देश में चुनावी माहौल है। राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट चुकी हैं और अपनी पकड़ को मजबूत करने के प्रयास कर रही हैं। देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं। इन राज्यों में होने वाले चुनावों पर सबकी नजर हैं क्योंकि ये भाजपा शासित राज्य हैं। खबरों की मानें तो राजस्थान में बीजेपी के लिए हालात इस बार थोड़े कठिन नजर आ रहे हैं। इस बीच बाड़मेर की शिव विधानसभा सीट के विधायक मानवेंद्र सिंह ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस काफी उत्साहित है। कांग्रेस को लगता है कि मानवेंद्र के कांग्रेस में आने से न सिर्फ बाड़मेर-जैसलमेर में बल्कि मारवेड़ में भी पार्टी को फायदा होगा। कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई के बीच जाट नेता हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय होता हुआ नजर आ रहा है। पिछले कई महीनों से राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा थी कि राज्य में तीसरे मोर्चा का उदय हो सकता है। वास्तव में तीसरे मोर्चे का गठन बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है। इससे बीजेपी को न सिर्फ विधानसभा चुनाव में फायदा होगा बल्कि लोक सभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को फायदेमंद साबित होगा।
राजस्थान में जाटों की संख्या राज्य की आबादी का 12 से 14 फीसदी है और बेनीवाल का मकसद है सभी जाटों को एकजुट करना। राजस्थान में एक पुरानी कहावत है, “जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को।” फिलहाल राजस्थान में अभी कोई बड़ा जाट नेता नहीं है और इसी खालीपन को भरने और निर्विवादित तौर पर जाटों के प्रयास में हनुमान बेनीवाल। हनुमान बेनीवाल ने भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का गठन भी इसीलिए किया है ताकि वो जाटों को एकजुट कर सकें, इस पार्टी में बीजेपी के उन पूर्व नेताओं का साथ आना है जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व से खुश नहीं हैं और न ही उन्हें राजे के नेतृत्व में अपना अच्छा भविष्य देखते हैं। इस पार्टी का लक्ष्य राजे और कांग्रेस के खिलाफ लड़ना है। इस लड़ाई से खुद को साबित करना है और एक नया पॉवर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी करना है। वास्तव में हनुमान बेनीवाल पार्टी का गठन कर कांग्रेस और राजे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरकर खुद को साबित करना चाहते हैं और जब वो ऐसा करने में सफल हो जायेंगे तब बीजेपी में वापसी कर लेंगे। दरअसल, बीजेपी से अलग हो चुके इन नेताओं को बीजेपी से कोई नाराजगी नहीं है बल्कि वो वसुंधरा के नेतृत्व से खुश नहीं है। राजस्थान के इस चुनावी मौसम में ये नारा भी खूब ट्रेंड कर रहा है, “मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।” अगर बेनीवाल अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं तो ये निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा।
कुल मिलाकर देखें तो यहां सबसे जयादा किसी को नुकसान हो रहा है तो वो है कांग्रेस पार्टी जो राज्य में सत्ता विरोधी लहर का राग अलापते हुए अपनी जीत के सपने संजो रही है। जिस तरह कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस पार्टी किंगमेकर बनकर उभरी थी ऐसा ही कुछ अब राजस्थान में भी देखने को मिल सकता है। हनुमान बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वो त्रिशंकु विधान सभा में बेहतर वोटों के साथ अपनी जगह बनाने में कामयाब होंगे जिसके बाद वो किंग मेकर्स बन जायेंगे। अगर ऐसा होता है, तो उनकी पहली पसंद राजे रहित बीजेपी होगी। मनोहर पार्रिकर ने जिस तरह से गोवा में बीजेपी के लिए बजाई पलटी थी इस बार हो सकता है हनुमान बेनीवाल भी ऐसा ही कुछ दोहरायें।