छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी और बसपा के गठबंधन के बाद कर्नाटक की तरह ही इस राज्य में भी त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गयी है। राज्य की कुल 90 सीटों में से 35 बसपा 53 जोगी और 2 सीटें सीपीएम को मिली है। स्पष्ट रूप से अजीत जोगी ने खुद को भाजपा और कांग्रेस के बाद थर्ड फ्रंट के रूप में खड़ा कर दिया है। अजीत जोगी ने अभी तक ये साफ़ नहीं किया है कि वो आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं लेकिन बसपा ने साफ कर दिया है कि अगर पार्टी की जीत होती है तो मुख्यमंत्री का चेहरा वही होंगे।
कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में शासन करने के 15 सालों के अपने इंतजार को खत्म करने के लिए प्रयास में जुटी है। ऐसे में बसपा-जेसीसी के बीच पूर्व चुनाव गठबंधन को इस पुरानी पार्टी की जीत के सपनों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। इस त्रिकोणीय मुकाबले से किसी को सबसे ज्यादा फायदा होगा तो वो बीजेपी है क्योंकि जोगी और बसपा के मैदान में आने से कांग्रेस के वोटों में भारी कटौती तय है। छत्तीसगढ़ में वोटों में 1% बदलाव भी चुनावी समीकरण को बदल सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और बीजेपी के वोटों में 1 फीसदी का ही अंतर था।
राज्य में लगभग 50 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की है। अजीत जोगी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में ही नहीं बल्कि दलितों, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच भी लोकप्रियता का आनंद उठाते हैं। राज्य की आदिवासी जनसंख्या ने अजीत जोगी को ‘बड़ा’ बनाया। उन्होंने ‘द रोल ऑफ़ डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर’ और एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ पेरिफेरल एरियाज’ नाम की दो किताबें भी लिखी हैं। पिछली बार विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की की थी जबकि शहरी क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन काफी खराब था। बस्तर में 12 विधानसभा सीटों में से 8 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, इस बार कांग्रेस के समक्ष अजीत जोगी का चेहरा है जो आदिवासियों में काफी लोकप्रिय भी हैं। उनके प्रभाव ने उन्हें राज्य में एक बड़े नेता के रूप में स्थापित किया है। स्पष्ट रूप से कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ सकते हैं।
कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन करने में विफल रही और अब बसपा जोगी की पार्टी के साथ है। पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बसपा को करीब 4.27 वोट शेयर मिले थे। अनुभवी पत्रकार रमेश नायर ने पीटीआई से बातचीत में कहा, “कांग्रेस को अपने इस कदम से बुरी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि वो बसपा को अपने साथ गठबंधन में लाने के प्रयास कर रही थी। अनुसूचित जाति की आबादी, खासकर सतनाम समुदाय, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ और बिलासपुर जैसे जिलों में है।” ऐसे में यहां कांग्रेस को भारी नुकसान हो सकता है।
वैसे यहां जो खुद को किंगमेकर समझ रहे हैं वो अजीत जोगी। उन्हें लगता है कि कर्नाटक में जैसे जेडीएस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए अपने उम्मीदवार को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रखी थी। कांग्रेस का पहला उद्देश्य बीजेपी को किसी भी कीमत पर सत्ता में आने से रोकना है और इसी वजह से कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस की शर्त मान ली थी। ऐसा ही कुछ जेसीसी के अध्यक्ष अजीत जोगी के मन में भी चल रहा है। कर्नाटक के जेडीएस की तरह ही छत्तीसगढ़ में जेसीसी राज्य में खंडित जनादेश का फायदा उठाने की महत्वकांक्षा रखते हैं। कांग्रेस में सत्ता के लिए अंदरखाने में मतभेद है और वो अकेले बीजेपी को राज्य में हराने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में अजीत जोगी चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस की सत्ता में आने की हताशा और बीजेपी को हराने के उद्देश्य को देखते हुए गठबंधन में आने के लिए शर्त रख सकते हैं। शर्त ये कि वो गठबंधन में तभी आयेंगे जब कांग्रेस उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार होगी। उन्हें लगता है कर्नाटक की तरह ही यहां भी ये पुरानी पार्टी अपनी विचारधारा और महत्वकांक्षा के साथ समझौता करेगी। अगर गौर करें तो उनका ये आंकलन उनकी महत्वकांक्षा और कांग्रेस की विवशता को दर्शाता है।