पूरा देश अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन से दुखी है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी 93 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह गये। आज वो पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे। जिस घड़ी में पूरी मीडिया और पत्रकार को पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर शोक व्यक्त करना चाहिए था उस समय कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष और “लिबरल” आउटलेट्स और प्रकाशन उनके निधन की खबर के माध्यम से अपना एजेंडा साधने में जुट गये।
Scroll.in पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर एजेंडा आधारित रिपोर्टिंग करने में सबसे आगे है। हिंदू विरोधी रामचंद्र गुहा ने इस तथाकथित लिबरल पोर्टल पर एक लेख लिहा था, इस लेख का शीर्षक “अटल बिहारी वाजपेयी(1924-2018): अ पोएट अमंग बिगोट्स ” जो अपने आप में बीजेपी के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण एजेंडा को दर्शाता है। इस पूरे लेख में बीजेपी पार्टी को इस तरह से चित्रित किया गया है कि बीजेपी कट्टरपंथी नेताओं से भरी है और अटल जी इन सभी नेताओं में अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कट्टरता को मानवता से ऊपर उठने की इजाजत नहीं दी थी। इस लेख में गुहा का दावा है कि वाजपेयी जी नेहरु और इंदिरा गांधी के प्रशंसक थे और उनकी विचारधारा अक्सर ही आरएसएस की विचारधारा से अलग नजर आती थी।
इससे स्पष्ट है कि Scroll.in और रामचंद्र गुहा की दिलचस्पी एक सम्मानित राजनेता को श्रद्धांजलि अर्पित करना नहीं था लेकिन उनका उद्देश्य दुखद निधन पर पीएम मोदी और बीजेपी पर निशाना साधने का था। यही वजह है कि उन्होंने अपने लेख में बताया है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद अटल जी ने दुःख व्यक्त किया था और इसी तरह 2002 में गुजरात दंगे के बाद पीएम मोदी और बीजेपी को डांट लगाई थी। इस तरह के अशिष्टतापूर्ण लेख ने अंत में यही निष्कर्ष निकाला कि, “जीवनभर मुझे हिंदुत्व के प्रतिद्वंद्वी के रूप में जाना जाता है, मुझे ये कहने में संकोच नहीं होता कि जब मैं हिंदुत्व के चेहरे अमित शाह और नरेंद्र मोदी को देखता हूं तो मैं अटल बिहारी वाजपेयी जी के सहज अंदाज, शांत स्वभाव की कमी को महसूस करता हूं।”
Scroll.in ही सिर्फ अकेला ऐसा पोर्टल नहीं है बल्कि Huffpost ने भी अटल जी के निधन पर अपना एजेंडा साधने के लिए खबर प्रकशित की। इसने दावा किया कि 2002 के दंगों के बाद वाजपेयी जी तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री को बर्खास्त करना चाहते थे लेकिन उन्हें ऐसा करने से रोका गया था। Huffpost ने ये भी लिखा कि, “पीएम नरेंद्र मोदी की राजनीति अक्सर ही उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से अलग करती थी। राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग जो पीएम मोदी के प्रो-हिंदू भावना की आलोचना करते हैं, उनके मुताबिक मोदी शासन ने अक्सर ही वाजपेयी जी के ‘उदार विचारों’ के विपरीत रही है, हालांकि, वो एक ही पार्टी के थे।” इस पोर्टल ने छद्म उदारवादियों के पसंदीदा दावे कि वाजपेयी जी ने मोदी से राज धर्म का पालन करने के लिए कहा था उसे उद्धृत किया, “राजा के लिए, शासक के लिए, प्रजा प्रजा में भेद नहीं हो सकता है। उसे न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न संप्रदाय के आधार पर, किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।“ Huffpost ने तोड़-मोड़ कर इस तरह से तथ्यों को पेश किया और ये दर्शाने की कोशिश की कि पीएम मोदी तब उन्हें बड़ी चतुराई से जवाब देकर चुप करा देते थे कि ‘हम भी वो ही कर रहे हैं साहिब।’ इसपर पूर्व प्रधानमंत्री ने जवाब दिया था कि, “मुझे भरोसा है नरेंद्र भाई कि तुम भी ऐसा ही कर रहे हो।” कई वर्षों से छद्म उदार मीडिया आउटलेट और वामपंथी उदारवादी कबाल तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी और पीएम मोदी के बीच के जुड़ाव को गलत तरीके से पेश करता आया है और ये दुखद है कि अटल जी के निधन पर भी इन्होने अपने प्रोपेगंडा को जारी रखा।
Scoopwhoop भी इसी एजेंडा में लिप्त रहा और दावा किया कि “आज के नेताओं के विपरीत वाजपेयी जी अब नरेंद्र मोदी को उनके कर्तव्यों को याद दिलाने नहीं आयेंगे।” DailyO ने भी इस दुखद क्षण में पीएम मोदी पर निशाना साधने का मौका नहीं छोड़ा और कश्मीरियत मुद्दे को उठाया। ये तक कहा कि कश्मीर पर पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी का प्रभाव वर्तमान के प्रधानमंत्री मोदी जी से कहीं जयादा था।
ये शर्मनाक है कि दुखद क्षण के समय में भी मीडिया अपना एजेंडा साधने से बाज नहीं आ रही। जब पूरा देश शोक में डूबा हुआ है तब भी ये मीडिया आउटलेट्स इस स्थिति का फायदा उठाने के प्रयास में जुटी है।