केरल सबरीमाला मंदिर को लेकर चल रहे विवाद के बीच केरल हाई कोर्ट ने तय किया है कि सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) का नियंत्रण करने की जिम्मेदारी गैर-हिंदू के हाथों में नहीं दी जाएगी।
जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और देवन रामचंद्रन की एक खंडपीठ ने याचिकाओं एक बैच को निर्देश जारी किया जिसने हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम (1950) की धारा 29 की उपधारा (2) में हुए संशोधन को चुनौती दी थी। इस संशोधन के तहत त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) का अधिकारी गैर हिंदू को नियुक्त करने की रणनीति थी।
इससे पहले केरल सरकार ने टीडीबी और कोचीन देवस्वाम बोर्ड के अधिकारी के रूप में गैर-हिंदू को नियुक्त करने के लिए हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम (1950) की धारा 29 की उपधारा (2) में संशोधन किया था। इसमें संशोधन करते हुए देवासम बोर्ड के प्रबंधन का अधिकारी एक ‘हिंदू’ होना चाहिए की जगह ‘गैर-हिंदू’ कर दिया गया था जिससे गैर-हिंदू अधिकारी को नियुक्त करने का रास्ता साफ़ हो जाये। ये जानकारी एक सूचना पत्र द्वारा साझा की गयी थी जोकि 6 जुलाई 2018 को जारी किया गया था।
Kerala Government Publishes Gazette allowing Non Hindus to be employed in Hindu Devaswom Board . We should get ready for another fight against Communist Government. Share and Shame Secular Government. #ReclaimTemples #Punarutthana pic.twitter.com/JWceAQ4RFT
— Girish Bharadwaj (@Girishvhp) October 7, 2018
अब केरल हाई कोर्ट के फैसले ने राज्य सरकार द्वारा किये गये संशोधन के प्रभाव को शून्य कर दिया है। एक याचिकाकर्ता ने कहा, “कोर्ट ने अपने फैसले देवासम बोर्ड के प्रबंधन के मामले में न्याय किया है। हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम (1950) की धारा 29 की उपधारा (1) के तहत इस बोर्ड का अधिकारी सिर्फ वही हो सकता है जो हिंदू धर्म से हो।”
ये फैसला तब आया है जब केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने हाई कोर्ट को सुझाव दिया था कि तीर्थ यात्रा के दौरान महिला श्रद्धालुओं के लिए अलग से दो दिनों का वक्त निर्धारित करे। ये सुझाव केरल सरकार ने तब दिया जब चार महिला श्रद्धालुओं (रेशमा निशांत, शनिला सजीश, धान्या वी एस और सूर्या एम की ओर से दायर याचिका पर कोर्ट सुनवाई चल रही थी।
इस याचिका में इन महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश के लिए दो से तीन दिन तय करने की बात कही है। इसके साथ ही इन महिलाओं ने सबरीमाला में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए आधारभूत सुविधाओं और सुरक्षा उपाय करने की भी बात कही है। इसी दौरान राज्य सरकार के अटॉर्नी केवी सोहन ने इस मामले पर कोर्ट को सुझाव देते हुए कहा, “तीर्थ यात्रा के दौरान महिला श्रद्धालुओं के लिए अलग से दो दिनों का वक्त तय किया जा सकता है।” इस सुझाव के जवाब पर कोर्ट के कहा था कि वो इस पर विचार करने के लिए तैयार है। इस मामले की गहराई में जाने की बजाय चीफ जस्टिस ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली पीठ ने त्रावनकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) को आदेश दिया कि वह कोर्ट को इस बात की जानकारी दें।
यहां गौर करने वाली बात ये है कि अन्य धर्म के लोगों को लगता है कि वो हिंदुओं के मंदिर के प्रबंधक बन सकते हैं। ऐसे में केरल सरकार को कम से कम ये तो समझना चाहिए कि हिंदू मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र है वो कोई संपत्ति नहीं है जिसके प्रबंधन के लिए किसी गैर-हिंदू को बना दिया जाए। वास्तव में खुद को एक धर्मनिरपेक्ष सरकार बताने के लिए हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का मजाक बना रही है। हालांकि, हिंदुओं के धार्मिक संसथान पर नियंत्रण करने के उनके इरादों पर हाई कोर्ट के फैसले ने पानी फेर दिया है। केरल सरकार का ये प्रयास हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। केरल सरकार हिंदू मंदिरों के प्रबन्धन पर नियंत्रण के लिए उच्चतम प्रयास कर रही है।
केरल में देवासम बोर्ड जो सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन संभालता है उसका हिंदू होना और हिंदू धर्म में भरोसा करना जरुरी है लेकिन कम्युनिस्ट सरकार ने खुद ही इस बोर्ड के अधिकारी को नियुक्त किया जो एक नास्तिक है। एक सीपीएम नेता ए पद्मकुमार को त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष बनाया गया।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद से केरल सरकार के इस प्रयास पर पानी फेर दिया है जो सबरीमाला मंदिर पर अपना नियंत्रण चाहती थी।