असम में एनआरसी के अंतिम मसौदे के आने के बाद से सियासी घमासान जारी है जो थमने का नाम नहीं ले रहा। जहां असम सरकार राज्य में अवैध रूप से बसे लोगों को बाहर निकालने के लिए प्रयास कर रही है वहीं विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ राजनीतिकरण कर रही है। हालांकि, एनआरसी को लेकर दो ही पार्टियों का रुख साफ़ है और वो दोनों पार्टियां बीजेपी और टीएमसी हैं।
असम समेत पूरे भारत में अवैध बंगलादेशी मुस्लिमों की वजह से डेमोग्राफी और अन्य महत्वपूर्ण समस्याओं को देखते हुए 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान असम चुनाव प्रचार सभा में नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के साथ ही वो देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजने के लिए कार्रवाई करेंगे। सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने अपने वादे के मुताबिक इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया और इस तरह बीजेपी सरकार ने बता दिया कि वो अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए गंभीर है। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपना रुख स्पष्ट किया है कि वो एनआरसी के खिलाफ हैं। असम के मुंख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने सत्ता में आने के बाद से ही राज्य से अवैध अप्रवासियों को राज्य से बाहर निकालने के लिए एनआरसी को अपडेट करने के लिए तेजी से काम शुरू कर दिया और जुलाई में एनआरसी का दूसरा मसौदा जारी कर दिया जिसमें 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं है। हालांकि, सरकार ने जिनका नाम नहीं है उन्हें कहा है कि वो इसके लिए शिकायत कर सकते हैं और अपना नाम शामिल करवाने के लिए कानूनी दस्तावेज जमा कर सकते हैं। वहीं, ममता बनर्जी के लिए ये एक ऐसा मौका है जहां वो अपनी तुष्टिकरण की राजनीति कर सकती हैं भले ही उन्हें इसका फायदा असम में न मिले लेकिन पश्चिम बंगाल में उन्हें इसका फायदा जरुर हो सकता है जहां बड़ी संख्या अवैध बांग्लादेशी रहते हैं।
एनआरसी को लेकर कांग्रेस का पक्ष स्पष्ट नहीं है क्योंकि कांग्रेस को दोनों ही तरफ से घाटा हो सकता है ऐसे में कांग्रेस अपना रुख स्पष्ट करने से बच रही है, तो वहीं इस अवसर का फायदा उठाकर ममता बनर्जी एनआरसी के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा मुखर हैं और इसके खिलाफ बयानबाजी कर रहीं हैं। ममता हमेशा से ही अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण करती आयी हैं और इस मुद्दे से वो अवैध बांग्लादेशियों के लिए सहानुभूति दिखा रही हैं ताकि इसका फायदा उन्हें आने वाले चुनावों में मिल सके। यही वजह है कि वो इस मौके का भरपूर फायदा उठाना चाहती हैं और बीजेपी के खिलाफ मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरना चाहती हैं।
एनआरसी को लेकर अपने बयान में ममता ने कहा था, “एनआरसी के प्रावधानों को लागू करने की स्थिति में देश में रक्तपात और गृह युद्ध छिड़ जाएगा।” यहां तक कि अपने इस बयान से वोट बैंक की राजनीति कर रही ममता ये दर्शाने की कोशिश कर रही थीं कि बीजेपी को वोट देने वालों के नाम मसौदे में है जबकि जिन लोगों ने बीजेपी के विरोधियों के नाम इससे बाहर कर दिए गए हैं। यही नहीं अब ममता ने असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को पश्चिम बंगाल में बसाने की तैयारी कर रही हैं और उनके लिए शेल्टर भी तैयार करवा रही हैं। एनआरसी को रोकने के लिए ममता अपनी हर संभव कशिश कर रही हैं क्योंकि उन्हें भी पता है कि असम के बाद भविष्य में पश्चिम बंगाल में एनआरसी लाया जा सकता है क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी घुसपैठ का मुद्दा देश के विभाजन जितना ही पुराना है। बीजेपी ने अवैध अप्रवासियों के खिलाफ अपने रुख को स्पष्ट कर दिया है कि चाहे असम हो या अन्य राज्य वो अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने पिछले हफ्ते कहा था कि “अगर पश्चिम बंगाल में बीजेपी सत्ता में आती है तो हमलोग राज्य में भी एनआरसी लागू करेंगे। हमलोग किसी अवैध अप्रवासी को पश्चिम बंगाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे।” हाल ही में अवैध घुसपैठियों से उत्पन्न होने वाले खतरे का एक उदाहरण खुद पश्चिम बंगाल में देखने को मिला भी था जहां राज्य के मालदा जिले से सटे बांग्लादेश के नवाबगंज इलाके में घुसपैठ का प्रयास कर रहे बांग्लादेशी आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन (जेएमबी) के 17 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया था। फिर भी ममता बनर्जी एनआरसी के खिलाफ मुखर हैं क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा अपना वोट बैंक का लाभ नजर आ रहा है।
आज देश में एनआरसी का मुद्दा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है और इस मुद्दे को लेकर चल रहे राजनीतिक घमासान में बीजेपी और टीएमसी दोनों का ही रुख एक दूसरे के विपरीत है। जहां कांग्रेस के लिए मुद्दा गले की हड्डी बन गया है क्योंकि कांग्रेस ने अपने तत्कालीन शासन में एनआरसी का समर्थन किया था, खुद असम के पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बात का दावा भी किया था। ऐसे में आज अगर कांग्रेस इसके खिलाफ खड़ी होती है तो उसका दोहरा रवैया उसके मतदाता आधार को नुकसान पहुंचा सकता है, ऐसे में वो कोई भी रिस्क नहीं ले रही है। वहीं टीएमसी को एक मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरने के लिए एक राष्ट्रीय मुद्दा मिल गया है क्योंकि इस मामले में कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। अब ममता बनर्जी एनआरसी का विरोध कर खुद को अवैध बांग्लादेशियों का मसीहा साबित करने की कोशिश कर रही हैं। इसके साथ ही वो अगले साल होने वाले 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इसी हथियार को बीजेपी के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की योजना भी बना रही हैं।
ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या ममता बनर्जी एनआरसी के जरिये अपना राजनीतिक उद्देश्य हासिल कर पाती या नहीं। क्या वो इसके जरिये 2019 के आम चुनावों में बीजेपी के खिलाफ मुख्य विपक्ष क रूप में उभर पाएंगी। अब ये तो आने वाले वक्त ही बता पायेगा। फिलहाल, उन्होंने एनआरसी को लेकर जो अपना रुख सामने रखा है और इससे वो अपनी महत्वकांक्षी योजना के लिए एक बार फिर से अपनी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं।