पुण्य प्रसून बाजपेयी का प्रेस ‘स्वतंत्रता’ पर दोहरा रुख

पुण्य प्रसून बाजपेयी पत्रकार

एबीपी न्यूज के पूर्व पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने द वायर पर एक आर्टिकल लिखा था। विशेष रूप से ये आर्टिकल बीजेपी और पीएम मोदी पर हमला करने के उद्देश्य से लिखा गया था। आर्टिकल में पुण्य प्रसून बाजपेयी ये भी बताया है कि एबीपी न्यूज़ के न्यूज़ चैनल के चीफ एडिटर ने उनसे कहा था कि अपनी खबरों में पीएम मोदी का नाम लेने से बचें। यही नहीं एबीपी न्यूज़ से निकलने के बाद ये भी संकेत दिए थे कि केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की वजह से उन्हें चैनल छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा था पत्रकारों पर पीएम मोदी की सरकार दबाव बनाती है और वही खबर दिखाने को लिए कहा जाता है जो मौजूदा सरकार के पक्ष में हो। उनके इस आर्टिकल से तो यही संकेत मिलते हैं कि सरकार मीडिया की निगरानी करती है और मीडिया पर अपना नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रही है।

हालांकि, पुण्य प्रसून बाजपेयी ने चैनल से निकलने के बाद जो भी कहा था वो किसी से छुपा नहीं है लेकिन हाल में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में उनके रंग कुछ और ही नजर आये। दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में कमिटी अगेंस्ट असाल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पुण्य प्रसून बाजपेयी भी शामिल हुए थे। इस दो दिवसीय (22 और 23)कार्यक्रम में देश के कई पत्रकार शामिल हुए थे। इसके अलावा पत्रकारों पर होते हमले और मीडिया पर सरकारी दबाव को लेकर तमाम मुद्दों पर बातें हुई। इस दौरान पुण्य प्रसून बाजपेयी ने अपने पुराने दर्द को भी साझा किया लेकिन अचानक से उनके शब्दों में हुए बदलाव ने सभी को आश्चर्य कर दिया। दरअसल, इस कार्यक्रम में उन्होंने वर्तमान समय में मीडिया पर सरकार द्वारा किसी भी तरह के दबाव से इंकार कर दिया और ये कहा कि देश में पत्रकारों पर सरकार के दबाव की कहानी कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कहकर उन्होंने ‘द वायर’ पर लिखे अपने आर्टिकल पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने इस कार्यक्रम के दौरान बताया मनमोहन सरकार घोटालों और उन मामलों को दिखाए जाने से रोक लगाने की कोशिश करती थी जिससे केंद्र पर कोई सवाल उठे। उन्होंने एक घटना का जिक्र भी किया और बताया कि जब वो जी न्‍यूज में काम करते थे तब मनमोहन सिंह उन्‍हें (खबर दिखाने से) रोका करते थे, पर वह नहीं रुकते थे। इसके अलावा उन्‍होंने ये भी बताया कि एबीपी न्‍यूज चैनल में नेताओं की तस्‍वीरें लगी हैं, अगर वो तस्‍वीर खराब दिखे तो उसे ठीक कराने के लिए भी नेता के फोन आते थे। एबीपी के पूर्व पत्रकार के व्यवहार में आया ये बदलाव आश्चर्यजनक है और अपने इन कथनों से कहीं न कहीं वो अपने ही कहे हुए शब्दों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

अब सवाल ये उठता है कि ‘द वायर’ पर पुण्य प्रसून द्वारा जो आर्टिकल शेयर किया गया था उसके पीछे किसका हाथ था? हो सकता है कि चैनल के पूर्व पत्रकार पर वाम मीडिया और विपक्ष के नेताओं का दबाव था कि वो मौजूदा सरकार के खिलाफ लिखें। या हो सकता है कि ये एक पत्रकार की आड़ में विपक्ष और वाम मीडिया की कोई चाल थी जिसके जरिये वो ये दिखाने की कोशिश में थे कि बीजेपी की केंद्र सरकार में मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है। इस कार्यक्रम में पूर्व पत्रकार के बयान ने इस झूठ पर से पर्दा उठा दिया है कि केंद्र सरकार द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता को दबाया जा रहा है। ‘मीडिया की आजादी खतरे में है’ ये पूरी तरह से एक षड्यंत्र की तरह नजर आ रहा है। ये भी हो सकता है कि पुण्य प्रसून बाजपेयी पर आर्टिकल लिखने के लिए दबाव बनाया गया हो या वाम मीडिया और कांग्रेस इसके जरिये बीजेपी की छवि को धूमिल करने की कोशिश कर रही हों ताकि 2019 के आम चुनाव में उन्हें इसका लाभ मिल सके। पुण्य प्रसून बाजपेयी और उनका भाषण और उनके आर्टिकल से तो यही लगता है लेफ्ट की मीडिया हाउस और कांग्रेस द्वारा बार बार उन्हें ऐसा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। हो सकता है एबीपी न्यूज़ को छोड़ने का विचार व्यक्तिगत हो लेकिन जानबुझकर इसे तुल देने की कोशिश की गयी हो और ये एक बढ़िया अवसर साबित हो जिसके जरिये विपक्ष अपनी राजनीति की रोटी सेंकना चाहती हो। ये बहुत ही शर्मनाक है कि अपने स्वार्थ के लिए विपक्ष और वाम मीडिया किसी पत्रकार के व्यक्तिगत फैसले या किसी चैनल के मामले को इस तरह से तुल दिया और जनता को गुमराह करने की कोशिश की।

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