प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एनडीटीवी युवा कॉन्क्लेव में एक सवाल पर काफी भड़क गए और एक पत्रकार को मारने तक की बात कह दी। एनडीटीवी पत्रकार रविश कुमार से बात करते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘औरंगजेब’ कहे जाने की एक घटना का जिक्र करते हुए सार्वजनिक मंच पर तीखे बोल बोले। उन्होंने बताया कि जब एक पत्रकार ने उन्हें औरंगजेब कहा तो उनका गुस्सा सातवे आस्मां पर पहुंच गया था और गुस्से में उन्होंने ये बात कह दी। उन्होंने ये तक कहा कि वो उस पत्रकार से मिले और उसके खिलाफ FIR दर्ज करवाने की धमकी भी दी।
एनडीटीवी के शो में उन्होंने कहा, “मेरी गलती है कि मैंने दिल्ली से लखनऊ बुलाकर पत्रकार को कहा कि मुझे औरंगजेब लिखने के लिए तुम्हें जितने पैसे मिले, उससे दोगुना मुझसे ले लेते।” उन्होंने कहा, “मुझसे यही गलती हो गई मुझे भी औरंगजेब की तरह तलवार निकालनी चाहिए और उस शख्स को उसी समय खत्म कर देना चाहिए।” इस बयान के बाद रविश कुमार ने उनके बयान में उनकी गलती पर ध्यान देने के लिए कहा तो अखिलेश ने अपने बचाव में कहा कि, चूंकि पत्रकार को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है ये स्पष्ट करता है कि मैं औरंगजेब की तरह क्रूर नहीं हूँ। रविश कुमार ने अखिलेश की गलती पर प्रकाश डालने की जगह उनका बचाव किया और आगे का सेशन निधि को जारी रखने को कहा।
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के मुंह से इस तरह के शब्द शोभा नहीं देते हैं। पत्रकार को लेकर दिया गया ये बयान सपा पार्टी के नेताओं की मानसिकता और राजनीति के तरीकों को दर्शाता है। एक पत्रकार जिसे निष्पक्ष खबरें लिखने के लिए भुगतान मिलता है उसे उनके पक्ष में खबर लिखने के लिए ‘पैसे’ तक ऑफर कर रहे थे। इससे स्पष्ट है कि एक नेता होते हुए भी शायद वो अपने लिए सकारात्मक खबरें प्रकाशित करवाने के लिए एक पत्रकार की पत्रकारिता को ‘खरीदने की बात कर रहे थे।
आश्चर्य की बात है कि अखिलेश यादव के इस विवादित बयान पर किसी भी मीडिया ने चर्चा नहीं की ये स्पष्ट रूप से मीडिया के दोहरे रवैये को दिखाता है। अखिलेश यादव स्पष्ट रूप से ‘हिंसा’ की बात कर रहे थे जो उनकी पूर्व की सरकार के ‘गुंडा’ राज की भी झलक दिखाता है कि ‘अगर खिलाफ जाओगे तो ठोक दिए जाओगे’, इस तरह के बयान पर लिबरल मीडिया क्यों चुप है? शायद अखिलेश यादव के धमकी भरे बयान से डर गयी है। इस शो में अखिलेश यादव ने बीजेपी और मोदी सरकार पर कई हमले किये और एनडीए की जीत को झूठ की जीत भी करार दिया, मीडिया ने इसे बखूबी दिखाया और कई सवाल किये। यही नहीं रविश कुमार ने अखिलेश यादव के हिंसा वाले बयान पर आगे सवाल करने की बजाय सवाल ही बदल दिया। विडंबना ये है कि, सार्वजनिक मंच से कोई नेता एक पत्रकार को धमकी दे रहा है और रविश कुमार और अन्य लिबरल मीडिया ने इसपर कोई आपत्ति नहीं जताई। क्या ये मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरे को नहीं दर्शाता है? क्या अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में नहीं है?