2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव की भविष्यवाणी एक बार फिर से गलत साबित होगी

योगेंद्र यादव बीजेपी चुनाव

PC: Navbharat Times

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आ रहा है और किसकी बनेगी सरकार को लेकर भविष्यवाणी तेज हो गयी है। कभी डेली हंट का सर्वे तो कभी एबीपी न्यूज़ का सर्वे अब स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर भविष्यवाणी की है जिसके मुताबिक एनडीए को बड़ा झटका लग सकता है। यही नहीं उन्होंने ये तक कहा कि इस बार बीजेपी 200 सीटों पर ही सिमट जाएगी। द प्रिंट के एक आर्टिकल में योगेंद्र यादव ने कहा कि भारत की सत्ता की चाबी ‘हिंदी बेल्ट’ के पास है लेकिन यहां बीजेपी की नुकसान होने वाला है। इसके साथ उन्होंने कुछ आंकड़े भी पेश किये। हालांकि, ये पहली बार नहीं जब योगेंद्र यादव ने चुनावी भविष्यवाणी की हो इससे पहले भी उन्होंने कई भविष्यवाणी की है लेकिन वो गलत साबित हुई हैं जिसके लिए उन्हें कई बार ट्रोल भी किया गया है। अगर गलत चुनावी भविष्यवाणी के लिए कोई प्रतियोगिता होती तो स्पष्ट रूप से योगेंद्र यादव बड़ी आसानी से जीत जाते।

 उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को लेकर योगेंद्र यादव ने भविष्यवाणी की थी लेकिन उनकी भविष्यवाणी के विपरीत बीजेपी ने पहली बार 325 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया था। गुजरात विधान सभा चुनाव को लेकर भी उन्होंने पूर्वानुमान लगाया था और कहा था कि बीजेपी सत्ता से बाहर हो जाएगी और कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलेगा लेकिन उनकी ये भविष्यवाणी गलत साबित हुई थी और बीजेपी की जीत हुई थी।

गलत भविष्यवाणी की वजह से अक्सर चर्चा में रहने वाले चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने एक बार फिर से 2019 को लेकर भविष्यवाणी करते हुए कहा कि बीजेपी 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी लेकिन इस बार पार्टी 100 सीटें खो सकती है। यादव ने कहा, “जिस तरह के आज हालात हैं उसे देखकर लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को 2019 के लोक सभा चुनाव में लगेगा 100 सीटों का चूना लगेगा। साल  2014 में 272 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी 2019 में बमुश्किल ही 200 सीटों के आंकड़े को छू पायेगी। पीएम मोदी की दोबारा चुनाव की रणनीति उन्हीं पर भारी पड़ने वाली है।”

इस भविष्यवाणी के साथ उन्होंने कुछ आंकड़े भी साझा किये हैं और ये आंकड़े उन्होंने कुछ टीवी चैनलों और चुनावी गणित में लगी संस्थाओं के सर्वे और अपनी पुरानी संस्था सीएसडीएस की रिपोर्ट को आधार बनाकर किया है।

हिंदी बेल्ट बीजेपी की हार या जीत के लिए निर्णायक साबित हो सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में कुल 226 सीटें आती हैं। साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने हिंदी बेल्ट में 192 सीटें जीती थीं। योगेंद्र यादव के मुताबिक, “बीजेपी इन इलाकों में 50 सीटें खो सकती हैं। सपा-बसपा का गठबंधन बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करने वाला है।” खैर, योगेंद्र यादव ने जो कहा उसपर एक नजर डाल लेते हैं कि आखिर उनके द्वारा की गयी इस भविष्यवाणी में कितना दम है।

हिंदी बेल्ट की बात करें तो इसमें देश की बड़ी आबादी वाले राज्य आते हैं जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश आते हैं।

