महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में इस साल एक जनवरी को हुई व्यापक हिंसा के मामले में मंगलवार को पुलिस ने 6 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था जिसके बाद से पूरे वामपंथी गैंग में रोष है। 6 जून और 28 अगस्त को व्यापक छापेमारी के दौरान पुणे पुलिस को गिरफ्तार किये गये अर्बन नक्सलियों के घर से कई ऐसे सबूत मिले हैं जो इन कार्यकर्ताओं का माओवादी संगठनों और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के बीच जुड़ाव साबित करता है। साक्ष्यों से ये प्रकाश में आया है कि ये कार्यकर्ता जिन्हें वामपंथी-उदारवादी गैंग का समर्थन प्राप्त है वो राजीव गांधी की हत्या की तरह एक और घटना को अंजाम देना चाहते थे। महाराष्ट्र पुलिस ने दावा किया कि तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता शहरी योजना को मजबूत करने और अपने गढ़ क्षेत्रों में नक्सलियों के लिए टॉप ग्रेड के हथियारों की खरीद के लिए सीपीआई (माओवादी) के साथ मिलकर साजिश रच रहे थे। पुलिस ने कुछ ऐसे साक्ष्य भी पेश किये जो सीधे और परोक्ष रूप से साबित कर्ता है कि वरवर राव, वेरनॉन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलाखा माओवादी गतिविधियों में शामिल थे।
इस गिरफ्तारी से जुड़े पूरे विवाद और आरोप-प्रत्यारोप में कहीं न कहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस को नजरअंदाज किया जा रहा है। मुख्यमंत्री फडणवीस ने वो किया जो अभी तक किसी भी राज्य के सीएम ने नहीं किया है। उन्होंने वामपंथी-उदारवादी गैंग को आड़े हाथो लिया और ऐसी जगह वार किया जहां उन्हें सबसे ज्यादा चोट लगे। महाराष्ट्र पुलिस ने अर्बन नक्सलियों पर शिकंजा कसा और अचानक उनके घर पर छापेमारी कर उन्हें बड़ा झटका दिया। पुलिस ने बिना कोई देरी किये तेजी से जांच प्रक्रिया शुरू की और साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई शुरू कर दी और सही समय पर माओवादियों को समर्थन देने वाले और साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। कुछ गिरफ्तारी 6 जून को की गयी थी जिसने अर्बन नक्सलियों को चौंका दिया था और इसके बाद कुछ और अर्बन नक्सलियों को 28 अगस्त को छापेमारी कर गिरफ्तार किया। ये पहली बार है कि एक पुलिस बल ने शहरी नक्सलियों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई की हो और वो भी इतने बड़े पैमाने पर जिसने पूरे गैंग को हिलाकर रख दिया है।
सभी ने देखा कैसे पुलिस की कार्रवाई से शहरी नक्सलियों का सच बाहर आया और उन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया। इस बीच वामपंथी गैंग बैचैन हो गया और सरकार पर आरोप लगाने लगा कि सरकार ने ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं’ के खिलाफ कार्रवाई इसलिए की क्योंकि वो सरकार के कार्यों पर सवाल उठा रहे थे। तथाकथित अरुण रॉय, अरुंधती रॉय और प्रशांत भूषण ने सरकार और बीजेपी पर आरोप लगाने शुरू कर दिए और इस कार्रवाई के लिए सरकार की खूब आलोचना करने लगे। फिर भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जिन्होंने अर्बन माओवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की। उन्होंने शहरी क्षेत्रों में माओवादियों से जुड़े लोगों के खिलाफ जरा भी नर्मों नहीं बरती और आने वाले समय के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है।
गौरतलब है कि, इससे पहले किसी भी मुख्यमंत्री ने इस तरह के मामलों में सख्ती से कार्रवाई नहीं की है। फडणवीस को बिना डर के इस तरह की कार्रवाई करने के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए। इस तरह की कार्रवाई से उन्हें आलोचनाओं और विरोध का सामना करना पड़ेगा ये जानते हुए भी कि उन्होंने अर्बन नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई की। भारत के इतिहास में महाराष्ट्र पुलिस की ये एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।