आम चुनाव पास आ रहे हैं और पश्चिम बंगाल में बीजेपी की पकड़ को मजबूत होते देख अचानक ममता बनर्जी को हिंदुओं की चिंता होने लगी है और अब वो हिंदुओं को लुभाने के लिए तरह तरह के प्रयास कर रही हैं। सोमवार को ममता ने दुर्गा पूजा समितियों के आयोजकों की एक बैठक के दौरान ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ के तहत ये राशि मुहैया कराए जाने की घोषणा की। उन्होंने राज्य की छोटी-बड़ी करीब 28 हजार दुर्गा पूजा कमेटियों को 10-10 हजार रुपये अनुदान देने की घोषणा की है। जिसका मतलब ये है कि उन्होंने राज्य में दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए पूजा समितियों को कुल 28 करोड़ रुपये का वित्तीय अनुदान देने की घोषणा की है। यही नहीं उन्होंने इस दौरान दुर्गा पूजा आयोजकों के लिए और सुविधा के लिए बिजली विभाग को पूजा आयोजकों से लाइसेंसिंग के लिए शुल्क न लेने के लिए कहा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी के बाद अब ममता ‘इच्छाधारी हिंदू’ की भूमिका अच्छी तरह से निभा रही हैं।
ममता बनर्जी हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति करती आई हैं और हमेशा ही उन्होंने राज्य में हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। वोट बैंक की राजनीति के लिए ममता कोई भी रास्ता चुनने से पीछे नहीं हटती चाहे वो हिंसा का रास्ता ही क्यों न हो। आज ममता बनर्जी अपनी इस घोषणा से ये दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि उन्हें हिंदुओं की परवाह है और वो कभी भेदभाव नहीं करती। ममता का कहना है कि साजिश के तहत कुछ शरारती तत्व रुपये का प्रलोभन देकर पूजा कमेटी के सदस्यों को अपने राजनीतिक साजिश में फंसाने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि, यहां ये समझ से बाहर है कि अचानक से पूजा कमेटी के लिए अनुदान की घोषणा करके वो कैसे लुभाने की राजनीति से दूर हैं?
उन्हें आज अचानक दुर्गा पूजा के लिए सुरक्षा और अन्य सहायता की चिंता क्यों सताने लगी है जिन्होंने हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है? ये वही ममता बनर्जी हैं जिन्होंने पिछले साल जब दुर्गा मूर्ति विसर्जन और मुहर्रम एक ही दिन पड़े थे तब दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी। ऐसा करके उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया था। ममता ने अपने फैसले के पीछे बेतुका कारण दिया था और कहा था, “दोनों पर्व के चलते दो समुदायों में विवाद या झगड़ा न हो इसलिए ये फैसला लिया है।”
हालांकि, हाई कोर्ट के उनके इस फैसले पर उन्हें फटकार लगाई थी और कहा था कि, 1982 और 1983 में मुहर्रम और विजयादशमी एक ही दिन पड़े थे लेकिन कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था और सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से हुआ था। इससे ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति सामने आ गयी थी, कोर्ट के फैसले ने ममता की नीतियों पर पानी फेर दिया था।
वैसे ये कोई पहला मामला है इससे पहले भी ममता बनर्जी ने हिंदुओं के साथ तानाशाह जैसा बर्ताव किया है। या यूं कहें कि ममता सरकार ने पहले भी इसी तरह के आदेश दिए थे जिसे कलकत्ता हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। साल 2016 में ममता ने इसी तरह का आदेश दिया था और दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी जबकि विजयदशमी 11 अक्टूबर और मुहर्रम 12 तारीख को पड़ा था। तारीखें अलग थीं फिर भी ममता ने तुगलकी फरमान सुना दिया था। हालांकि, तब कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य सरकार के आदेश को ख़ारिज कर दिया था और इसे तुष्टिकरण करार दिया था। ममता सरकार ने हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने पर भी रोक लगा दी थी और जब11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के लिए जुलूस निकाला गया तो पुलिस द्वारा उनपर लाठीचार्ज करवाया गया था। धूलागढ़ दंगे में जिस तरह से हिंदुओं पर अत्याचार किया गया उन्हें मारा पीटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया तब भी ममता ने हिंदुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया था साथ ही ये तक कह दिया था कि ये कोई घटना नहीं थी। आज वो कहती हैं कि उन्होंने अपने राज्य में भेदभाव की राजनीति कभी नहीं की हमेशा शांति और एकता को बढ़ावा दिया है। ममता बनर्जी के अंदर हिंदुओं के लिए सिर्फ नफरत रही है और समय समय पर उनकी राजनीति से ये नफरत सामने भी आई है।
ममता ने अपने शासन काल में कभी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं किया और आज वो खुद को हिंदुओं का हितैषी दर्शा रही हैं, ये स्पष्ट रूप से उनकी गंदी राजनीति को दर्शाता है। ममता बनर्जी ‘इच्छाधारी हिंदू’ हैं जो बस राजनीतिक फायदे के लिए खुद को हिंदुओं का हितैषी बता रही हैं और दूसरी पार्टी पर वोट बैंक की राजनीति के आरोप मढ़ रही हैं। ममता को अब डर सताने लगा है कि कहीं बीजेपी की कुशल नीतियों से उनकी कुर्सी न छीन जाए। यही वजह है कि वो अब हिंदुओं को लुभाने के लिए ‘इच्छाधारी हिंदू’ बन गयी हैं।