मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख़ नजदीक है। कांग्रेस और बीजेपी एड़ी-चोटी का दम लगाए हुए हैं। एक ओर जहां बीजेपी के पास चुनाव की कमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर योगी आदित्यनाथ के अलावा खुद प्रधानमंत्री मोदी सम्हाले हुए हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के अलावा उनकी तिकड़ी दिग्विजय, कमलनाथ और सिंधिया संभाले हुए हैं। दोनों पार्टयां अपनी-अपनी हांडी चढ़ाए हुए हैं।
इस चुनाव में कांग्रेस जीत के लिए कितना भी दम भर रही हो लेकिन जमीनी हक़ीकत कुछ और ही है। दरअसल, कांग्रेस इस बार कई मोर्चों पर अंदर ही अंदर अपनों में ही पिसी जा रही है लेकिन, वो अपनी पीड़ा किसी से बयां नहीं कर पा रही है। इसमें सबसे बड़े कारण की बात की जाए तो उनमें कांग्रेस की आंतरिक कलह, वर्चस्व की जंग, तालमेल की कमी, विवादित बयान, एक के बाद एक वायरल होते वीडियोज, लोकप्रिय चेहरे की कमी और सबसे बड़ी बात पार्टी में निरंकुशता जैसी ढेरों वज़हें है।
हाल ही में अपने एक बयान में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि “पार्टी में इस समय पूरी एकता है. सभी स्तर के नेताओं और लोगों को पता है यह एक ‘करो या मरो’ की स्थिति है।” पता नहीं सिंधिया किस एकता की बात कर रहे थे पुरानी पार्टी के नेता आपसी मतभेद और आंतरिक कलह से कितना भी इंकार करें लेकिन सच किसी से कहां छुपता है। हालांकि, कांग्रेस की समस्या केवल एकजुटता में कमी ही नहीं है, बल्कि और भी कई हैं। दरअसल, 15 सालों से सत्ता से बाहर होने के कारण कांग्रेस को कोई चंदा नहीं देना चाह रहा है। जिसके कारण उसके पास पैसों की भारी किल्लत है। ऐसे में वो खुद ही टिकट के बदले पैसे मांग रही है। पार्टी का कहना है कि पार्टी की ओर से टिकट पाने के लिए पार्टी फंड में 50 हजार रुपये जमा करने होंगे। जिससे ढेरों योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार करके पैसे वाले प्रत्याशियों को टिकट बेंचे जा रहे हैं।
इन सबके अलावा कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और सिद्धू की रैलियां भी बैक फायर करने का काम करेंगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जहां भी रैलियां की हैं वहां पार्टी को हरा ही नसीब हुई है। उत्तर प्रदेश और गुजरात इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। कर्नाटक में भी कांग्रेस बुरी स्थिति में थी लेकिन यहां जेडीएस के सीएम उम्मीदवार को सीएम की कुर्सी पर का लालच देकर जैसे तैसे यहां अपनी साख बचाई थी जबकि भारतीय जनता पार्टी ने पहले के मुआकब्ले अपनी स्थिति को यहां मजबूत कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पंजाब में राहुल गांधी ने प्रचार नहीं किया था और वहां कांग्रेस की जीत हुई थी। जबकि पंजाब कैबिनेट के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की बात करें तो पाकिस्तान की तरफ उनका झुकाव और अमृतसर रेल हादसे की वजह से उनकी छवि आम जनता के बीच कमजोर हुई हैं। यही नहीं सिद्धू अपने बड़बोलेपन की वजह से भी अक्सर विवादों में घिर जाते हैं। इसका उदाहरण हाल ही में देखने को भी मिला था जब छत्तीसगढ़ में सिद्धू ने लगातार दो रैलियों में दो प्रत्याशियों के नाम सीएम पद के लिए आगे कर दिया। ऐसे में मध्य प्रदेश में सिद्धू का चुनाव प्रचार कितना सफल होगा इसे बताने की जरूरत नहीं है। पार्टी में नेतृत्व की विफलता, निरंकुशता और राहुल गांधी का कमजोर नेतृत्व कई बार उजागर भी हुआ है। ये बताता है कि पार्टी में अब नेता अपने मन की कर रहे हैं। पार्टी में अब राहुल गांधी की भी कोई नहीं सुनता है।
गौरतलब है कि 15 सालों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने के अवसर तलाश रही है लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। कांग्रेस को भी पता है कि राज्य की जनता के बीच शिवराज सिंह चौहान लोकप्रियता का कोई मुकाबला नहीं है। कमल नाथ हो या ज्योतिरादित्य सिंधिया या हो दिग्विजय सिंह तीनों ही बयानबाजी करने में व्यस्त है। हालांकि, इन तीनों में ही कमल नाथ का नाम सीएम पद के लिए सबसे ज्यादा उभर रहा है लेकिन जिस तरह से कमलनाथ इन दिनों तुष्टिकरण से जुड़े वीडियो की वजह से चर्चा में हैं उससे उनकी छवि पर गहरा प्रभाव पड़ा है। माना जनता के जनता के बीच बीजेपी पार्टी को लेकर नाराजगी है लेकिन वो नाराजगी शिवराज सिंह चौहान से नहीं हैं बल्कि मंत्रियों और विधायकों से है ऐसे में मंत्रालय में बदलाव भी किये जा सकते हैं।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के पास शिवराज सिंह चौहान के सामने टिक पाने वाला कोई करिश्माई चेहरा नहीं है और न हीं योगी व मोदी जैसे स्टार प्रचारक हैं जिन्हें देखते ही जनता झूम उठे। इस कारण से भी जनता बीजेपी की ओर मुखर होकर खड़ी है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो तब देखने को मिला जब वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई कांग्रेसी समर्थकों की बाइट लेने के लिए मध्य प्रदेश के इंदौर की सड़कों और दुकानों पर निकले। वो सड़कों पर चलते राहगीरों से तो कभी व्यापारियों से सवाल कर रहे हैं कि आप वोट किसे देंगे तब सभी के जुबान पर एक ही नाम था ‘मोदी को देंगे’..‘बीजेपी को देंगे’। इससे साफ़ है कि मात्र इस विधानसभा चुनाव में ही नहीं बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर का प्रभाव बीजेपी को होगा। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर नेतृत्व, नेताओं का बडबोलापन, तुष्टिकरण की राजनीति उसे ले डूबने वाली है क्योंकि कोई भी कांग्रेसी नेता शिवराज सिंह चौहान के जादू को नहीं तोड़ पायेगा और न ही मोदी लहर के सामने टिक पायेगा।