सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारी प्रदर्शन और विरोध के बाद आखिरकार केरल की कम्यूनिस्ट सरकार ने एक सही फैसला लिया है। इससे पहले केरल सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानते हुए मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश के प्रतिबंध को हटाए जाने के पक्ष में हैं और मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करेगी। हालांकि, अब केरल सरकार ने अपने शब्दों को वापस ले लिया है। अब केरल सरकार ने अपने रुख में बदलाव करते हुए आईजी को कहा है कि उन महिलाओं को वापस ले आओ जो मंदिर में प्रवेश करने के प्रयास कर रही थीं। इन महिलाओं को पुलिस सुरक्षा प्रदान कर रही थी।
जो महिलाएं मंदिर में प्रवेश के लिए गई थीं वास्तव में वो वूमेन एक्टिविस्ट थीं, वो अय्यपा की भक्त नहीं थीं जिन्हें भारी विरोध प्रदर्शन के बाद आधे रास्ते ही से लौट जाना पड़ा था। केरल सरकार के मंत्री ने महिला की पहचान सामने आने के बाद ही राज्य सरकार के रुख को सामने रखा। इसके साथ ही मंत्री ने अपने बयान में कहा कि, सबरीमाला मंदिर कार्यकर्ताओं के प्रोपेगंडा के लिए नहीं है बल्कि अय्यपा के भक्तों के लिए है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि मंदिर में प्रवेश की अनुमति सिर्फ उन्हीं महिलाओं के लिए है जो अय्यपा की भक्त हैं। स्पष्ट रूप से सच्चे श्रद्धालुओं को ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति है। जो महिला कार्यकर्ता मंदिर की शांति को भंग करने के मकसद से गई थी वोअय्यपा की भक्त नहीं उन्हें प्रवेश कि अनुमति नहीं है। इससे साफ है कि वूमेन एक्टिविस्ट को अब मंदिर की शांति में रुकावट के तौर पर देखा जा रहा है।
ये बहुत बड़ी सलता है कि तथाकथित सेक्युलर सरकार ने एकजुट हुए भक्तों के आगे घुटने टेक दिए दिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से केरल का वातावरण पहले से ही तनावपूर्ण था और ये माहौल और तनावपूर्ण हो गया जब राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जबरदस्ती लागू करने का प्रयास किया। इस विरोध प्रदर्शन में ज्यादातर महिलाएं शामिल हैं और वो सभी इस फैसले का कड़ा विरोध कर रही हैं। महिला प्रदर्शनकारियों ने सिर्फ इस फैसले का विरोध किया बल्कि 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश को भी रोकने में सबसे आगे रहीं। ऐसा लगता है कि लेफ्ट की सरकार ने इससे भारी विरोध से सीख लेते हुए ही अपने फैसले में बदलाव किया है।
वास्तव में जहाँ लेफ्ट अच्छी संख्या में हिंदू मतदाताओं के समर्थन का लाभ उठाता है वहीं कांग्रेस मुस्लिम मतदाता के समर्थन का लाभ उठाती है। कम्युनिस्ट सरकार को ये समझ आ गया कि यदि वो लगातार सबरीमाला मंदिर में कोर्ट के फैसले को थोपने का प्रयास करेगी तो आगामी चुनाव में उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके साथ ही राज्य में बीजेपी के बढ़ते समर्थन से भी केरल की सरकार में इस डर को और बढ़ावा मिला। कम्युनिस्ट सरकार को ये बात समझ आ गयी कि इस कदम से हो सकता है हिंदुओं का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ जाए। पहले से ही कम्युनिस्ट सरकार को मुस्लिमों का समर्थन नहीं है ऐसे में उन्हें ये बात समझ आ गयी कि हिंदू मतदाता को अपनी जागीर समझना उन्हें भारी पड़ सकता है।