लगता है पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के शासन की उलटी गिनती शुरू हो गयी है। रिपोर्ट की मानें तो ममता बनर्जी के पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के कई नेता अब पार्टी से बाहर निकलना चाहते हैं और वो बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं लेकिन सभी के अंदर ममता की हिंसा, तुष्टिकरण, बदले की राजनीति और सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर जाने की नीति से वाकिफ हैं ऐसे में नेताओं में ममता का खौफ है। पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के दौरान ममता की गंदी राजनीति सबके सामने थी कैसे उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या करवाई थी, कई क्षेत्रों में हिंसा की राजनीति की थी।
हाल ही में एनआरसी के मसौदे से उठे राजनीतिक हलचल के बीच ममता बनर्जी की अपनी ही पार्ट में तनाव बढ़ना शुरू हो गया था। एनआरसी पर ममता के रुख से नाराज असम के टीएमसी प्रमुख दीपेन पाठक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने दो अन्य कार्यकर्ताओं के साथ इस्तीफा दिया था। इस्तीफे पर स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने कहा था कि, “ममता बनर्जी जो कह रही हैं कि असम में से बंगाली को भगाने के लिए एनआरसी को पेश किया गया है। मैं उनसे सहमत नहीं हूं। उनके कथन से असमी और बंगाली के बीच तनाव पैदा हो सकता है। अगर राज्य का माहौल खराब होता है तो इसका सारा दोष मेरे ऊपर आएगा। इसलिए मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं।”
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की मजबूत होती स्तिथि ने ममता के तुष्टिकरण और तानाशाही शासन को हिलाकर रखकर दिया है। यही वजह है कि अब तृणमूल पार्टी के वरिष्ठ नेता भी ममता के चुंगल से आजाद होने की कोशिशों में जुट गये हैं। रिपोर्ट के अनुसार अब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कई नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के इच्छुक हैं लेकिन वो ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उन्हें मौजूदा राजनीतिक स्थिति में अपनी जान का खतरा भी सता रहा है।
कोलकाता में शनिवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रैली ने तृणमूल कांग्रेस के भीतर चल रहे तनाव को और हवा दी है। अमित शाह ने अपनी रैली में ममता की नीतियों को सामने रखा था। अमित शाह ने ये भी स्पष्ट किया था कि ममता बनर्जी राज्य में सिर्फ बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से हैं यही वजह है कि वो एनआरसी का विरोध कर रही हैं। ये घुसपैठिए तृणमूल कांग्रेस का वोट बैंक हैं और ममता ने वर्षों से सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति ही की है। अमित शाह की इस रैली से राज्य में बीजेपी की स्थिति और मजबूत हुई है। हालांकि, बीजेपी को बंगाल में न सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा बल्कि उन नेताओं की सुरक्षा जो बीजेपी में शामिल होने के इच्छुक हैं।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी में फूट उनके शासन के लिए अच्छा संकेत नहीं है ममता बनर्जी के लिए ये अच्छे संकेत नहीं है जो आने वाले आम चुनाव में खुद को एक मजबूत और प्रभावी नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हैं और निश्चित रूप से तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करने का सपना संजो रही हैं लेकिन वर्तमान का परिवेश तो कुछ और संकेत दे रहा है। अभी भी ममता बनर्जी ने इससे सीख नहीं ली तो आने वाले दिनों में जिस समर्थन आधार के उम्मीद कर रही हैं वो भी उनके हाथ से फिसल जायेगा। वहीं, बीजेपी पार्टी के लिए ये अछे संकेत हैं वो पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में ऐसे ही प्रयासरत रही तो वो दिन दूर नहीं जब पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी की सत्ता होगी और आने वाले आम चुनाव में भी बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा।