क्या ममता निजी हित के लिए संघीय व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं

ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल संघीय व्यवस्था

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि बीजेपी उनके राज्य में अपराधियों को भेज रही है ताकि राज्य का माहौल खराब हो जाये। यही नहीं उन्होंने राज्य की सीमा पर सीसीटीवी तक लगवाने की बात कही ताकि कोई भी बिना इजाजत के सीमा राज्य में प्रवेश न कर सके चाहे वो कोई आम नागरिक ही क्यों न हो। ऐसा करने के लिए उस व्यक्ति को अपराधी का तमगा देने की भी योजना है।

ममता बनर्जी ने पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वो झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा के 110 किलोमीटर तक में सीसीटीवी कैमरे लगायें “इससे जो अपराधी राज्य में घुसने का प्रयास कर रहे हैं वो वापस लौट जायंगे।” यही नहीं उन्होंने आगे कहा, “बीजेपी शासित राज्य से आये अपराधी लोगों को मार रहे हैं। और जब वो अपने मकसद में कामयाब हो जातें हैं वो इसका जश्न मनाते हैं। मुझे लगता है सीमा को सील कर देना चाहिए। लेकिन उससे पहले सीसीटीवी लगवाना जरुरी है।”

ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी के मन में कुछ और ही चल रहा है। देश की सेना पर सवाल उठाने वाली ममता बनर्जी ने हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ वापस ले ली थी। अब वो झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा के बीच स्थापित स्वतंत्र प्रवाह को भी रोकना चाहती हैं ताकि संघीय व्यवस्था को कमजोर कर सकें। ममता बनर्जी ने सीबीआई को अपने राज्य में प्रतिबंधित करके पहले ही केंद्र और राज्य के बीच तनाव की स्थिति को पैदा कर चुकी हैं। इस कदम से पहले ही संघीय व्यवस्था को कमजोर करने के लिए एक कदम आगे बढ़ा चुकी हैं। संविधान-निर्माता संघीय शासन को अस्तित्व में लेकर आये ताकि केंद्र और राज्य में एकात्मक शासन बना रहे लेकिन अब इस निर्णय से इस व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जबकि केंद्र और राज्यों को शासन में समन्वय बनाये रखने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए लेकिन पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ये आदेश गलत है क्योंकि ये संघीय व्यवस्था को प्रभावित करेगा। ऐसा लगता है कि वो बीजेपी को निशाना बनाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए बीजेपी शासित राज्यों को भी निशाना बनाकर केंद्र के बाद देश के ही राज्यों के बीच तनाव की स्थिति पैदा करने का प्रयास कर रही हैं।

बता दें कि भारत, क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से अत्यधिक विशाल और बहुत अधिक विविधताओं से परिपूर्ण है, ऐसी स्थिति में संविधान-निर्माताओं ने भारत के लिए संघात्मक शासन व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया था। संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि ’’भारत, राज्यों का एक संघ होगा’’ लेकिन संविधान-निर्माता संघीय शासन को अपनाते हुए भी भारतीय संघ व्यवस्था की दुर्बलताओं को दूर रखने के लिए उत्सुक थे और इस कारण भारत के संघीय शासन में एकात्मक शासन के कुछ लक्षणों को ही अपनाया गया था। वास्तव में, भारतीय संविधान में संघीय-शासन देश में एकात्मक शासन को बनाये रखने के लिए लाया गया था।

संघ का आधार सिर्फ एकता ही नहीं बल्कि पारस्परिक है जो संघात्मक शासन प्रणाली की विशेषताओं में सर्वप्रथम है। ये केंद्र और दूसरी इकाइयों की सरकारों के बीच समन्वय को बनाये रखता है। इसी व्यवस्था के अनुसार केंद्र और राज्यों व अन्य इकाइयों के बीच शक्तियों का इस तरह से विभाजन करता है जिससे कोई टकराव की स्थिति पैदा न हो जिससे देश की एकता और अखंडता बनी रहेगी।

ममता बनर्जी जिस तरह के फैसले अब ले रही हैं वो कहीं न कहीं इसी संघीय व्यवस्था को कमजोर करने का एक प्रयास नजर आता है। वो केंद्र की बीजेपी सरकार के प्रति भरी नफरत के कारण देश की एकता को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं। ये प्रयास उनके लिए नया नहीं है वो धीरे धीरे इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रही हैं। साल 2016 के दिसंबर माह में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भारतीय सेना को राजनीति के गंदे खेल में घसीटा था और पश्चिम बंगाल में हुए सैन्य अभ्यास को सीएम ममता बनर्जी ने तख्तापलट करने की कोशिश करार दिया था। उन्होंने सेना की तैनाती को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने की भी बात कही थी।

बाद में सेना ने इसपर सफाई देनी पड़ी थी कि, नॉर्थ ईस्ट में कई और जगहों पर भी एक्सरसाइज चल रही है, पश्चिम बंगाल इसमें अकेला नहीं है। असम में 18, अरुणाचल में 13, पश्चिम बंगाल में 19, मणिपुर में 6, नागालैंड में 5, मेघालय में 5, त्रिपुरा और मिजोरम में एक-एक स्थान पर स्थानीय पुलिस के सहयोग से रुटीन एक्सरसाइज की जा रही है। देश सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों के अभ्यास पर भी सवाल उठाना कहीं न कहीं देश की सुरक्षा व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा करता है। इसके बाद सीबीआई पर प्रतिबंध और अब राज्यों के बीच के संबंधों में खटास लाने का उनका प्रयास साफ़ दर्शाता है कि वो देश की संघीय व्यवस्था को किस तरह से कमजोर करने के प्रयास में जुटी हैं लेकिन चुनाव और अन्य मुद्दों के कारण जनता और मीडिया का ध्यान उनकी इस हरकत पर नहीं जा रहा है।

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