सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबन्ध को हटा दिया था जिसका केरल में अय्यपा के भक्त विरोध कर रहे हैं। खासकर बड़ी संख्या में महिलाएं इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं। शायद मीडिया आउटलेट्स को विरोध की तीव्रता का अंदाजा नहीं था तभी तो जब सबरीमाला का द्वार खुलने की तैयारियां हो रही थीं तब मीडिया आउटलेट्स ने महिला पत्रकारों को इस घटना को कवर करने के लिए भेज दिया जिससे ये प्रदर्शन और उग्र हो गया।
विरोध प्रदर्शन कर रहे भक्तों ने महिला पत्रकारों पर हमला कर दिया। द न्यूज़ मिनट (टीएनएम) और रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर्स पर निलाक्कल में प्रदर्शनकारियों ने हिंसक हमला किया। टीएनएम की रिपोर्टर सरिता एस बालन को वहां प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया था जिसके बाद पुलिस ने हस्तक्षेप कर सरिता को बचाया और जब वो पुलिस स्टेशन की ओर जा रही थीं तब फिर से प्रदर्शनकारियों ने उनपर हमला किया। रिपब्लिक टीवी की पत्रकार पूजा प्रसन्ना और उनके क्रू मेंबर्स पर भी हमला हुआ। उन्हें डंडों से पीटा गया यहाँ तक कि पुलिस वैन में भी उनपर हमला किया गया। CNN-News 18 ने कहा कि रिपोर्टर राधिका रामास्वामी की कार को प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया था। एक रिपोर्ट में कहा गया गया है, “वो उसे कार से खींचकर बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे, उन लोगों ने कार के शीशे भी तोड़ दिए और डंडों से कार पर हमले किये। दबंगों ने कैमरा भी तोड़ दिया और क्रू मेंबर्स के सामानों को भी क्षति पहुंचाया।” इसी तरह से ऍनडीटीवी रिपोर्टर स्नेहा मैरी कोशी और कैमरामैन एसपी बाबु पर भी हमला हुआ।
ये स्पष्ट करता है कि महिला पत्रकारों को विरोध प्रदर्शन के स्थान पर भेजने का मकसद सिर्फ प्रदर्शन को और उग्र करने का था। ये न सिर्फ बेवकूफी है बल्कि खतरनाक भी है। न्यूज़ चैनल्स और मीडिया आउटलेट्स को प्रदर्शन की स्थिति का पहले से आभास था लेकिन इसके बावजूद उन्होंने क्या सोचकर महिला पत्रकारों को प्रदर्शन के स्थान पर खबर को कवर करने के लिए भेजा था? इसका मतलब तो साफ़ है कि मीडिया न्यूज चैनल्स ने जानबूझकर महिला पत्रकारों की जान को खतरे में डाला वो भी सिर्फ अपनी टीआरपी रेटिंग और सनसनीखेज मुद्दे के लिए। ये कुछ नहीं बल्कि पब्लिसिटी के निम्न स्तर को दिखाता है।
पहले ही राज्य सरकार ने प्रदर्शकारियों के गुस्से को और बढ़ावा दे दिया है जबरदस्ती सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करके जबकि वो इस प्रदर्शन को शांत करने के लिए कोई उचित कदम भी उठा सकती है लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया। केरल में कम्युनिस्ट सरकार ने स्थानीय परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को नजरअंदाज कर श्रद्धालुओं की धार्मिक भावना का अपमान किया है। अब न्यूज चैनल्स ने महिला पत्रकारों को भेजकर आग में घी डालने का काम किया है। जानबूझकर महिला पत्रकारों को भेजा ताकि वो मंदिर में प्रवेश कर सकें और अपने न्यूज़ चैनल का प्रचार कर सकें। ये कदम सिर्फ प्रदर्शन को भडकाने और महिलाओं की जान को खतरे में डालने का प्रयास है। ये न सिर्फ निंदनीय है और बहुत ही घटिया था बल्कि बहुत ही खतरनाक था।
मीडिया आउटलेट्स ने महिला पत्रकारों को भेजा ताकि वो अपनी टीआरपी रेटिंग को बढ़ा सकें और एक ऐसी सनसनीखेज खबर तैयार कर सकें जिससे उनके दर्शकों की संख्या में इजाफा हो जाए। हालाँकि, उन्होंने इस बीच महिला पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में एक बार भी विचार नहीं किया। महिला पत्रकारों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा किया गया हमला इन मीडिया आउटलेट्स और न्यूज चैनल्स की लापरवाही को भी दिखाता है जो एक सनसनी खबर के लिए इस तरह के हत्कंडे अपना रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ प्रदर्शन को बढ़ावा देने का काम किया है बल्कि महिला पत्रकारों की जान को भी खतरे में डाला है। न्यूज चैनल्स को टीआरपी और सनसनी खबर के लिए इस तरह की निम्न स्तर के कदम उठाने से पहले एक बार विचार जरुर करना चाहिए क्योंकि किसी की जान को खतरे में डालना न्यूज चैनल्स को शोभा नहीं देता है।