इंडो एशियन न्यूज़ सर्विस (आईएएनएस) ने 12 सितंबर को प्रकाशित अपनी एक खबर में बहुत बड़ी गलती की। ये खबर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक से जुड़ी थी जिसमें नयी योजना को मंजूरी दी गयी। ये योजना किसानों के हित से संबंधित थी जिसमें फसल की कीमतों पर उचित मेहनताना देने की नीति (प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान) पर मुहर लगाई गयी। इस खबर में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आपत्तिजनक शब्द का उपयोग किया था। आईएएनएस ने अपनी खबर में प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान का जिक्र करते हुए अपनी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के साथ ‘बकचोद’ शब्द लिखा था। ये सिर्फ एक गलती थी या किसी ने जानबूझकर पीएम मोदी के साथ आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया गया ये गलती की ये अभी तक पता नहीं चल पाया है। ये आश्चर्य करने वाला है कि कैसे एक आईएएनएस जैसी न्यूज एजेंसी ने इतनी बड़ी गलती की जो अपनी रिपोर्ट में शुद्धता, निष्पक्षता और दृढ़ता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए जानी जाती है। जैसे ही ये बात आईएएनएस को पता चली उसने पहले इस खबर को अपनी वेबसाइट से हटाया और अपने दो कर्मचारियों को दण्डित किया साथ ही इस खबर के लिए स्पष्टीकरण भी जारी किया।
एजेंसी ने अपने रिपोर्टर को निलंबित कर दिया जिसने ये पूरी खबर प्रकाशित की थी और इस खबर से जुड़े सभी एडिटर को कारण बताओ नोटिस भेज दिया है। आईएएनएस में कम से कम तीन से चार एडिटर चेकपॉइंट हैं जिनसे छोटी बड़ी सभी खबरें होकर गुजरती हैं। ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि एडिटर चेकपॉइंट होने के बावजूद इतनी बड़ी गलती पर कैसे किसी का ध्यान नहीं गया।
अफसोस की बात है कि पत्रकारों के निलंबन और संपादकों को भेजे गये कारण बताओ नोटिस ने मीडिया में एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। वामपंथी गैंग प्रभुत्व वाली मीडिया हाउस ने आईएएनएस के फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले का नाम देना शुरू कर दिया। उन्हें पीएम मोदी के लिए आपत्तिजनक शब्द से कोई परेशानी नहीं है और अब इसे बहस का मुद्दा बनाने की कोशिश में जुट गये हैं कि क्यों मीडिया में इस तरह के अपशब्दों का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए। आईएएनएस द्वारा कर्मचारियों को दण्डित किये जाने को भी गलत तरीके से पेश करने की कोशिश की जा रही है और ये दर्शाने की कोशिश की जा रही है कि कैसे बीजेपी मीडिया हाउस के कामों में हस्तक्षेप करती है। वाम के इन ‘बुद्धिजीवियों’ को ये पता होना चाहिए कि आईएएनएस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और न ही वो सरकारी न्यूज़ एजेंसी है, ये एक प्राइवेट संस्था है जिसने अपने कर्मचारियों को रिपोर्टिंग में बड़ी गलती करने के लिए दण्डित किया है।
आईएएनएस के पास अधिकार है कि वो उन कर्मचारियों को दण्डित करे जो गलती करते हैं और स्वतंत्र न्यूज़ एजेंसी की छवि को धूमिल करता है। खबर में आपतिजनक शब्द का इस्तेमाल करना और वो भी उनके लिए जो भारत के प्रधानमंत्री हैं आईएएनएस की विश्वसनीयता पर ही कई सवाल खड़े करता है। आईएएनएस प्रमुख ने पहले ही इस विवादास्पद लेख में हुई गलती के लिए माफ़ी मांग ली और आश्वस्त किया कि आगे इस तरह की गलती दोबारा नहीं होगी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी वहीं, वामपंथी गैंग की प्रतिक्रिया मीडिया हाउस पर हमला करने की हताशा को दर्शाता है। वामपंथी प्रभुत्व वाली मीडिया हाउस ने बहुत पहले ही निष्पक्ष पत्रकारिता को छोड़ दिया था और पत्रकारिता की जगह अपना प्रोपेगंडा को बढ़ावा देने के लिए काम करना शुरू कर दिया था और वो आज भी वही कर रहे हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मीडिया हाउस में निष्पक्ष और ईमानदार पत्रकारिता नहीं बहुत ही कम रह गयी है। ये शर्मनाक है कि कैसे मीडिया हाउस जो कभी सही जानकारी आम जनता तक पहुँचाने के लिए मुखर थी आज वही मीडिया शर्मनाक तरीके से अपने प्रोपेगंडा को बढ़ावा दे रही है।