सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अय्यपा के भक्त इसका विरोध कर रहे हैं और अपनी परंपरा को बचाने के लिए राज्य सरकार से अपील कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि इस अपील के बाद भी केरल सरकार के रवैये में कोई बदलाव होते नजर नहीं आ रहा है वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए भक्तों पर दबाव बनाने की हर संभव प्रयास कर रही है। भक्त सबरीमाला में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश के प्रतिबंध को हटाने के फैसले के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं यहां तक कि मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के कपाट को 4 नवंबर तक के लिए बंद भी कर दिया है। मंदिर के कपाट को बंद करने के फैसले पर राज्य के ही मुखिया ने सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी पर अभद्र टिप्पणी कर दी। यही नहीं अब केरल सरकार के आदेश को भक्तों ने मानने से इंकार कर दिया तो अब उनसे बदला लेने के लिए उन्हें जेलों में भरने के आदेश दे दिए हैं। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के लिए विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर सख्ती दिखाते हुए पिछले दो दिनों में केरल पुलिस ने 1400 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और वहीं 258 लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया है। राज्य सरकार के इस कदम के खिलाफ बीजेपी ने अय्यपा के भक्तों पर हो रहे हमलें पर बड़ी संख्या में विरोध करने की चेतावनी भी दी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार सबरीमाला में भगवान अयप्पा के मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की इजाजत संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करेगी। अय्यपा के भक्त बार बार राज्य सरकार को उनके धर्मिक भावनाओं को समझने के लिए अनुरोध कर रहे हैं और इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। जिस फैसले को महिलाओं के पक्ष में बताया जा रहा है इस प्रदर्शन में उसी फैसले का विरोध बड़ी संख्या में महिलाएं ही कर रही हैं। दरअसल, केरल की वामपंथी सरकार को हिंदुओं की भावनाओं और उनके धार्मिक स्थल से कोई मतलब ही नहीं है। केरल में हिंदू कभी अपने धार्मिक स्थल और परंपरा के लिए एकजुट नहीं हुए थे। राज्य सरकार जो फैसला लेती है हिंदू उसे स्वीकार कर लेते थे। हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति से केरल में राज कर रही वामपंथी सरकार को लगा कि इस बार भी जो वो फैसला करेगी हिंदू मान लेंगे लेकिन इस बार उनका ये कदम उन्हीं पर भारी पड़ गया और सभी हिंदू अपने धर्मिक मान्यता और परंपरा को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर एकजुट हो गये। हिंदुओं को बांटकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले वामपंथी सरकार के सामने सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना गले की हड्डी बन गयी है और वो हिंदू की एकजुटता से डर गयी है तभी उन्हें डराने के लिए पुलिस का के डंडे का सहारा ले रही है। जहां वो अपने फैसले को थोपकर ये दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि राज्य आज भी जनता उनके हर फैसले को आंख मूंद कर मानती है वहीं सभी हिंदू इस प्रदर्शन के जरिये अपनी एकजुटता का संदेश दे रहे हैं और इससे वो एक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं कि जब उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया जायेगा वो इसका विरोध करेंगे। वास्तव में सबरीमाला मामले से पिनाराई विजयन की सरकार का हिंदू-विरोधी रुख भी सामने आ गया है और जब उन्होंने मंदिर के कपाट बंद होने पर मंदिर के मुख्य पुजारी पर अभद्र शब्द का उपयोग करते हुए टिप्पणी की तो उससे उनके हिंदू विरोधी रुख से आम जनता भी बखूबी रूबरू हो गयी। केरल सरकार को अपने इस हिंदू-विरोधी रवैये का भगतान भारी पड़ सकता है।
केरल की कम्युनिस्ट सरकार को भगवान अय्यपा के भक्तों की धार्मिक भावनाओं और उनकी मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए और यदि ऐसा ही रहा तो केरल के सभी हिंदुओं की एकजुटता से मौजूदा सरकार खतरे में आ जाएगी। हालांकि, अगर केरल की वामपंथी सरकार ने इस मामले में अपनी हद पार की तो ऐसा हो भी सकता है कि ये वामपंथी सरकार की जड़ों को हिलाकर रख दे। जिस तरह से मुलायम सिंह यादव का 1991 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का आदेश उन्हीं पर भारी पड़ा था और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था उसी तरह अगर केरल सरकार पहले ही स्थिति को संभालने की जगह भक्तों पर पर दबाव बनाती रही तो उसके समक्ष भी बड़ी मुश्किलें खड़ी होने वाली है। अय्यपा के भक्त अपने धर्म और परंपर का सम्मान करने की ही तो मांग कर रहे हैं ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केरल सरकार उनके धर्म का सम्मान भी नहीं कर सकती?