राफेल सौदे पर फ्रांस सरकार ने कहा, भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में भारत सरकार की नहीं थी कोई भूमिका

राफेल फ्रांस

भारत और फ़्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर हुए समझौते पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के एक बयान से शुरू हुए विवाद के बीच फ़्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है।

राफेल सौदे को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद से देश की राजनीति में सियासी पारा चढ़ गया विपक्ष को एक बार फिर से इस सौदे को लेकर मोदी सरकार पर हमला करने की वजह मिल गयी। इसके बाद इस मामले में नया मोड़ तब आया जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद फ्रांस सरकार और दसॉल्ट एविएशन का विरोधाभासी बयान सामने आया। फ्रांस सरकार ने स्पष्ट किया कि भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में फ्रांस सरकार किसी भी तरह से शामिल नहीं है। इसके साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि फ्रांस की कंपनियों को पूरी आजादी है कि वो उन भारतीय साझेदार कंपनियों को चुनें जिन्हें वो सबसे ज़्यादा उपयुक्त समझती हैं। फ्रांस सरकार के इस जवाब ने कांग्रेस की बोलती बंद कर दी है। फ्रांस सरकार ने खुलासा किया कि 2013 कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में ही रिलायंस का चुनाव दसॉल्ट एविएशन ने किया था।

दसॉल्ट के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) एरिक ट्रैपियर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्री इस विमान सौदे में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ महत्वपूर्ण सहयोगी हो सकती है। इसे उस समय के टेंडर के अनुसार सहयोगी बनाया गया था। ट्रैपियर ने ये तक कहा था कि दसॉल्ट रिलायंस इंडस्ट्री के साथ एक संयुक्त उपक्रम कपनीं बनाने के लिए समझौते पर काम कर रही है। इसकी लागत 25 बिलियर डॉलर से अधिक हो सकती है। 2013 में बंगलूरू में हुए एयर शो के दौरान ट्रैपियर ने कहा था, “हमारी रिलायंस कंपनी के साथ विशेष साझेदारी है। एक निजी कंपनी होने के नाते रिलायंस रक्षा क्षेत्र में प्रवेश करना चाहती है और हम इस साझेदारी का समर्थन कर रहे हैं। हम भारत में रिलायंस के साथ मिलकर एक संयुक्त उपक्रम (जेवी) कंपनी बनाएंगे।“ दोनों पक्ष राफेल विमानों के पंखों का निर्माण भारत में करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भी सहमत हुए थे, इससे रिलांयस इंडस्ट्री का रक्षा क्षेत्र में प्रवेश होना था। एचएल और दसॉल्ट एविएशन के बेच कुछ बातें सुलझ नहीं पा रही थी जिस वजह से दोनों के बीच ये सौदा नहीं हो सका था। बाद में कुछ बदलावों के बाद मुकेश अंबानी ने रक्षा क्षेत्र में नहीं जाने का फैसला किया जबकि अनिल अम्बानी इस क्षेत्र में आने के लिए तैयार हो गये। ये कांग्रेस की बोलती बंद करने के लिए पर्याप्त था जो बार बार राफेल को घोटाले का नाम देने पर तुली हुई है। फ्रांस सरकार ने आगे जो स्पष्टीकरण दिया उसने फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और भारत में कांग्रेस को पूरी तरह से शांत कर दिया। फ्रांस के स्पष्टीकरण ने भारत सरकार के पक्ष को सही साबित किया बल्कि कांग्रेस के झूठे दावों को भी सामने रख दिया है जो दसॉल्ट एविएशन और राफेल सौदे को लेकर तरह तरह के आरोप लगा रही थी और भारतीय मीडिया और फ्रांस मीडिया हाउस को गुमराह कर रही थी।

फ्रांस सरकार ने अपने बयान में कहा, “फ्रांस की सरकार किसी भी तरह से भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में शामिल नहीं है। उनका चयन फ़्रांस की कंपनियों को करना है। भारतीय अधिग्रहण प्रक्रिया के मुताबिक फ़्रांस की कंपनियों के पास ये पूरी आज़ादी है कि वो उन भारतीय साझेदार कंपनियों को चुनें जिन्हें वो सबसे ज़्यादा उपयुक्त समझती हैं और उसके बाद, ऐसी विदेशी परियोजनाएं जो उन्हें भारत में इन साझेदारों के ज़रिए पूरी करनी है, के लिए उन्हें भारतीय सरकार के सामने अनुमोदन के लिए पेश करें।” इसके बाद दसॉल्ट एविएशन ने कहा, “दसॉल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस ग्रुप के साथ साझेदारी करने का फैसला किया था। ये दसॉल्ट एविएशन का फैसला था। फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की घोषणा 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी और 2016 में सौदे पर हस्ताक्षर हुआ था।”

इन दोनों ही बयान ने स्पष्ट कर दिया कि वास्तव में कांग्रेस और अन्य विपक्ष द्वारा लगाये जा रहे आरोप झूठे हैं और कोई घोटाला नहीं हुआ बस वो जनता और मीडिया को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास होना चाहिए कि वो देश की सुरक्षा के साथ समझौता कर रही है।

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