बीजेपी सांसद वरुण गांधी पार्टी के सबसे बड़े बागी नेताओं में से एक हैं। पिछले कुछ समय से बीजेपी और वरुण गांधी के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। साल 2014 में वरुण गांधी ने मोदी लहर को दबाने के भरपूर प्रयास किये थे। साल 2014 में वरुण गांधी ने सुलतानपुर से चुनाव लड़ा था और जीत भी दर्ज की थी। तब मेनका गांधी ने अपने समर्थकों से कहा था कि उत्तर प्रदेश में ये खबरें फैला दो कि वरुण गांधी यूपी के अगले सीएम होंगे। इसके बाद से बीजेपी और मेनका गांधी के बीच तनाव पैदा हो गया था और नतीजतन वरुण गांधी को पार्टी महासचिव पद छोड़ना पड़ा था और इसके बाद उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद आवंटित नहीं किया गया। अभी बीजेपी की तरफ से सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा भी नहीं हुई थी उस समय पूरा शहर वरुण गांधी के होर्डिंग और पोस्टरों से पटा पड़ा था। साल 2016 में, इलाहाबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद वरुण गांधी और बीजेपी के बीच तनाव और बढ़ गया था। “वरुण यूथ ब्रिगेड” ने शहर भर में पोस्टर लगाए थे जिसमें लिखा था, “स्मृति ईरानी पीएम पद के उम्मीदवार के लिए फिट नहीं हैं, यूपी की पुकार, इसबार वरुण गांधी।” उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वरुण गांधी के एक भी नामांकित व्यक्ति को टिकट नहीं दिया गया था और उन्हें पार्टी ने सुल्तानपूर में प्रचार करने से भी मना किया था।
वरुण गांधी ने अपने विवादित बयानों से बार बार पार्टी के लिए मुश्किलें ही खड़ी की हैं। साल 2017 में वरुण गांधी ने मुंबई में 1993 में हुए बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की सजा को समाप्त करने की वकालत की थी। वरुण ने एक अंग्रेजी पत्रिका में लिखे लेख में कहा था कि, “94 फीसदी मौत की सजा दलित या अल्पसंख्यक समुदायों को मिलती है।” शर्मनाक तरीके से याकूब मेमन की फांसी का विरोध करते हुए आउटलुक पत्रिका में लिखे अपने लेख में वरुण ने कहा था कि सरकार ने एक इंसान को फांसी दे दी। उनके इस बयान से पार्टी को काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी।
पिछले साल भाजपा सांसद वरुण गांधी ने इंदौर के एक स्कूल में ‘विचार नए भारत का’ विषय पर व्याख्यान देते हुए पार्टी के विरुद्ध बयान दिया था और अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़े किये थे। उन्होंने कहा था, देश के ज्यादातर किसान हज़ार रुपये का कर्ज न चुका पाने की वजह से अपनी जान दे देते हैं, लेकिन विजय माल्या जैसे कारोबारी पर सैकड़ों करोड़ रुपये का कर्ज बकाया होने के बावजूद वह एक नोटिस मिलने पर देश छोड़कर भाग जाता है और उसके खिलाफ कुछ नहीं किया जाता है।” यही नहीं बीजेपी के इस बागी नेता ने अपने बगावती सुर में हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था। उन्होंने तब कहा था, “जब मैंने उसका सुसाइड नोट पढ़ा, तो मुझे रोना आ गया। मैं इसलिए जान दे रहा हूं क्योंकि मैंने एक दलित के रूप में जन्म लेकर पाप किया है, मुझे जीने का हक कहां है।” मीडिया का ध्यान अपनी ओर करने के लिए वरुण ने रोहित वेमुला के नाम इस्तेमाल किया था। पब्लिसिटी के भूखे वरुण गांधी बार-बार इस तरह की हरकत करते रहे हैं और विवादित बयान खुलकर देते रहे हैं उन्हें पार्टी से कोई मतलब नहीं होता। वास्तव में वो संजय गांधी के पुत्र होने की ठसक दिखाते हैं।
हाल ही में उन्होंने सांसदों की सैलरी बढ़ाए जाने पर संसद के भीतर सवाल खड़ा किया था तब ये खबर काफी चर्चा में भी थी। इसके बाद हरियाणा के भिवानी में आदर्श महिला कॉलेज में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे वरुण ने अपनी पार्टी के खिलाफ बयान दिया और कहा, “मैं बार-बार सांसदों के वेतन में वृद्धि और संपत्ति का ब्योरा नहीं देने को लेकर आवाज उठाता हूं। हर वर्ग के कर्मचारी अपनी मेहनत और ईमानदारी के हिसाब से वेतन बढ़वाते हैं लेकिन पिछले 10 सालों में सांसदों ने अपना वेतन सात बार केवल हाथ उठवाकर बढ़वा लिया। मैंने जब ये मुद्दा उठाया तो एक बार मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से फोन आया था और मुझसे कहा गया कि आप हमारी मुसीबत क्यों बढ़ा रहे हैं।” वरुण गांधी के बागी रवैये में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा है वो अपनी पार्टी के खिलाफ आग उगलते हैं। उनके इस रुख से अंदरखाने में ये खबर तेज है कि इस बार या तो बीजेपी वरुण का पत्ता काट देगी या वरुण ही बीजेपी छोड़ देंगे। शायद वो फिर से अपने भाई राहुल गांधी के साथ जुड़ना चाहते हैं।