मध्यप्रदेश: बीजेपी की वापसी के संकेत दे रही बुधनी सीट

मध्यप्रदेश बुधनी शिवराज

PC: Zee News

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में एक संयोग रहा है कि, जिस भी पार्टी का प्रत्याशी यहां कि बुधनी सीट से जीतता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है। यही कारण है कि, मध्यप्रदेश में बुधनी विधानसभा सीट बेहद हाईप्रोफाइल सीट है। 1980 में कांग्रेस के केएन प्रधान बुधनी सीट से विधायकी जीते थे तब अर्जुन सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 1985 में कांग्रेस के ही चौहान सिंह की इस सीट से जीत हुई और तब भी कांग्रेस की ही सरकार बनी थी। इसी तरह लगातार बुधनी सीट से जीतने वाले प्रत्याशी की पार्टी ही मध्यप्रदेश से सरकार बनाती आ रही है।  खास बात यव है कि, बुधनी राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान के गृह जिले सीहोर की सीट है और चौहान यहां से चौथी मर्तबा जीत हासिल करने के लिए चुनाव मैदान में खड़े हैं। वहीं कांग्रेस ने चौहान के खिलाफ दो बार सांसद रह चुके और पूर्व मुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे अरुण यादव को मैदान में उतारा है।

अरुण यादव इस साल अप्रेल तक सूबे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर थे। पार्टी द्वारा चुनाव से पहले यह पद कमलनाथ को दे देने से अरुण यादव नाराज भी बताए जा रहे थे। अब बुधनी सीट पर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय चेहरे शिवराज सिंह के खिलाफ यादव को खड़ा करने के बाद ऐसा लग रहा है कि, पार्टी ने अरुण यादव को बली का बकरा बना दिया है। बहरहाल बुधनी विधानसभा सीट के समीकरण यही कह रहे हैं कि, यहां से एक बार फिर शिवराज सिंह अपनी जीत का परचम लहराएंगे। ऐसे में अगर इस सीट पर वर्षों से चला आ रहा संयोग इस बार भी कायम रहा तो कांग्रेस का मध्यप्रदेश में वापसी का सपना चूर-चूर हो सकता है।  

आंकड़े बनाते हैं बुधनी को हाइप्रोफाइल सीट

1985 में कांगेस की सरकार के बाद बुधनी सीट से शिवराज सिंह चौहान ने 1990 में चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। उस समय बीजेपी ने सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में सरकार बनाई थी। वहीं 1993 में कांग्रेस के राजकुमार पटेल इस सीट से विधायक बनें, तब प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार रही थी। उसके बाद कांग्रेस से देव कुमार पटेल बुधनी से जीते और एक बार फिर दिग्विजय के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनीं। इसके बाद प्रदेश में बीजेपी की बारी तब आई जब बुधनी सीट से 2003 में बीजेपी के प्रत्याशी राजेंद्र सिहं राजपूत विधायक बनें। उस समय उमा भारती के नेतृत्व में सरकार बनी थी। जब 2006 में उपचुनाव हुए तब शिवराज इस सीट से विजेता रहे। इसके बाद 2008 में हुए विधानसभा चुनावों में भी शिवराज सिंह चौहान ने इस सीट से विजय हासिल की थी और उन्हीं के नेतृत्व में सूबे में सरकार भी बनीं। इसके बाद 2013 में एक बार फिर चौहान बुधनी से जीते और बीजेपी सूबे की सत्ता में बने रही। शिवराज इस सीट से 4 बार विधायक रह चुके हैं और अब 5 वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं।  बुधनी का ये संयोग पिछले 38 सालों से यूं ही चला आ रहा है। इस संयोग के देखते हुए इस बार कांग्रेस को बुधनी से कोई बड़ा उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहिए था लेकिन शिवराज के खिलाफ अरुण यादव को खड़ा कर कांग्रेस एक बार फिर ये सीट तो हारती हुई दिख ही रही है। अगर बुधनी का संयोग 2018 में भी बरकरार रहा तो ये कहा जा सकता है कि, हो न हो, मध्यप्रदेश में बीजेपी के फिर से सत्ता में आने के आसार और भी ज्यादा बढ़ गए हैं।  

कांग्रेस के ‘राज्य का भविष्य’ संकट में

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अरुण यादव के पक्ष में प्रचार करते हुए उन्हें ‘राज्य का भविष्य’ कहा था। सवाल ये है कि, अगर इस विधानसभा सीट से लड़ रहे यादव ‘राज्य का भविष्य’ है तो पार्टी ने शिवराज सिंह को टक्कर देने के लिए यादव के पक्ष में जरूरी प्रबंध क्यों नहीं किए। माना जा रहा है कि, यादव वोट बैंक के बलबूते ही कांग्रेस यहां से चुनाव लड़ रही है लेकिन शिवराज की लोकप्रियता को देखते हुए यादव वोटबैंक का कांग्रेस के पक्ष में जाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि जनता शिवराज सिंह के नेतृत्व से बेहद खुश है।  

हारे हुए पटेल संभाल रहे चुनाव प्रचार की कमान

हाइप्रोफाइल बुधनी विधानसभा सीट पर कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान पार्टी ने राजकुमार पटेल को दी है। बता दें कि, 2006 के उपचुनाव में शिवराज ने पटेल को 36 हजार वोटों से हराया था। ऐसे में सूबे के कद्दावर नेता शिवराज के आगे राजकुमार पटेल का कद बहुत फीका नजर आता है। शिवराज का इस सीट से जीत का अंतर हमेशा काफी बढ़ा रहा है। वे 1990 में 21138 वोट, 2006 में 36525 वोट, 2008 में 41525 वोट और 2013 में 84805 वोटों से इस सीट से विजेता रहे हैं।

बुधनी को लेकर निश्चिंत लग रहे शिवराज

शिवराज बुधनी सीट को लेकर इतने निश्चिंत हैं कि, यहां पर प्रचार अभियान को उनकी पत्नी साधना सिंह और बेटे कार्तिकेय ही संभाल रहे हैं। जबकि शिवराज सूबे में पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में सभाएं लेने में व्यस्त हैं। बुधनी सीट से नामांकन के बाद से वे यहां प्रचार के लिए नहीं गए हैं। शिवराज का कहना है कि, इस सीट  की जनता उनका परिवार है, इसलिए वे निश्चिंत होकर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में प्रचार अभियान में जुटे हैं। शिवराज की बुधनी विधानसभा सीट को लेकर निश्चिंतता बताती है कि, वे हर बार की तरह इस सीट को भारी अंतर से जीत लेंगे और अगर ऐसा होता है तो बुधनी संयोग के कारण कांग्रेस का प्रदेश में वापसी करने का सपना टूट सकता है।

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