राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला दिल्ली के विज्ञान भवन बुधवार को समाप्त हो गया। तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला में संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के दृष्टिकोण को सामने रखा साथ ही शिक्षा, हिंदुत्व, आरक्षण जैसे कई विषयों को अपने भाषण में शामिल किया। संघ ने आम जनता से सीधा संवाद किया था। इस दौरान आरएसएस ने संघ पर लगे आरोपों, पूर्वाग्रहों, आशंकाओं पर सीधे बात की और अंतरजातीय विवाह, शिक्षा नीति, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गौरक्षा जैसे कई मुद्दों पर संघ की विचारधारा को जनता के समक्ष रखा। उन्होंने अपने भाषण में बीजेपी और संघ दोनों पर लगे आरोपों पर कहा कि संघ राजनीति में हिस्सा नहीं लेता है और न ही चुनाव लड़ता है बल्कि समय-समय पर सुझाव देता है। इस कथन के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक पर ये चर्चा तेज हो गयी कि बीजेपी और आरएसएस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। संघ अपनी विचारधारा को मॉडरेट कर रहा है वो समय के साथ अपने संगठन में बदलाव कर रहा है। क्या वाकई में ऐसा है? क्या संघ की विचारधारा में ऐसा बदलाव आया है कि वो अब बीजेपी से दूरी बना रहा है? या वो वास्तव में कभी किसी विशेष राजनीतिक पार्टी से नहीं बल्कि राष्ट्रहित का समर्थन करता आया है।
कांग्रेस ने सालों देश पर शासन किया लेकिन उसके शासन में देश की दशा में सुधार की जगह भ्रष्टाचार, हिंसा, विरोध बढ़ा जबकि कांग्रेस के विपरीत भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने के बाद से ही आम जनता जमीनी स्तर पर जुड़ने की कोशिश की है और देश के विकास के लिए काम कर रही है। वो सिर्फ एक वर्ग को ही नहीं बल्कि समाज के हर तबके को साथ लेकर चल रही है। संघ भी अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय हित के लिए काम करता रहा है। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा आरएसएस से प्रेरित है और अक्सर ही पार्टी के वरिष्ठ नेता आरएसएस के प्रमुख से देश के कई गंभीर मुद्दों पर सलाह लेते रहे हैं। बीजेपी भी देश के सभी नागरिकों का भला चाहती है वो धर्म को लेकर विभाजन की नीति नहीं करती है।
सभी के कल्याण में अपना कल्याण, और अपने कल्याण से सबका कल्याण, ऐसा जीवन जीने का अनुशासन, और सभी के हितों का संतुलित समन्वय हिंदुत्व है, भारत से निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्य बोध है, उसका नाम हिंदुत्व है #FutureBharat
— RSS (@RSSorg) September 18, 2018
हिंदू राष्ट्र का मतलब यह नही है कि इसमें मुस्लिम नही रहेगा, जिस दिन ऐसा कहा जायेगा उस दिन वो हिंदुत्व नही रहेगा, हिंदुत्व तो विश्व कुटुंब की बात करता है। #FutureBharat
— RSS (@RSSorg) September 18, 2018
अपने भाषण में आरएसएस प्रमुख ने कहा भी कि संघ ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा दिया है इसका मतलब ये नहीं है कि देश के अन्य धर्म के लोगों का कोई महत्व नहीं बल्कि उन्होंने कहा, “हिंदू राष्ट्र का मतलब ये नही है कि इसमें मुस्लिम नही रहेगा, जिस दिन ऐसा कहा जायेगा उस दिन वो हिंदुत्व नही रहेगा, हिंदुत्व तो विश्व कुटुंब की बात करता है।“ हिंदुत्व के अर्थ को समझाते हुए मोहन भगवत ने स्पष्ट करते हुए कहा, “सभी के कल्याण में अपना कल्याण, और अपने कल्याण से सबका कल्याण, ऐसा जीवन जीने का अनुशासन, और सभी के हितों का संतुलित समन्वय हिंदुत्व है, भारत से निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्य बोध है, उसका नाम हिंदुत्व है।” उन्होंने आगे कहा, “संघ का काम बंधु भाव का है, और इस बंधु भाव का एक ही आधार है विविधता में एकता, और ये विचार देने वाली हमारी चलती आयी हुई विचारधारा है, जिसे दुनिया हिंदुत्व कहती है, इसलिये हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं।”मोहन भागवत के इन पंक्तियों ने धर्म के ठेकेदारों और विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है जो बीजेपी पार्टी पर एक संघ को बढ़ावा देने और देश में धर्म की राजनीति का आरोप लगाते हैं। मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि वो किसी पार्टी के साथ नहीं बल्कि राष्ट्रहित का साथ देने वालों का हमेशा समर्थन करते रहे हैं चाहे वो कोई पार्टी हो, कोई आम व्यक्ति हो या कोई अन्य संगठन। फिर भी वामपंथी मीडिया ने इस मुख्य बिंदु को नजरअंदाज कर दिया। बीजेपी पर हमला करने का एक अवसर नहीं छोड़ने वाली मीडिया ने यहां भी संघ और बीजेपी पार्टी में खटास पैदा करने की कोशिश की और संघ के प्रमुख के भाषण को गलत तरह से चित्रित किया।
हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि आखिर क्यों आरएसएस के लोग बीजेपी से ही जुड़ते हैं इसपर मोहन भागवत ने कहा, ‘‘ये पूछा जाता है कि उनके इतने सारे लोग एक ही पार्टी में क्यों हैं। यह हमारी चिंता नहीं है। वे अन्य पार्टियों के साथ क्यों नहीं जुड़ना चाहते, यह उन्हें विचार करना है। हम कभी भी किसी स्वयंसेवक को किसी खास राजनीतिक दल के लिए काम करने को नहीं कहते।’’ ये दर्शाता है कि संघ की तरह ही बीजेपी भी राष्ट्रहित चाहती है और ये बाद संघ से जुड़े सदस्य भी अच्छी तरह से समझते हैं तभी तो वो अन्य पार्टियों की बजाय बीजेपी से जुड़ते हैं।
हमेशा से कहा जाता रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस हिंदुत्व को बढ़ावा देते हैं लेकिन किसी ने भी हिंदुत्व के वास्तविक अर्थ को सामने नहीं रखा बल्कि मीडिया हो या राजनीतिक पार्टियां सभी ने इसे धर्म से जोड़ दिया और देश में विभाजन की राजनीति शुरू कर दी। इस अर्थ को समाज का हर वर्ग गहराई से समझने की जरूरत है। इसके लिए देश में हर तरह का सुधार लाने के लिए एक संगठन ही नहीं बल्कि राजनीति में भी इसका आधार होना चाहिए। बीजेपी एक राजनीतिक पार्टी के रूप में देश में सकारात्मक बदलाव कर रही है तो आरएसएस एक संगठन के रूप में कर रहा है। ऐसे में आरएसएस और बीजेपी पार्टी के तरीकों में अंतर जरुर है लेकिन लक्ष्य एक है और यही बात मोहन भागवत में अपने भाषण में स्पष्ट किया। आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए आरएसएस प्रमुख ने स्पष्ट किया कि संघ की विचारधारा राष्ट्रहित रही है न कि किसी अन्य विचारधारा को दबाने की रही है। जो देश के निर्माण में शामिल है संघ हमेशा उसके साथ है और आज भी संघ की विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है।