गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर अपनी खराब तबियत की वजह से गोवा से दूर हैं तबसे राज्य सरकार के सहयोगी दलों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। उनके इलाज में अभी और वक्त लग सकता है ऐसे में राज्य सरकार के सहयोगी दल इस बात को लेकर बिखरते हुए नजर आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी में राज्य का प्रभार कौन संभालेगा। ऐसे में कोई है जो सभी को एकजुट रख सकता है तो खुद मनोहर पर्रिकर हैं। इसी को देखते हुए पर्रिकर ने 12 अक्टूबर को गोवा सरकार के सहयोगी दलों के नेताओं को एम्स में बैठक लिए बुलाई है। इस बैठक में वो राज्य के मंत्रिमंडल के पोर्टफोलियो में बदलाव करेंगे।
मनोहर पर्रिकर अग्नाशय कैंसर से जूझ रहे हैं। वो 6 सितंबर को ही अमेरिका में चले एक हफ्ते तक इलाज कराकर भारत लौटे हैं। फ़िलहाल वो दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के एम्स में भर्ती होने के बाद राज्य की सियासी उठापटक तेज हो गयी। राज्य सरकार के सहयोगी दलों में राज्य के प्रभार को लेकर खींचतान शुरू हो गयी इस बीच कांग्रेस ने स्थिति का आंकलन किया और इस समय का फायदा उठाते हुए राज्य में सरकार बनाने का दावा किया। यही नहीं इस संबंध में राज्यपाल मृदुला सिन्हा से मुलाकात की। कांग्रेस ने राज्यपाल से विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए भाजपा सरकार को फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश देने की मांग की। पर्रिकर पहले से ही इस बात से अच्छी तरह से अवगत थे उनकी गैर-मौजूदगी में राज्य के सहयोगी दलों में खींचतान होगी ही ऐसे में उन्होंने पहले ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से अनुरोध करते हुए कहा था कि राज्य के नेतृत्व के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करायें ताकि उनकी गैर-मौजूदगी में राज्य की शासन प्रणाली पर कोई असर न पड़े। पर्रिकर के अनुरोध के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी संगठन महासचिव राम लाल, पार्टी सह संगठन महामंत्री बीएल संतोष, श्रीपद नायक, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष विजय तेंदुलकर और वरिष्ठ मंत्रियों से गोवा के राजनीति संकट पर चर्चा की थी। इस चर्चा के बाद उन्होंने सभी को स्पष्ट किया था कि गोवा में नेतृत्व परिवर्तन नहीं किया जाएगा, मनोहर पर्रिकर राज्य के मुख्यमंत्री बने रहेंगे लेकिन राज्य कैबिनेट में कुछ फेर-बदल जरूर किए जाएंगे। इसके बाद ही मनोहर पर्रिकर ने अस्पताल में ही राज्य की स्थिति को स्थिर करने के लिए 12 अक्टूबर को राज्य सरकार के सहयोगी दलों की एक बैठक बुलाई है और इस बैठक में वो अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे।
गौरतलब है कि गोवा की विधानसभा में कुल 40 सीटें हैं, इन 40 सीटों में सबसे बड़ी संख्या कांग्रेस के पास है और ये संख्या कुल16 है जबकि बीजेपी के विधायकों की संख्या 14 है लेकिन बीजेपी के पास तीन विधायक गोवा फॉरवर्ड पार्टी के, तीन महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के, तीन निर्दलीय और एक नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के विधायक का समर्थन प्राप्त है जिस वजह से बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो पायी थी। हालांकि, ये कभी संभव नहीं हो पाता अगर मनोहर पर्रिकर न होते क्योंकि उस समय भी ये पार्टियां मनोहर पर्रिकर के पक्ष में थीं उन्हीं को अपना समर्थन देने को तैयार हुई थीं और तब भी इन पार्टियों ने कहा भी था कि हम मनोहर पर्रिकर को अपना समर्थन दे रहे हैं। ऐसे में अगर पर्रिकर अपने मंत्रिमंडल में कोई फेरबदल करते भी हैं तो उनके सहयोगी दलों को इससे कोई परेशानी नहीं होगी वहीं इससे कांग्रेस की रणनीति भी फेल हो जाएगी जो लगातार राज्य की गठबंधन सरकार पर डोरे डालने की कोशिश में है।
पर्रिकर सबसे विश्सनीय और कर्तव्यनिष्ठ नेता माने जाते हैं और गोवा की राजनीति में उनका सभी दल सम्मान करते हैं। उनके कार्यों पर कोई सवाल नहीं उठाता क्योंकि सभी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि पर्रिकर सभी को साथ लेकर चलते हैं। उनके लिए देश सेवा हमेशा से पहली प्राथमिकता रही है और वो बेदाग़ नेताओं की सूची में भी आते हैं। मनोहर पर्रिकर इससे पहले दो बार गोवा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सर्जिकल स्ट्राइक में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तब वो देश के रक्षा मंत्री थे। उनका साधारण सा व्यक्तित्व और काम के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण के कारण ही गोवा के क्षेत्रीय दल हमेशा उनके साथ खड़े रहते हैं और यही वजह है कि बीजेपी पर्रिकर की बदौलत गोवा में सरकार बनाने में सफल हो पायी थी। उम्मीद की जा रही है कि 12 अक्टूबर को होने वाली बैठक में पर्रिकर की रणनीति एक बार फिर से गोवा की राजनीति में मची हलचल को शांत करने में सफल साबित होगी। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस की चाल विफल होने के साथ ही गोवा की कमान बीजेपी के हाथों में बरकरार रहने वाली है।