सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितम्बर को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था। सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अयप्पा के लाखों भक्त विरोध कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन करते हुए भक्त मांग कर रहे हैं कि केंद्र या राज्य सरकार इस पुरानी परंपरा को फिर से स्थापित करने के लिए कोई नया कानून लेकर आये या कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करे लेकिन केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और अब उन्होंने अपने एक और फैसले से हिंदुओं की धार्मिक भावना आहत किया है। उन्होंने धारा 29 की उपधारा (2) में संशोधन किया है जिसके मुताबिक अब सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) का नियंत्रण करने की जिम्मेदारी गैर हिंदू के हाथों में भी दी जा सकती है जबकि पूराने नियमों के मुताबिक हिंदू धार्मिक संस्थान का नियंत्रण हिंदुओं के हाथ में दिया जाना अनिवार्य था।
Kerala Government Publishes Gazette allowing Non Hindus to be employed in Hindu Devaswom Board . We should get ready for another fight against Communist Government. Share and Shame Secular Government. #ReclaimTemples #Punarutthana pic.twitter.com/JWceAQ4RFT
— Girish Bharadwaj (@Girishvhp) October 7, 2018
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार हिंदू के एक पुजारी ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार टीडीबी और कोचीन देवस्वाम बोर्ड के अधिकारी के रूप में गैर-हिंदू को नियुक्त करने की कोशिश में हैं। ऐसा करने के लिए केरल सरकार ने हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम (1950) की धारा 29 की उपधारा (2) में संशोधन किया है। उन्होंने संशोधन करते हुए देवासम बोर्ड के प्रबंधन का अधिकारी एक ‘हिंदू’ होना चाहिए की जगह ‘गैर-हिंदू’ कर दिया है। ये सूचना पत्र 6 जुलाई 2018 को जारी किया गया था। हिंदू धर्म की संपत्ति का नियंत्रण अन्य धर्म के लोगों को देना न ही धर्मनिरपेक्षत है और न ही न्यायिक। ‘ईश्वर का अपना घर’ कहे जाने वाले प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न प्रदेश केरल में जबसे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सरकार आई तबसे यहां हिंदू और उनके धर्म पर वार करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा गया है। वास्तव में केरल की कम्युनिस्ट सरकार देवासम बोर्ड के प्रबंधन का अधिकारी गैर हिंदू को बनाकर स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को लाभ पहुंचाना चाहती है और यही वजह है कि वो इसका नियंत्रण गैर-हिंदू के हाथों में देने का नियम लेकर आई है।
ये पहला मामला नहीं है जब हिंदू धर्म के धार्मिक संस्थानों पर राज्य सरकारें अपना नियंत्रण बनाने की कोशिश है। ये धर्मनिरपेक्ष सरकारें मंदिर के प्रबंधन बोर्ड का नियंत्रण करने की जिम्मेदारी गैर-हिंदुओं को देती हैं जो हिंदू धर्म में आस्था नहीं रखते और न ही भगवान को मानते हैं। पुजारियों को मंदिरों के प्रबंधन में दखल देने की इजाजत नहीं दी जाती है और ऐसे में मंदिर के पुजारी अब भ्रष्ट लेफ्ट को मानने वाले बोर्ड प्रबंधकों से तंग आ चुके हैं। उच्च न्यायालय ने कर्नाटक के गोकर्ण स्थित महाबलेश्वर मंदिर को सरकार के कब्जे में सौंपने का आदेश दिया था और अब कर्नाटक की तरह ही केरल सरकार हिंदू मंदिरों पर अपना नियंत्रण चाहती है। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी सीमा पर स्थित तिरुमाला मंदिर भी इनमें से एक है जिसपर राज्य सरकार मंदिर पर अपने नियंत्रण में रखने के भरपूर प्रयास करती रही है जिसके खिलाफ कुछ समय पहले तिरुमला मंदिर प्रबंधन को लेकर तिरुमला बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी (अर्चक) डॉक्टर एवी रामना दीक्षितुलु ने आवाज उठायी थी। यही नहीं आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश के एंडॉवमेंट विभाग से हिंदू धर्म के धार्मिक संस्थानों की भूमि की नीलामी करने के लिए कहा जिससे गरीबों के लिए घर बनाया जा सके। इसी तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली जिले के प्रसिद्ध तीर्थ तारकेश्वर मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष पद पर एक मुस्लिम को बिठा दिया था जिसका काफी विरोध हुआ था। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये राज्य सरकारें हमेशा से ही हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करती रही हैं।
हिंदू मंदिरों को पूरे देश में “धर्मनिरपेक्ष” राज्य सरकारों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हमारे मंदिरों को नियंत्रित करती हैं। एचआरसीई विभागों का नेतृत्व ज्यादातर स्वायत्त बोर्डों द्वारा किया जाता है, जहां अक्सर मार्क्सवादी या धर्म में विश्वास न रखने वालों की नियुक्तियां होती हैं। दान की वजह से धार्मिक संस्थानों के पास धन की कमी नहीं होती ऐसे में सरकारें न केवल खुद को वित्तपोषित करने के लिए मंदिरों का पैसों का उपयोग करती हैं, बल्कि वे बिना किसी भुगतान के उनके स्वामित्व वाली भूमि का भी उपयोग करती हैं। हिन्दू धार्मिक संस्थान का नियंत्रण हिंदुओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है लेकिन इससे इन राज्य सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ता है अपनी तुष्टिकरण की नीति और राजनीतिक स्वार्थ के लिए वो हिंदू धर्म को निशाना बनाते हैं।
भारत में धार्मिक संस्थानों पर सरकार के नियंत्रण का शिकार सिर्फ हिदुओं के मंदिर व संस्थान होते हैं क्योंकि चर्च, मदरसा और अन्य गैर-हिंदू धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है। इसके अलावा इन धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित शैक्षिक और चिकित्सा संस्थानों पर भी कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय को निशाना बनाना और अल्पसंख्यक को लाभ पहुंचाना ही धर्मनिरपेक्षता है?