप्रणाली दिल्ली यूनिवर्सिटी के अन्य कॉलेजों से भिन्न है। ममता बनर्जी का कार्यक्रम रद्द किया जाना भी कॉलेज के प्रबंधन का अपना फैसला था इसमें किसी भी अन्य राजनीतिक पार्टी का कोई हाथ नहीं है। ऐसे में ममता बनर्जी इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही कि उन्हें कॉलेज के कार्यक्रम में आने की अनुमति नहीं दी गयी। वैसे भी ममता बनर्जी इस कदम के बाद भी नहीं समझ पा रही कि एनआरसी के खिलाफ उनका चरम रुख देश के किसी भी नागरिक को रास नहीं आ रहा है चाहे वो उन्हीं के पार्टी के नेता हो या वाम उदारवादी।
ममता बनर्जी को सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशी जमीन पर भी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा है, अमेरिका के शिकागो में विवेकानंद समारोह, चीन यात्रा रद्द हो गयी थी और अब सेंट स्टीफेंस ने भी उनके कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। ममता बनर्जी वोट बैंक की राजनीति और तुष्टिकरण की राजनीति में लिप्त रही हैं और पश्चिम बंगाल में उनकी गंदी राजनीति किसी से छुपी भी नहीं और अब वो अवैध बांग्लादेशियों की हितैषी बनकर उनका खुलकर समर्थन कर रही हैं।
ममता बनर्जी का एनआरसी और अवैध बांग्लादेशियों का इस तरह से समर्थन करना उदारवादी वामपंथी केबल को पसंद नहीं आ रहा है और यही वजह है कि वो अब ममता बनर्जी के समर्थन में नहीं है। कॉलेज में उनका कार्यक्रम का रद्द होना तो यही दर्शाता है कि भारत में वाम उदारवादियों के बीच उनकी लोकप्रियता कम हो रही है।
ममता बनर्जी के लिए ये अच्छे संकेत नहीं है जो आने वाले आम चुनाव में खुद को एक मजबूत और प्रभावी नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हैं और निश्चित रूप से तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करने का सपना संजो रही हैं लेकिन वर्तमान का परिवेश तो कुछ और संकेत दे रहा है। अभी भी ममता बनर्जी ने इससे सीख नहीं ली तो आने वाले दिनों में जिस समर्थन आधार के उम्मीद कर रही हैं वो भी उनके हाथ से फिसल जायेगा। उनकी इस तरह की राजनीति का जवाब साल 2019 में उन्हें मिल जायेगा जो उन्हें बैकफुट पर ले आयेगा।