राजस्थान में विधानसभा चुनाव को कुछ ही हफ्ते बचे हैं लेकिन कांग्रेस की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। अब भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए शिव विधायक मानवेंद्र सिंह से इस पुरानी पार्टी की मुश्किलें और बढ़ गयी हैं। इस बीच भारतीय जनता पार्टी राजपूत मतदाताओं को लुभाने के भरपूर प्रयास कर रहे हैं। हमेशा से बीजेपी के लिए राजपूत मतदाता काफी अहम रहे हैं। राजस्थान में करीब 12 फीसदी राजपूत हैं और वो दो दर्जन से अधिक सीटों पर जीत-हार तय करने का दमखम रखते हैं। मीडिया के अनुसार राजपूत बीजेपी से नाराज हैं और इसके पीछे के कारण राजमहल की जमीन, फिल्म पद्मावत विवाद, गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर और वसुंधरा की ओर से राजपूत नेता गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का विरोध जैसे कुछ मामले हैं जिससे राजपूत समाज बीजेपी की नेतृत्व वाली वसुंधरा सरकार से नाराज हैं।
राजपूत समाज पारंपरिक रूप से भारतीय जनता पार्टी का मतदाता आधार रहा है। प्रदेश की राजनीति में उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत का व्यापक योगदान रहा है। गौरतलब है कि 1980 में जब बीजेपी राजस्थान में पहली बार अस्तित्व में आई तो शेखावत ने प्रदेश में दो बार 1990-1992 में पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि, मीडिया के अनुसार कुछ मुद्दों की वजह से राजपूत बीजेपी से नाराज चल रहे हैं और यही कारण है कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस राज्य में सत्ता विरोधी नाव पर सवार होकर अपनी जीत के सपने संजो रही है। जबसे मानवेंद्र सिंह राजस्थान में कांग्रेस में शामिल हुए हैं कांग्रेस को एक राजपूत चेहरा भी मिल गया है लेकिन कांग्रेस ये भूल रही अहि कि बीजेपी के पास अभी भी केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, गजेन्द्र सिंह शेखावत, प्रदेश के केबिनेट मंत्री राजेन्द्र राठौड़, गजेन्द्र सिंह खींवसर और पुष्पेन्द्र सिंह जैसे नेता हैं। इसके अलावा राजस्थान की मौजूदा वसुंधरा राजे ने झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। राजे ने रविवार को झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन में घोषणा करते हुए कहा कि वो झालरापाटन से चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने इस दौरान कहा, “झालावाड़ से मेरा 30 साल पुराना अटूट रिश्ता है, जो जब तक सांस है तब तक रहेगा। ये रिश्ता मुख्यमंत्री और कार्यकर्ताओं के बीच का नहीं बल्कि ये रिश्ता मां-बेटे, मां-बेटी, बहन-भाई के बीच का है।“
उधर राज्य में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत और सचिन के बीच नेतृत्व को लेकर रस्साकशी जारी है। मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में सचिन पायलट और अशोक गहलोत में काफी मतभेद है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार दोनों को मनाने की कवायद कर रहे हैं और ये दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि पार्टी में सबकुछ ठीक है लेकिन सच कभी न कभी सामने आ ही जाता है और ऐसा ही कांग्रेस पार्टी के साथ हो रहा है। पहले से पार्टी पायलट-गहलोत के बीच तनातनी से मुश्किल में हैं और अब मानवेंद्र सिंह के आने से कांग्रेस को ये लग रहा है कि वो बीजेपी के राजपूत मतदाता आधार में सेंध मारने में कामयाब हो जाएगी लेकिन ऐसे आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी में आंतरिक मतभेद को सुलझाने में कांग्रेस पार्टी असमर्थ रही है। पायलट-गहलोत दोनों ही राज्य के सीएम बनने की महत्वकांक्षा रखते हैं और अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की जदोजहद में हैं। दोनों के ही समर्थक दोनों को सीएम के रूप में देख रहे हैं जिसने कांग्रेस के समक्ष बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। कांग्रेस के अपने ही कार्यकर्ता एकदूसरे से लड़ रहे हैं। प्रदेश का सीएम कैसा हो सचिन पायलट जैसा हो, राजस्थान की यही पुकार, अशोक गहलोत फिर एक बार” जैसे कई पोस्टर प्रदेश के कई क्षेत्रों में नजर आ रहे हैं। ये स्पष्ट रूप से कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच एकता को दर्शाता है। गहलोत और पायलट दोनों एकदूसरे को एक मंच पर नहीं सुहाते हैं। पायलट और गहलोत के समर्थक तो कई बार एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी भी करते हुए नजर आ रहे हैं। कांग्रेस कितना भी कहे कि उसके अंदरखाने में कोई खटास नहीं है लेकिन वास्तविकता कुछ और है। ये स्पष्ट संकेत हैं कि कांग्रेस दो खेमों में बबंट सा गया है और ये तनातनी और बढती जा रही है।
दूसरी तरफ बीजेपी ने भी राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कमर कस ली है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री और राजस्थान भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर ने अपने एक बयान में स्पष्ट कर दिया है कि इस बार मेवाड़ में बीजेपी क्लीन स्वीप करेगी। इसके अलावा उन्होंने ये कांग्रेस ने नेताओं के बीच चल रही खींचतान पर भी टिप्पणी की और कहा, गांधी पायलट को सीएम पड़ के उम्मीदवार के रूप में पेश करना छाते हैं लेकिन गहलोत ऐसा होने नहीं देंगे। कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर काफी तनाव है।