यादव परिवार में कलह से कमजोर पड़ा राजद, महागठबंधन बनने की भी थमी रफ्तार

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PC: News Track

केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद विपक्षी एकता की रीढ़ की हड्डी रही राजद अब दिनों-दिन टूटती जा रही है। कोर्ट के पचड़े में फसें लालू यादव और उनके परिवार को कोर्ट से मुक्ति मिली नहीं थी कि उन्हें सजा हो गई। उसके बाद अब दिनों दिन लालू की बिगड़ती तबीयत से राजद की हालत भी खराब होती जा रही है। मुसीबतों और परेशानियों ने लालू के परिवार का साथ यहीं नहीं छोड़ा। लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव का अपनी पत्नी के बीच मनमुटाव भी शुरू हो गया। यह मामला घर तक ही नहीं रुका, मामला न्यायालय तक पहुंच गया और तेजप्रताप ने तलाक की अर्जी तक दे दी। तलाक की अर्जी दायर करने के सवाल पर तेज प्रताप ने कहा था कि उनकी शादी ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए कराई गई थी। परिवार और पार्टी के लोगों ने अपने लाभ के लिए उन्हें फंसाया था। इससे हमारा (राजद) का वोट बैंक भी कम हो सकता है। उनके इस बयान से राजनैतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। इस समय जब सभी धुरंधर नेता 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं वहीं लालू यादव का परिवार किसी न किसी मामले में कोर्ट को चक्कर काट रहा है। इन सभी परिस्थितियों में लालू यादव की राजनैतिक विरासत को संभाले उनके पुत्र तेजप्रताप भी बुरी तरह व्यस्त हैं। इन सब से महागठबंधन की रफ्तार भी कमजोर पड़ती दिख रही है।

अब ऐसे में जब लोकसभा चुनाव में कुछ महीने मात्र ही बचे हैं, तब एनडीए के खिलाफ खड़ा हुआ विपक्ष दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। जबकि वहीं दूसरी ओर एनडीए मजबूत होती जा रही है। विपक्षी एकता की नाकामी देखते हुए आम जनता के साथ विपक्ष के कार्यकर्ता भी बीजेपी से जुड़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में जिस तरह से मतभेद सामने आ रहे हैं, वो इस बात पर सवाल उठाते है कि ये महागठबंधन बन भी पाएगा या नहीं? महागठबंधन की बात पर इसलिए भी संशय है क्योंकि उत्तर प्रदेश में पहले से ही मायावती और अखिलेश ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया है।

लालू के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर ही काट रहे हैं। जिसके कारण अब उनके चेहरे पर भी थकान साफ-साफ देखी जा सकती है। धीरे-धीरे पैदा हुई इन परिस्थितियों से महागठबंधन पर संशय बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर इसका सबसे बड़ा नुकसान राजद के वोट बैंक पर पड़ रहा है। राजद का वोटबैंक दिनों-दिन टूटता ही जा रहा है। तेजस्वी का आत्मविश्वास भी अब टूटता जा रहा हैं। उन्हें महागठबंधन की राजनीतिक खिचड़ी समझ में नहीं आ रही है। वो समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उन्हें करना क्या है। कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के फेर में उनके पास इतना समय ही नहीं रहता कि वो गठबंधन या जनता के बारे में भी सोचें। इन सभी परिस्थितियों से एक बात तो तय है कि 2019 का लोकसभा चुनाव एकतरफा हो गया है जहां सिर्फ एनडीए ही मैदान में मजबूती के साथ नजर आ रही है।

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