सबरीमाला मंदिर मामले में कोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी हिंदू हुए एकजुट, महिलाएं कर रही हैं नेतृत्व

सबरीमाला महिलाएं विरोध

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद से राज्य के कई शहरों में इस फैसले का विरोध मंगलवार से जारी है। फैसले के विरोध में हजारों की तादाद में हिंदू सड़कों पर उतर आये हैं। सभी हिंदू सुप्रीम कोर्ट के फैसले का शांतिपूर्वक विरोध कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में महिलाएं भी शामिल हैं जो राज्य और केंद्र सरकार से पुराने प्रतिबंध को बनाए रखने के लिए उपयुक्त कानून लाने की मांग कर रही हैं। ये दिलचस्प बात है कि इस विरोध प्रदर्शन में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की संख्या थी जिनका मानना है कि भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेना चाहिए था। ये पहली बार है जब हिंदू अपने धर्म और पुरानी परंपरा के बचाव के लिए एकजुट हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी सक्रीय रूप से #SaveSabarimala नाम से अभियान चलाया जा रहा है।

वहीं, इस मामले में राज्य सरकार के रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। जहां एक तरफ इस फैसले का विरोध कर रही कई महिलाओं को बुधवार को हिरासत में ले लिया गया वहीं केरल सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगी।

बता दें कि सबरीमाला का मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। हर रोज यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। करीब हजार साल पुराने इस मंदिर में सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र को छोड़कर) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं। यहां दर्शन करने वाले लोग काले कपड़े पहनते हैं क्योंकि ये रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दर्शाता है और ये भी दर्शाता है कि अय्यपा के सामने सभी लोग बराबर है। इस मंदिर में पीरियड्स की वजह से नहीं बल्कि भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की वजह से अब तक औरतों के जाने की मनाही थी लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद अब इस मंदिर 10-50 उम्र की महिलाएं भी प्रवेश कर सकेंगी। इस फैसले के विरोध में विभिन्न हिंदू संगठनों के समर्थकों ने केरल के कई शहरों की सड़कों पर उतरे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

इस दौरान एक प्रदर्शनकारी ने कहा, एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “अदालत का फैसला अस्वीकार्य है क्योंकि प्रत्येक धार्मिक स्थान की अपनी परंपरा है। इसे अदालत के कानून द्वारा नहीं कुचला जा सकता क्योंकि ये श्रद्धालुओं की भावना को आहत करता है।“ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ये फैसला परंपरा को बलपूर्वक तोड़ने की कोशिश है जिसके खिलाफ सभी आध्यात्मिक और सामाजिक नेताओं को साथ आना चाहिए और पुराने प्रतिबंध को बनाये रखने के लिए नया कानून लेकर आये।

बता दें कि 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले में 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी एक राय पर फैसला सुनाया जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा अन्य जजों की राय के पक्ष में नहीं थीं।  सबरीमाला मंदिर से संबंधित मामले में जस्टिस इंदु मल्‍होत्रा ने फैसले पर असहमति जताते हुए कहा था कि, “सबरीमाला मंदिर में 10-50 उम्र की महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट को लोगों की धार्मिक भावनाओं की कदर करनी चाहिए।” उन्‍होंने आगे कहा था “ये फैसला सिर्फ सबरीमाला मंदिर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका असर बहुत व्यापक होगा।” जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इस मामले को बारीकी समझने के बाद ये भी कहा कि, “कोर्ट समानता के अधिकार के आधार पर धर्म से जुड़े मामले में फैसले नहीं ले सकता है और न ही ये तय कर सकता है कि किसी धर्म में क्या होना चाहिए और क्या नहीं।“

सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से भक्तों की भावनाओं और उनके रीति-रिवाजों को अनदेखा कर अपना फैसला सुनाया। वास्तव में कोर्ट की सुनवाई महिलाओं के समानता के अधिकारों पर आधारित थी इस दौरान पुरानी परंपरा और इसके पीछे के मुख्य कारणों को अनदेखा किया गया। केरल की महिलाएं भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं जो दर्शाता है कि वो पुरानी परंपरा को समझती हैं और इसके पीछे के कारणों को भी ऐसे में भक्तों की धार्मिक भावनाओं को अनदेखा किये बिना राज्य सरकार को इस मामले में आगे आकर उचित कदम उठाने चाहिए।

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