हाल के वर्षों में ‘निजता’ देश में सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे के रूप में उभरा है। फेसबुक डेटा लीक की खबरों से विपक्षी पार्टियों की बांछे खिल जाती हैं क्योंकि राजनीति में मुद्दों की शून्यता के बीच उन्हें एक भावनामक हथियार जो मिल जाता है। मामला अगर आधार से जुड़ा हो तो फिर नेताओं की देशभक्ति आसमान छूने लगती है। जनता की निजता को बरकरार रखना उनका राष्ट्रीय लक्ष्य बन जाता है। इन नेताओं में भी एक ऐसे क्रांतिकारी नेता हैं जो आधार का कुछ भी नया मामला आने के बाद सीधा निशाना देश के प्रधानमंत्री को बनाते हैं। जी हां, आपने ‘सही पकड़ा है’ लोग इन्हें दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के तथाकथित क्रांतिकारी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के नाम से जानते हैं। केजरीवाल आपकी निजता को अपनी निजता बनाकर राजनीतिक लड़ाई को बखूबी लड़ते हैं और इस बहाने थोड़ी राजनीति चमक जाये तो जनता का प्रसाद समझकर थोड़ा और विनम्र हो जाते हैं। हालांकि, वास्तव में वो आम जनता के ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन करने में सबसे आगे हैं।
Sharing the circular that I received from a parent who's child studies in one of the schools in Delhi. This displays the brazen abuse of power by @ArvindKejriwal and the DOE by seeking voter ID card details of parents.
Why are champions of Right to Privacy silent? 2/n pic.twitter.com/khGlcUsIoB
— Sumeet Bhasin (मोदी का परिवार) (@sumeetbhasin) October 25, 2018
हिंदुस्तान टाइम्स रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों के लिए एक सर्कुलर निकाला है, जिसमें बच्चों से उनका, उनके माता-पिता और भाई-बहन सबके आधार कार्ड का विवरण मांगा गया है। इतना ही नहीं, बच्चों के माता-पिता का वोटर ID कार्ड भी मांगा जा रहा है। इसके अलावा एक खास फॉर्म में भरने और साथ में पहचान पत्र की सेल्फ अटेस्टेड कॉपी लगाने के लिए कहा जा रहा है। स्कूल के शिक्षकों से इस ममाले पर चुप्पी साधने के लिए भी कहा गया था. अब केजरीवाल सरकार के इस कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल ये कि आखिर बच्चों के अभिभावकों के वोटर ID कार्ड मांगने के पीछे दिल्ली सरकार की मंशा क्या है? वहीं, दिल्ली सरकार के इस कदम से अभिभावक काफी नाराज भी हैं और इस वोटर ID और आधार कार्ड की मांग पर आपत्ति जताई है। इस मामले में सरकारी स्कूल के टीचरों की एसोसिएशन ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अभिभावकों की निजी जानकारी मांगने को अनुचित बताया।
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली सरकार के इस सर्कुलर पर सवाल खड़े कर दिए हैं, मनोज तिवारी का कहना है कि जब एक बार बच्चे का दाखिला स्कूल में हो गया तो दिल्ली सरकार को इस तरह की जानकारी मांगने का कोई अधिकार नहीं। ये ‘निजता के अधिकार’ पर हमला है। यही नहीं, उन्होंने इसे केजरीवाल के चुनावी साजिश का हिस्सा बताया। मनोज तिवारी ने कहा ‘ निजता का अधिकार’ मौलिक अधिकार है जिसको दिल्ली सरकार असंवैधानिक तरीके से भंग कर रही है। सरकारी स्कूल के टीचरों की एसोसिएशन ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अभिभावकों की निजी जानकारी मांगने को अनुचित बताया था।
First let me explain why is this dangerous: They will use this data to strategically target the parents as potential voters using state machinery. It's a blatant use of the Delhi Government for their politics. Not surprised since they use the slogan "Aap ki sarkar". 3/n
— Sumeet Bhasin (मोदी का परिवार) (@sumeetbhasin) October 25, 2018
दिल्ली में सरकारी और प्राइवेट मिलाकर करीब 2700 स्कूल हैं। इनमें करीब 26 लाख बच्चे पढ़ते हैं। चुनावी साल में इन बच्चों के माता-पिता से उनकी निजी जानकारियां मांगना केजरीवाल सरकार का राजनीतिक मकसद साधने का एक ओछा प्रयास लगता है। आधार को लेकर इतना मुखर रहने वाले अरविंद केजरीवाल आखिर किस मकसद से इतनी बड़ी संख्या में अभिभावकों के निजी डेटा को संग्रह करना चाहते हैं? ‘आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष और वकील अशोक अग्रवाल ने इसे निजता का उलंघन बताया है और साथ में ये भी कहा कि सरकार डेटा का इस्तेमाल अपने चुनावी फायदे के लिए करना चाहती है।
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर केजरीवाल सरकार ये कदम उठा रही है। क्या सरकार आने वाले चुनावों में इस निजी जानकारी का इस्तेमाल फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती है? कल तक आधार पर सवाल खड़े करने वाले केजरीवाल को आज आधार की जरूरत क्यों पड़ गयी है ?
Lot of people suffering due to inability of banks to link adhar wid bank account. Today, Cabinet decided to delink adhar from widow n age old pension
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 31, 2018
खैर, अरविन्द केजरीवाल की राजनीति का तरीका हमेशा से स्वार्थ से भरा और निम्न स्तर का रहा है। अपने हर फैसले को तर्कसंगत बताने का उनका कुत्सित प्रयास ही उन्हें राजनीति में स्थापित किया है इसलिए उन्हें कोर्ट और कानून के नियमों की कोई परवाह नहीं होती। शुचिता की राजनीति का अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं रहा है।