अपनी भविष्यवाणी में यादव ने कई कारण भी गिनाये हैं और हिंदी बेल्ट में बीजेपी की स्थिति को कमजोर दर्शाया है। उन्होंने कहा कि झारखंड, हरियाणा और उत्तराखंड में बीजेपी की लोकप्रियता में कमी आई है और यही वजह है कि यहां बीजेपी को 10 सीटों का नुकसान हो सकता है। दिल्ली पर उन्होंने कहा कि पार्टी की स्थिति उतनी मजबूत नहीं रही जिससे वो दिल्ली में जबरदस्त प्रदर्शन कर सके। ऐसा लगता है उन्होंने ये भविष्यवाणी करते हुए कुछ तथ्यों पर अमल नहीं किया क्योंकि जो उन्होंने कहा उसपर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी की स्थिति और लोकप्रियता की कहानी तो कुछ और ही नजर आई। चलिए उनकी बात को एक पल के लिए मान लेते हैं तो क्या विपक्ष बीजेपी से ज्यादा मजबूत है? शायद नहीं और ये बात हम यूं ही नहीं केह रहे।  चलिए एक नजर डालते हैं:

हरियाणा की बात करें तो हाल ही में यहां क्षेत्रीय दल आइएनएलडी पारिवारिक अंतर्कलह से जूझ रहा है। इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला ने अपने दो पोतों दुष्यंत और दिग्विजय पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए पार्टी से बाहर कर दिया है। दुष्यंत और दिग्विजय, अजय सिंह चौटाला के बेटे हैं जिस वजह से परिवार में अब फूट पड़ती हुई नजर आ रही है। यहां भी कांग्रेस गुटबंदी से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर में तीखी जुबानी जंग अब खुलेआम देखी जा रही है जबकि बीजेपी की स्थिति राज्य में मजबूत नजर आ रही है। मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार राज्य में विकास कार्यों के लिए जमकर कार्य कर रही है। हरियाणा में चौतरफा विकास के लिए मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने सबसे पहले सिस्टम को बदला और पारदर्शी बनाया। राज्य में किसी भी तरह का विकास तभी पूर्ण होगा जब सिस्टम में पारदर्शिता होगी। उन्होंने प्रदेश की राजनीति में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि काबिलियत को दिया। इसके अलावा राज्य में कई महत्वपूर्ण योजना भी लेकर आये।  उनके प्रयासों का परिमाण उनकी उपलब्धियां साफ़ बयां करती है। वो आगे भी इसी तरह से राज्य के विकास में कार्य करते रहेंगे। ऐसे में हरियाणा में बीजेपी की पकड़ को कमजोर कहना मजाक की तरह लगता है।

ऐसा ही कुछ खनिज समृद्ध राज्य झारखंड में भी है जहां रघुवर दास के कार्यों को खूब सराहना मिल रही है। रघुवर दास के नेतृत्व में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने वाला झारखंड पहला राज्य बन गया। मुख्यमंत्री रघुवर दास की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार द्वारा झारखंड के राज्य विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी कानून को पारित किया गया जिसमें जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए सजा का प्रावधान प्रस्तावित किया गया था। इसके अलावा उन्होंने रांची कैथोलिक आर्चडायसिस समेत राज्य के निबंधित 88 गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के खिलाफ फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट (एफसीआरए) 2010 के तहत विदेशी फंडिंग की जांच के लिए एसआईटी को निर्देश दिए थे क्योंकि ये एनजीओ विदेशी फंड का दुरुपयोग आदिवासियों के धर्मांतरण के लिए करती थीं। इसके अलावा भी उन्होंने राज्य में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं।

राजस्थान की बात करें तो यहां कांग्रेस अपनी ही पार्टी के आंतरिक मतभेदों से परेशान है। कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट कई मुद्दों को लेकर एकमत नहीं है। ये आंतरिक मतभेद  राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर है जो राज्य में कांग्रेस के सपनों पर ग्रहण लगा सकता है। यहां कांग्रेस बीजेपी की लड़ाई के बीच जाट नेता हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय होना भी भारतीय जनता पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा। इस पार्टी का लक्ष्य राजे और कांग्रेस के खिलाफ लड़ना है। इस लड़ाई से खुद को साबित करना है और एक नया पॉवर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी करना है। 

मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां कांग्रेस की स्थिति और भी ज्यादा खराब है   यहां मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह तीनों रखते हैं। यही नहीं एक बैठक में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भी आपस में भीड़ गये। इस राष्ट्रीय पार्टी के पास इस विवाद को सुलझाने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। राहुल गांधी के सामने इस तरह की बहसबाजी ये भी दर्शाती है कि ये वरिष्ठ नेता हाई कमान के आदेशों को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं या कांग्रेस अध्यक्ष में एक कुशल नेतृत्व की कमी है। 

जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है तो ये भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है यहां अपने कार्यों से रामन सिंह जनता के बीच काफी लोकप्रियता का आनंद उठाते हैं। वैसे भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके के अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। इसके अलावा यहां अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ कांग्रेस और बसपा के बीच हुए गठबंधन से इस राष्ट्रीय पार्टी को जबरदस्त घाटे का सामना करना पड़ सकता है। ये दोनों पार्टियां कांग्रेस के वोट को ही काटेंगी। कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी है कि वो अंतिम समय में मोर्चा संभालने की कोशिश करती है तब तक सभी राजनीतिक प्यादे अपनी जगह फिट हो चुके होते हैं। कांग्रेस के पास सक्रिय दृष्टिकोण की कमी है। ऐसे में यहां योगेंद्र यादव की भविष्यवाणी तथ्यों के विपरीत है।

उत्तराखंड भारतीय जनता पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है। मार्च 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां विधान सभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।  70 सीटों वाली उत्तराखंड में बीजेपी ने 57 सीटें जीतीं थीं जबकि कांग्रेस को सिर्फ 11 सीटें ही मिली थी। जून 2013 में आई विनाशकारी आपदा के दौरान हुए आबाकारी घोटाले और लूट ने कांग्रेस को हाशिये की ओर धकेल दिया। भारतीय जनता पार्टी ने भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और विकास उन्मुख शासन का वादा किया और अपने वादे के अनुरूप ही कार्य भी कर रही है। बीजेपी के मुख्यमंत्री रावत ने एनएच -74 के लिए भूमि अधिग्रहण में 300 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में जांच शुरू की और इस मामले में कई अफसरों को जेल भी हुई है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन पर कतई बर्दाश्त नहीं की नीति अपनाई है और इस पर अमल भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने करीब 16216 करोड़ रुपये की लागत वाली बहुप्रतीक्षित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन को 2024 तक शुरू करने का वादा भी किया है। इसके अलावा उत्तराखंड में मोदी लहर अभी भी बरकरार है और इसका प्रभाव अगले साल लोकसभा चुनाव में अवश्य देखने को मिलेगा।

दिल्ली की बात करें तो यहां भारतीय जनता पार्टी अभी भी मजबूत स्थिति में है। यहां सीएम अरविंद केजरीवाल की गिनती देश के असफल नेताओं में की जाती है जो भ्रष्टाचार और आंतरिक मतभेद से जूझ रही है। यहां कांग्रेस की स्थिति बहुत ही कमजोर है ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यहां एक बार फिर से बीजेपी की बड़ी जीत होने वाली है।

कुल मिलाकर देखें तो चुनव विश्लेषक योगेंद्र यादव कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर बैठे हैं। वास्तव में बीजेपी हिंदी बेल्ट में 100 सीटें नहीं हारेगी और न ही 200 सीटों पर सिमटने वाली है। अब हमें योगेंद्र यादव की भविष्यवाणी के फिर से गलत होने का और इसपर उनकी सफाई का इंतजार है। आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी भी और सरकार भी बनाने में कामयाब होगी।

Exit mobile version